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कैग के अनुसार, फुस्स साबित हो रही केंद्र की फसल बीमा योजना

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नई दिल्ली। नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने अपनी ताजा रिपोर्ट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी योजना ‘प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना’ सहित फसल बीमा योजनाओं में कई खामियों को उजागर किया है। सीएजी ने कहा है कि राज्यों द्वारा प्रभावित किसानों को बीमा राशि मुहैया कराने में की जा रही देरी के चलते किसानों को समय से वित्तीय मदद प्रदान करने का लक्ष्य बाधित हुआ है।

संसद में शुक्रवार को पेश की गई सीएजी की रिपोर्ट में फसल बीमा योजना के तहत बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों द्वारा किसानों के खातों में बीमा राशि जमा करने अनियमितता सहित कई खामियों का उल्लेख किया गया है और राज्य सरकारों को इस संबंध में उनके लिए आवंटित धनराशि समय पर देने के लिए एक प्रणाली विकसित करने की सिफारिश भी की गई है।

सीएजी का यह भी कहना है कि कृषि बीमा कंपनी (एआईसी) निजी कंपनियों को धनराशि देने से पहले उनके दावों के सत्यापन में तत्परता दिखाने में असफल रहा है।

बुआई के क्षेत्रफल और बीमित क्षेत्रफल से जुड़े आकड़ों में विसंगति को रेखांकित करते हुए सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है, “राज्य सरकारों द्वारा इस संदर्भ में एआईसी को मुहैया कराए गए आंकड़ों की सत्यता को सत्यापित नहीं किया जा सका है।”

केंद्र सरकार ने पिछले साल खरीफ की फसल की बुवाई के दौरान पीएमबीएफवाई योजना शुरू की थी और पिछली योजना में सुधार कर इसे मौसम आधारित फसल बीमा योजना का रूप दिया था।

पीएमबीएफआई के तहत किसानों को खरीफ फसलों के लिए बीमा राशि का सिर्फ दो फीसदी, रबी फसल के लिए बीमा राशि का सिर्फ 1.5 फीसदी और बागवानी तथा नकदी फसलों के लिए बीमा राशि का सिर्फ पांच फीसदी देना होता है, जबकि शेष राशि केंद्र सरकार और राज्य सरकार बराबर मात्रा में वहन करती है।

सीएजी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि जितने किसानों पर सर्वेक्षण किया गया, उनमें से दो तिहाई (66.66 फीसदी) किसानों को इस योजना की जानकारी ही नहीं थी, योजना के तहत लाभान्वित किसानों की संख्या बेहद कम पाई गई, जबकि ऋण न लेने वाले किसानों को नजरअंदाज किया गया।

सीएजी ने योजना की निगरानी और योजना के क्रियान्वयन की निगरानी, नियमित मूल्यांकन रिपोर्ट तैयार करने तथा राज्य स्तरीय तथा जिला स्तरीय समितियों को बांटे गए कार्यो के संपादन के लिए स्वतंत्र एजेंसी के गठन में असफल रहने के लिए भी केंद्र सरकार और राज्य सरकारों की आलोचना की है।

सीएजी ने कहा है कि राज्य सरकारों द्वारा फसली जमीन से संबंधित आंकड़े जारी करने और वित्तीय एजेंसियों द्वारा दावों का निपटारा करने में देरी की बात सामने आई है।

सीएजी ने यह भी कहा है कि इस क्षेत्र में सीएजी ऑडिट करने में असमर्थ है, क्योंकि इस योजना के तहत निजी वित्तीय एजेंसियों द्वारा भारी मात्रा में धनराशि का लेन-देन होता है।

रिपोर्ट में कहा गया है कि सरकारों को ऋण देने वाले बैंकों, वित्तीय संस्थानों और बीमा एजेंसियों द्वारा दी जाने वाली सूचनाओं पर निर्भर रहना होता है, क्योंकि योजना में बीमित किसानों का डाटाबेस तैयार करने का प्रावधान ही नहीं रखा गया है।

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मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन, दिल्ली एम्स में ली अंतिम सांस

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नई दिल्ली। मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन हो गया है। दिल्ली के एम्स में आज उन्होंने अंतिम सांस ली। वह लंबे समय से बीमार चल रहीं थी। एम्स में उन्हें भर्ती करवाया गया था। शारदा सिन्हा को बिहार की स्वर कोकिला कहा जाता था।

गायिका शारदा सिन्हा को साल 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर, 1952 को सुपौल जिले के एक गांव हुलसा में हुआ था। बेमिसाल शख्सियत शारदा सिन्हा को बिहार कोकिला के अलावा भोजपुरी कोकिला, भिखारी ठाकुर सम्मान, बिहार रत्न, मिथिलि विभूति सहित कई सम्मान मिले हैं। शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मगही और मैथिली भाषाओं में विवाह और छठ के गीत गाए हैं जो लोगों के बीच काफी प्रचलित हुए।

शारदा सिन्हा पिछले कुछ दिनों से एम्स में भर्ती थीं। सोमवार की शाम को शारदा सिन्हा को प्राइवेट वार्ड से आईसीयू में अगला शिफ्ट किया गया था। इसके बाद जब उनकी हालत बिगड़ी लेख उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। शारदा सिन्हा का ऑक्सीजन लेवल गिर गया था और फिर उनकी हालत हो गई थी। शारदा सिन्हा मल्टीपल ऑर्गन डिस्फंक्शन स्थिति में थीं।

 

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