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पितरों की मुक्ति का द्वार है ‘गयाजी’

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गया, 8 सितंबर (आईएएनएस)| पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए एक पखवारे तक चलने वाला पितृपक्ष में श्राद्ध करने की परंपरा काफी पुरानी है। वैसे तो पिंडदान और तर्पण के लिए देश में कई स्थल हैं, लेकिन उसमें सर्वश्रेष्ठ बिहार के गया को माना गया है।

पितृपक्ष प्रारंभ होने के साथ ही गयाजी के फल्गु नदी के तट सहित विभिन्न वेदियों पर हजारों श्रद्धालु पिंडदान व तर्पण कर रहे हैं और अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना कर रहे हैं।

पितरों की मुक्ति का प्रथम और मुख्यद्वार कहे जाने की वजह से गया में पिंडदान का विशेष महत्व है।

हिंदू धर्म में पितृपक्ष को शुभ कामों के लिए वर्जित माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म कर पिंडदान और तर्पण करने से पूर्वजों की सोलह पीढ़ियों की आत्मा को शांति और मुक्ति मिल जाती है। इस मौके पर किया गया श्राद्ध पितृऋण से भी मुक्ति दिलाता है।

आश्विन महीने के कृष्ण पक्ष श्राद्ध या महालया पक्ष कहलाता है। हिंदू धर्म और वैदिक मान्यताओं में पितृ योनि की स्वीकृति और आस्था के कारण श्राद्ध का प्रचलन है।

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, पिंडदान मोक्ष प्राप्ति का एक सहज और सरल मार्ग है। ऐसे तो देश के कई स्थानों में पिंडदान किया जाता है, मगर बिहार के फल्गु तट पर बसे गया में पिंडदान का बहुत महत्व है। कहा जाता है कि भगवान राम और सीताजी ने भी राजा दशरथ की आत्मा की शांति के लिए गया में ही पिंडदान किया था।

गयावाल तीर्थव्रती सुधारिनी सभा के अध्यक्ष गजाधर लाल जी ने आईएएनएस को बताया, महाभारत में लिखा है कि फल्गु तीर्थ में स्नान करके जो मनुष्य श्राद्ध में भगवान गदाधर (भगवान विष्णु) का दर्शन करता है, वह पितरों के ऋण से विमुक्त हो जाता है।

उन्होंने बताया कि फल्गु श्राद्ध में पिंडदान, तर्पण और ब्राह्मण भोजन ये तीन मुख्य कार्य होते हैं। पितृपक्ष में कर्मकांड का विधि विधान अलग-अलग है। श्रद्धालु एक दिन, तीन दिन, सात दिन, पंद्रह दिन और 17 दिन का कर्मकांड करते हैं।

गया को विष्णु का नगर माना गया है। यह मोक्ष की भूमि कहलाती है। विष्णु पुराण और वायु पुराण में भी इसकी चर्चा की गई है। विष्णु पुराण के मुताबिक गया में पिंडदान करने से पूर्वजों को मोक्ष मिल जाता है और स्वर्गवास करते हैं। माना जाता है कि स्वयं विष्णु यहां पितृ देवता के रूप में मौजूद हैं, इसलिए इसे ‘पितृ तीर्थ’ भी कहा जाता है।

गया के गयापाल पंडा मनीलाल बारीक आईएएनएस को कहते हैं कि फल्गु नदी के तट पर पिंडदान किए बिना पिंडदान हो ही नहीं सकता। पिंडदान की प्रक्रिया पुनपुन नदी के किनारे से प्रारंभ होती है।

एक प्रचलित कथा के अनुसार, भस्मासुर के वंशज में गयासुर नामक राक्षस ने कठिन तपस्या कर ब्रह्मा जी से वरदान मांगा था कि उसका शरीर देवताओं की तरह पवित्र हो जाए और लोग उसके दर्शन मात्र से पाप मुक्त हो जाएं। इस वरदान के मिलने के बाद स्वर्ग की जनसंख्या बढ़ने लगी और प्राकृतिक नियम के विपरीत सबकुछ होने लगा। लोग बिना भय के पाप करने लगे और गयासुर के दर्शन से पाप मुक्त होने लगे।

इससे बचने के देवताओं ने यज्ञ के लिए पवित्र स्थल की मांग गयासुर से मांगी। गयासुर ने अपना शरीर देवताओं को यज्ञ के लिया दे दिया। जब ग्यासुर लेटा तो उसका श्शरीर पांच कोस में फैल गया। यही पांच कोस की जगह आगे चलकर गया बनी। परंतु गयासुर के मन से लोगों को पाप मुक्त करने की इच्छा नहीं गई और फिर उसने देवताओं से वरदान मांगा कि यह स्थान लोगों को तारने (मुक्ति) वाला बना रहे। लोग यहां पर किसी की मुक्ति की इच्छा से पिंडदान करें, उन्हें मुक्ति मिले।

यही कारण है कि आज भी लोग अपने पितरों को तारने के लिए पिंडदान के लिए गयाजी आते हैं।

कहा जाता है कि गया में पहले विभिन्न नामों के 360 वेदियां थीं, जहां पिंडदान किया जाता था। फिलहाल इनमें से अब 48 ही बची हैं। वर्तमान समय में इन्हीं वेदियों पर लोग पितरों का तर्पण और पिंडदान करते हैं। यहां की वेदियों में विष्णुपद मंदिर, फल्गु नदी के किनारे और अक्षयवट पर पिंडदान करना जरूरी माना जाता है।

उल्लेखनीय है कि देश में श्राद्ध के लिए हरिद्वार, गंगासागर, जगन्नाथपुरी, कुरुक्षेत्र, चित्रकूट, पुष्कर, बद्रीनाथ सहित कई स्थानों को महत्वपूर्ण माना गया है, लेकिन गया का स्थान उसमें सवरेपरि कहा गया है।

गरुड़ पुराण में कहा गया है कि गया जाने के लिए घर से निकलने पर चलने वाले एक-एक कदम पितरों के स्वर्गारोहण के लिए एक-एक सीढ़ी बनाते हैं।

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पीएम मोदी पर लिखी किताब के प्रचार के लिए स्मृति ईरानी चार देशों की यात्रा पर

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नई दिल्ली। पूर्व केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी एक नवीनतम पुस्तक ‘मोडायलॉग – कन्वर्सेशन्स फॉर ए विकसित भारत’ के प्रचार के लिए चार देशों की यात्रा पर रवाना हो गई हैं। यह दौरा 20 नवंबर को शुरू हुआ और इसका उद्देश्य ईरानी को मध्य पूर्व, ओमान और ब्रिटेन में रहने वाले भारतीय समुदाय के लोगों से जोड़ना है।

स्मृति ईरानी ने अपने एक्स अकाउंट पर लिखा कि,

एक बार फिर से आगे बढ़ते हुए, 4 देशों की रोमांचक पुस्तक यात्रा पर निकल पड़े हैं! 🇮🇳 जीवंत भारतीय प्रवासियों से जुड़ने, भारत की अपार संभावनाओं का जश्न मनाने और सार्थक बातचीत में शामिल होने के लिए उत्सुक हूँ। यह यात्रा सिर्फ़ एक किताब के बारे में नहीं है; यह कहानी कहने, विरासत और आकांक्षाओं के बारे में है जो हमें एकजुट करती हैं। बने रहिए क्योंकि मैं आप सभी के साथ इस अविश्वसनीय साहसिक यात्रा की झलकियाँ साझा करता हूँ

कुवैत, दुबई, ओमान और ब्रिटेन जाएंगी स्मृति ईरानी

डॉ. अश्विन फर्नांडिस द्वारा लिखित यह पुस्तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के शासन दर्शन पर प्रकाश डालती है तथा विकसित भारत के लिए उनके दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित करती है। कार्यक्रम के अनुसार ईरानी अपनी यात्रा के पहले चरण में कुवैत, दुबई, फिर ओमान और अंत में ब्रिटेन जाएंगी।

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