उत्तराखंड
चीन को बर्दाश्त नहीं उत्तराखंड के बाड़ाहोती में चरवाहों की उपस्थिति
देहरादून। पिछले महीने जुलाई में चीन ने एक सप्ताह में ही तीन बार उत्तराखंड के बाड़ाहोती में सीमा का उल्लंघन किया है। ड्रैगन ने जमीन ही नहीं आसमान में भी घुसपैठ की। पिछले साल भी चीन ने 12 से अधिक बार भारतीय सीमा में घुसपैठ की। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों इस इलाके पर चीन की काली नजर है और इसके पीछे उसका मकसद क्या है?
दरअसल, बाड़ाहोती में चरवाहों के जरिए ही बहुत सारी सूचनाएं सीमावर्ती जिला प्रशासन और आईटीबीपी तक पहुंचती है। बाड़ाहोती में भारतीय चरवाहे सूचना का अहम स्रोत हैं। यही बात चीन को हजम नहीं होती है। भारत-चीन सीमा से सटे उत्तराखंड के बाड़ाहोती बुग्याल क्षेत्र के साथ-साथ चरवाहों पर भी ड्रैगन की तिरछी नजर है। अक्सर उन्हें चीनी सैनिकों के सामने असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। पिछले महीने में खबरें आई थी कि बाड़ाहोती में चीनी सैनिक घुस आए हैं। जब भी चीन के सैनिक भारतीय सीमा में घुसपैठ करते हैं, भारतीय चरवाहे उनके निशाने पर होते हैं। सीमा क्षेत्र में चीनी सैनिक मेड इन चाइना का अपना सामान भी वहां फैलाते हैं।
साल 1959 में तिब्बत पर अपना अधिकार जामाने के बाद से ही इस इलाके में लगातार चीन अपना प्रभुत्व बढ़ाता रहा है। तिब्बती समुदाय के आध्यात्मिक गुरू दलाई लामा को भारत में शरण देने को लेकर भी चीन शुरू से ही अपनी आंखें तरेरता रहा है। 1962 में चीन ने जब भारत पर युद्ध थोपा तो उसके बाद से यहां भारत-चीन सीमा का चीन उल्लंघन करता रहता है।
चरवाहों की मानें तो चीनी सैनिकों से जब उनका सामना होता है तो उन्हें हर बार ऐसी ही असहज स्थिति का सामना करना पड़ता है। इस बार भी ड्रैगन के निशाने पर बाड़ाहोती बुग्याल में भेड-बकरियां चुगाने गए पालसी ही रहे हैं। चीनी सुरक्षा एजेंसियां कई चरवाहों को जासूस भी समझती हैं। यही वजह है कि चीनी सैनिक उत्तराखंड के बाड़ाहोती क्षेत्र से अकसर चरवाहों की मौजूदगी बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं और उन्हें परेशान करने का कोई मौका नहीं छोड़ते हैं।
चरवाहों के मुताबिक, पिछले साल भी कुछ चीनी सैनिकों ने न सिर्फ उत्तराखंड के बाडाहोती क्षेत्र में दस्तक दी थी, बल्कि यहां चरवाहों के टेटों को भी नुकसान पहुंचाया था। बताया गया था कि चीनी सैनिकों ने चरवाहों को निचले इलाकों की तरफ भगा दिया था। बाड़ाहोती बुग्याल साल 1959 तक भारत तिब्बत चीन व्यापार का प्रमुख केन्द्र होता था। मगर चीन के तिब्बत पर आधिपत्य और बाद में 1962 के भारत चीन युद्ध के बाद से इस स्थान पर होने वाला व्यापार बंद हो गया। उसके बाद से ही बाड़ाहोती के आसपास के इलाकों को लेकर भी ड्रैगन की तिरछी नजर रहने लगी है। चरवाहों की मानें तो चीनी घुसपैठिए इससे पूर्व भी कई बार इस क्षेत्र में आकर उनको परेशान कर चुके हैं।
उत्तराखंड
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राष्ट्रीय कौशल एवं रोजगार सम्मेलन का किया उद्घाटन
देहरादून। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने मंगलवार को राष्ट्रीय कौशल एवं रोजगार सम्मेलन का उद्घाटन किया। नीति आयोग, सेतु आयोग और राज्य सरकार के संयुक्त प्रयासों से राजधानी देहरादून में दून विश्वविद्यालय में राष्ट्रीय कौशल एवं रोज़गार सम्मलेन का आयोजन किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन करने के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि इस तरह की कार्यशालाएं प्रदेश के युवाओं के बेहतर भविष्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण साबित होंगी। उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार युवाओं को बेहतर रोजगार मुहैया कराने की दिशा में सकारात्मक कदम उठा रही है।
कार्यक्रम में कौशल विकास मंत्री सौरभ बहुगुणा ने इसे सरकार की ओर से युवाओं के लिए महत्वपूर्ण कदम बताया। उन्होंने कहा कि कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य उत्तराखंड के तमाम बेरोजगार युवाओं को रोजगार देना है। मुख्यमंत्री ने कहा, “निश्चित तौर पर इस कार्यशाला में जिन विषयों पर भी मंथन होगा, उससे बहुत ही व्यावहारिक चीजें निकलकर सामने आएंगी, जो अन्य युवाओं के लिए समृद्धि के मार्ग प्रशस्त करेगी। हमें युवाओं को प्रशिक्षण देना है, जिससे उनके लिए रोजगार की संभावनाएं प्रबल हो सकें, ताकि उन्हें बेरोजगारी से निजात मिल सके।
उन्होंने कहा, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2015 में स्किल डेवलपमेंट का विभाग खोला था, ताकि अधिक से अधिक युवाओं को रोजगार मिल सके। इसके अलावा, वो रोजगार खोजने वाले नहीं, बल्कि रोजगार देने वाले बनें। अगर प्रदेश के युवा रोजगार देने वाले बनेंगे, तो इससे बेरोजगारी पर गहरा अघात पहुंचेगा। ” उन्होंने कहा, “हम आगामी दिनों में अन्य रोजगारपरक प्रशिक्षण युवाओं को मुहैया कराएंगे, जो आगे चलकर उनके लिए सहायक साबित होंगे।
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