मुख्य समाचार
अभिव्यक्ति की आज़ादी का बिल्कुल सही मतलब बताया कोर्ट ने
नई दिल्ली। मुंबई की शाहीन-रीनू, कोलकाता के प्रोफेसर अंबिकेश महापात्रा, कानपुर के कार्टूनिस्ट असीम त्रिवेदी और रामपुर का छात्र विक्की, यह सभी लोग भले ही अलग-अलग जगहों से हों, अलग-अलग धर्म या मजहब से हों लेकिन इन सबकी कहानी एक ही थी। सरकार और प्रशासन के खिलाफ सोशल मीडिया में टिप्पणी करने के आरोप में इन सबको जेल जाना पड़ा था लेकिन अब माननीय सुप्रीम कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 66ए नामक वह कानून ही खत्म कर दिया है जिसके तहत इन सबको तत्काल सलाखों के पीछे डाल दिया गय़ा था।
माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए सिर्फ एक ही सवाल मन में उठता है कि क्या वाकई हमें बोलने या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिल गई है? शीर्ष अदालत ने अपने ऐतेहासिक निर्णय में यह भी कहा है कोई भी कमेंट्स जो धार्मिक भावना को ठेस पहुंचाते हों या कानून व्यवस्था को प्रभावित करते हों, और उस कम्युनिटी के अंतर्गत अगर मैटर रजिस्टर हो जाता है पुलिस गिरफ्तार कर सकती है। IPC के प्रावधान उसी तरह जारी रहेंगे एवं उसके तहत कार्रवाई होगी।
कोर्ट ने आईटी एक्ट की धारा 69 जिसमें आपत्तिजनक सामग्री को ब्लॉक करने का सरकार को अधिकार है और धारा 79 (उचित प्रक्रिया के साथ कानूनी कार्रवाई करना) को संवैधानिक मानते हुए इसको निरस्त नहीं किया है। कोर्ट ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को पूरा सम्मान देते हुए बोलने की सीमाएं भी तय की हैं।
मुझे लगता है कि यह फैसला कई मायने में ऐेतेहासिक है। इस मायने में भी कि अब हम कम से कम अपनी बात बिना किसी झिझक या डर के सोशल मीडिया पर कह सकेंगे और इस मायने में भी कि किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाए बिना। जिन लोगों का जिक्र शुरू में किया गया है उनके साथ वास्तव में इस कानून का सहारा लेकर ज्यादती की गई थी।
पिछले कुछ वर्षों में सोशल मीडिया अपनी बात कहने का बड़ा हथियार साबित हुआ है, लोगों के विचार खुलकर सामने आ रहे हैं, आने भी चाहिए लेकिन मर्यादा का उल्लंघन कत्तई स्वीकार नहीं है। इंटरनेट का बढ़ता प्रभाव हमारी जिंदगी को आसान बनाने के साथ ही उसमें जहर घोलने का काम भी कर रहा है। बहुत पहले सुना और पढ़ा करते थे कि विज्ञान वरदान या अभिशाप, बात वहीं आकर रूक जाती है कि हम अपने ऊपर कितना नियंत्रण कर सकते हैं। अभिव्यक्ति की आजादी का यह मतलब बिल्कुल नहीं होना चाहिए कि हम किसी की भावनाओं को ठेस पहुंचाएं, साथ ही कानून का मतलब भी यह नहीं है कि हुक्मरान उसका दुरूपयोगा कर सकें। बैलेंस आफ पॉवर जरूरी है।
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बदल गई उपचुनावों की तारीख! यूपी, केरल और पंजाब में बदलाव पर ये बोला चुनाव आयोग
नई दिल्ली। विभिन्न उत्सवों के कारण केरल, पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे। कांग्रेस, भाजपा, बसपा, रालोद और अन्य राष्ट्रीय और राज्य दलों के अनुरोध पर चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है।
विभिन्न उत्सवों की वजह से कम मतदान की किसी भी संभावना को खारिज करने के लिए, चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है। ऐसे में ये साफ है कि अब यूपी, पंजाब और केरल में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे।
चुनाव आयोग के मुताबिक राष्ट्रीय और राज्य स्तर की पार्टियों की ओर से उनसे मांग की गई थी कि 13 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव की तारीख में बदलाव किया जाए, क्योंकि उस दिन धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रम हैं। जिसके चलते चुनाव संपन्न करवाने में दिक्कत आएगी और उसका असर मतदान प्रतिशत पर भी पड़ेगा।
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