प्रादेशिक
नीतीश कुमार : कल्याणबिगहा के ‘मुन्ना’ से ‘सुशासन बाबू’ तक का सफर
पटना| बचपन में खेलते समय दोस्तों के बीच होने वाले झगड़ों को निपटाने वाले नालंदा जिले के कल्याणबिगहा का ‘मुन्ना’ (नीतीश कुमार) शुक्रवार को पांचवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने जा रहा है। बचपन से ही झगड़ा-फसाद से दूर रहने वाले नीतीश की सधी हुई बात और आत्मविश्वास आज भी उनकी पहचान है।
नीतीश शुक्रवार को पांचवीं बार बिहार के मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे। पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में आयोजित एक समारोह में अपराह्न् दो बजे राज्यपाल रामनाथ कोविंद उन्हें मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाएंगे।
नीतीश के पैतृक गांव कल्याणबिगहा में उनके घर की देखरेख करने वाले बुजुर्ग सीताराम बताते हैं कि पिछले 50 वर्षो से ज्यादा समय से वह नीतीश कुमार को देख रहे हैं। बचपन में कबड्डी और चिक्का खेलने वाले नीतीश शुरू से ही लड़ाई-झगड़े से दूर रहते थे। बच्चों में झगड़ा होने पर वही झगड़े को निपटाते थे।
नीतीश के साथ पढ़ाई करने वाले सुदर्शन आज पटना एनआईटी में प्रोफेसर हैं। वह कहते हैं कि वक्त के साथ नीतीश का राजनीति और समाजसेवा में रुझान बढ़ता गया।
सुदर्शन ने कहा, “पढ़ाई के दौरान भी नीतीश किताबी बातें नहीं करते थे। वह लोहियाजी की समाजवादी सेवा से जुड़े हुए थे।”
बिहार में 15 साल पहले लालू की सरकार को हटाकर सत्ता पर काबिज होना आसान नहीं था, लेकिन नीतीश ने अपनी सधी राजनीति से यह कर दिखाया। न्याय के साथ सुशासन का राज्य स्थापित करने की ओर नीतीश के बढ़े कदमों की वजह से उनके चाहने वालों ने उन्हें ‘सुशासन बाबू’ का नाम दिया। नीतीश ने भी अपना मूलमंत्र ‘न्याय के साथ विकास’ बनाया।
वह अब पांचवीं बार मुख्यमंत्री पद की कमान संभालेंगे। इससे पूर्व तीन मार्च 2000 से 10 मार्च 2000 तक, 24 नवंबर 2005 से 24 नवंबर 2010 तक, 26 नवंबर 2010 से 19 मई 2014 तक तथा 22 फरवरी 2015 से अब तक बिहार की कमान संभाल चुके हैं।
पिछले लोकसभा चुनाव में पार्टी की करारी हार के बाद नीतीश ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, लेकिन आठ महीने गुजरने के बाद ही उन्होंने फिर मुख्यमंत्री का दायित्व निभाने का फैसला लिया था।
एक मार्च 1951 को स्वतंत्रता सेनानी कविराज रामलखन सिंह और परमेश्वरी देवी के घर जन्मे नीतीश का झुकाव तेजी से राजनीति की ओर बढ़ा। पटना के बख्तियारपुर में प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त करने वाले नीतीश वर्ष 1974 में जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से जुड़े और उसी वर्ष आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (मीसा) के तहत उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया।
1975 में आपातकाल के दौरान उन्होंने समता पार्टी की सदस्यता ग्रहण की।
नीतीश ने बिहार अभियांत्रिकी महाविद्यालय से विद्युत अभियांत्रिकी में उपाधि हासिल की। 1985 में पहली बार बिहार विधानसभा की सीढ़ियों पर बतौर विधायक कदम रखा। 1987 में वह युवा लोकदल के अध्यक्ष बने तथा 1989 में उन्हें बिहार में जनता दल का सचिव चुना गया।
इस क्रम में 1989 में ही नीतीश नौवीं लोकसभा के सदस्य भी चुने गए। अब तक नीतीश की देश में सफल नेता के रूप में पहचान बन गई थी। यही वजह है कि 1990 में पहली बार उन्हें केन्द्रीय मंत्रिमंडल में बतौर कृषि राज्य मंत्री शामिल किया गया।
1991 में वह एक बार फिर लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए और उन्हें जनता दल का राष्ट्रीय सचिव तथा संसद में जनता दल का उपनेता बनाया गया।
उन्होंने बाढ़ संसदीय क्षेत्र का 1989 और 2000 में प्रतिनिधित्व किया। 1998-1999 में कुछ समय के लिए नीतीश को केन्द्रीय रेल एवं भूतल परिवहन मंत्री का दायित्व सौंपा गया, लेकिन अगस्त 1999 में एक रेल दुर्घटना के बाद उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया।
नीतीश ने तीन मार्च 2000 को बिहार के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली, लेकिन उन्हें सात दिन के अंदर ही त्याग पत्र देना पड़ा।
इसके बाद नीतीश को एक बार फिर केन्द्रीय कृषि मंत्री का दायित्व सौंपा गया। उन्होंने मई 2001 से 2004 तक अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में केन्द्रीय रेल मंत्री का भी दायित्व संभाला। रेल मंत्री के रूप में लिए गए उनके फैसलों को लोग आज भी याद करते हैं।
अपने विकास मॉडल के कारण नीतीश की पहचान विश्व स्तर पर बनी। बिहार की राजनीति में नीतीश ने विकास को अपना एजेंडा बनाया। 2010 में भारी बहुमत से जीतकर बिहार की बागडोर संभालने वाले नीतीश ने पिछले साल लोकसभा चुनाव में पार्टी को मिली करारी हार के बाद 17 मई, 2014 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। 22 फरवरी, 2015 को एक बार फिर मुख्यमंत्री बने नीतीश अपने काम के आधार पर विधानसभा चुनाव में उतरे।
जनता दल (युनाइटेड), राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस महागठबंधन ने नीतीश को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया, जिसके बाद बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन को भारी जीत मिली।
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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई
नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।
बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।
बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।
ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।
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