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बंगाल की जेलों में फंसे पड़े हैं बांग्लादेशी कैदी

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कोलकाता। भारत और बांग्लादेश के बीच सजायाफ्ता कैदियों की अदला-बदली के लिए एक संधि पर हस्ताक्षर हुए पांच साल से अधिक समय बीत चुका है। लेकिन जमीनी स्तर पर इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हो पाई है, क्योंकि यह समझौता अभी लागू नहीं हो पाया है और पश्चिम बंगाल के अधिकारी इसे लागू करने की मांग कर रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि जनवरी 2010 में इस समझौते पर हस्ताक्षर हुआ था। यह समझौता सजायाफ्ता विदेशी कैदियों को यह सुविधा देता है कि वे बाकी बची कारावास की अवधि अपने देश में काट सकते हैं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, भारत में 2014 में मौजूद 6,000 कैदियों में से 2,935 बंगाल की विभिन्न जेलों में कैद थे। देश में मौजूद विदेशी कैदियों की यह लगभग आधी संख्या है। इनमें 1,113 कैदी दोषी ठहराए जा चुके हैं। इन कैदियों में कुछ नाइजीरियाई और कुछ म्यांमार के रोहिंग्या मुसलमान हैं, बाकी सभी बांग्लादेशी हैं।

यह रुझान 2015 में भी बना हुआ है। राज्य की विभिन्न जेलों में लगभग 4,000 बांग्लादेशी कैद हैं। राज्य सुधारात्मक सेवा विभाग के ताजा रिकॉर्ड के अनुसार, राज्य में कुल 3757 बांग्लादेशी कैदी है, जिसमें 175 बच्चे हैं। इसे देखते हुए राज्य सुधारात्मक सेवा विभाग ने दोषियों की अदला-बदली पर हुए समझौते को लागू करने की मांग की है।

राज्य के पूर्व अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक (जेल) अधीर शर्मा ने कहा, “समझौते पर हस्ताक्षर हुए पांच साल से अधिक समय बीत चुका है, लेकिन दुर्भाग्य से कैदियों को स्थानांतरित करने के लिए जमीनी स्तर पर कुछ नहीं किया गया है। इस वर्ष अगस्त तक कम से कम 1,000 बांग्लादेशी कैदी अपनी सजा बांग्लादेश में काटने की औपचारिक रूप से इच्छा व्यक्त कर चुके हैं, लेकिन केंद्र सरकार ने अबतक इस पर कोई कार्रवाई नहीं की है।”

अधीर शर्मा कुछ समय से इस समझौते को लागू करने की वकालत कर रहे हैं। शर्मा ने कहा, “एनसीआरबी के अनुमान के मुताबिक, एक कैदी पर 25,000 रुपये से अधिक खर्च आता है और विदेशी कैदियों की बड़ी संख्या के कारण राज्य को इन कैदियों पर लगभग 10 करोड़ रुपये हर वर्ष अनावश्यक रूप से खर्च करना पड़ता है। वह भी तब जब हमारे पास उन्हें उनके देश भेजने का विकल्प मौजूद है, जहां वह अपनी सजा काट सकते हैं।”

चूंकि अधिकांश सुधार गृहों में कैदियों की संख्या क्षमता से ज्यादा हो गई है, लिहाजा अधिकारियों का कहना है कि अब इस समझौते का क्रियान्वयन अपरिहार्य है। कई भारतीय कैदी भी, खासतौर से बंगाल के, बांग्लादेशी जेलों में बंद है। लिहाजा शर्मा ने भारत और बांग्लादेश में कैदियों की एक सूची बनाने और उसका आदान-प्रदान करने का भी प्रस्ताव रखा है। शर्मा ने बांग्लादेशी नागरिकों के लिए वाणिज्यदूत संकर्प पर एक बैठक की अध्यक्षता की है।

शर्मा ने कहा, “वाणिज्यदूत संपर्क पर हुए समझौते के अनुसार, भारत और पाकिस्तान अपने यहां एक-दूसरे देशों के गिरफ्तार, हिरासत में या कैद नागरिकों की एक सूची बनाते हैं और साल में दो बार इस सूची का अदान-प्रदान किया जाता है।” शर्मा फिलहाल एडीजी (दूरसंचार) हैं। उन्होंने कहा, “बैठक में बांग्लादेशी उच्चायोग के प्रतिनिधि के समक्ष इसी तरह के एक समझौते का एक प्रस्ताव पेश किया गया। इस तरह की एक सूची बनाने से प्रत्यर्पण और निर्वासन में सुविधा होगी।”

बांग्लादेशी उच्चायोग में द्वितीय सचिव मौसमी वस ने इस प्रस्ताव पर टिप्पणी करते हुए कहा कि इस मुद्दे को ढाका में अधिकारियों के समक्ष उठाया जा चुका है। वस ने कहा, “हमने इस मुद्दे पर चर्चा की। लेकिन जब तक भारत की ओर से कोई आधिकारिक प्रस्ताव नहीं आता, तब तक हम कार्रवाई नहीं कर सकते। जब भी कोई औपचारिक प्रस्ताव आएगा, हम उसकी संभावना पर विचार कर सकते हैं।”

जेल अधिकारियों ने सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) से भी अनुरोध किया है कि वे इस मुद्दे पर बॉर्डर गार्ड बांग्लादेश (बीजीबी) से बात करें। बीएसएफ के एक अधिकारी ने कहा, “फ्लैग मीटिंग में हम बांग्लादेश में मौजूद भारतीय कैदियों की सूची बनाने और उसे उपलब्ध कराने का मुद्दा लगातार उठाते हैं। लेकिन बीजीबी केंद्र सरकार से एक औपचारिक प्रस्ताव चाहता है।”

बांग्लादेशी कैदियों की एक बड़ी संख्या अवैध रूप से सीमा पार करने के लिए गिरफ्तार किए गए लोगों की है। बीएसएफ इस वर्ष अब तक राज्य में 4,078 बांग्लादेशियों को गिरफ्तार कर चुका है। उनमें से ज्यादातर अवैध रूप से सीमा पार करने के लिए गिरफ्तार हुए। लेकिन लगभग 200 को सीमा पार से तस्करी करने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। वर्तमान समय में 275 ऐसे बांग्लादेशी कैदी हैं, जो अपनी सजा पूरी कर चुके हैं, फिर भी जेलों में कैद हैं।

लगभग 300 दूसरे देशों के कैदी भी हैं, जिन्हें दोषी ठहराया जा चुका है। वे अपनी सजा पूरी कर चुके हैं, लेकिन जेलों में फंसे पड़े हैं। इसमें कुछ रोहिंग्या मुसलमान भी हैं। एक सुधार गृह के एक अधिकारी ने कहा, “रोहिंग्या के बारे में केंद्र सरकार अभी उन्हें शरणार्थी का दर्जा देने पर विचार करने वाली है। इसलिए वे अपनी सजा पूरी करने के बावजूद जेलों में पड़े हुए हैं। बांग्लादेशियों के मामले में, कइयों के पास अपने देश लौटने के लिए कोई ठिकाना नहीं है। इसलिए वे अभी भी जेलों में पड़े हुए हैं।”

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बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या पर कर्नाटक में FIR दर्ज, फेक न्यूज फैलाने का है आरोप

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बेंगलुरु। बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या पर कर्नाटक में एफआईआर दर्ज हुई है। तेजस्वी पर एक किसान की आत्महत्या के मामले को वक्फ बोर्ड के साथ भूमि विवाद से जोड़कर फर्जी खबर फैलाने का आरोप है। पुलिस ने स्पष्ट किया कि किसान की आत्महत्या का कारण कर्ज और फसल खराबी था, न कि जमीन का विवाद। इस मामले ने कर्नाटक में राजनीति को गरमा दिया है।

हावेरी जिले के पुलिस अधीक्षक ने इस मामले में बताया कि किसान की मौत जनवरी 2022 में हुई थी। उन्होंने कहा कि किसान ने आत्महत्या की वजह कर्ज और फसल नुकसान बताया गया था। पुलिस ने मामले की जांच पूरी करके रिपोर्ट भी प्रस्तुत कर दी थी। सूर्या की पोस्ट के बाद इस घटना को लेकर राजनीतिक हलचल तेज हो गई, और सोशल मीडिया पर चर्चाएं शुरू हो गईं।

कन्नड़ न्यूज पोर्टल के संपादकों पर भी FIR दर्ज

इस मामले में केवल तेजस्वी सूर्या ही नहीं, बल्कि दो कन्नड़ न्यूज़ पोर्टल के संपादकों के खिलाफ भी FIR दर्ज की गई है। इन पोर्टल्स ने एक हेडलाइन में दावा किया कि किसान की आत्महत्या वक्फ बोर्ड के भूमि विवाद से जुड़ी थी। पुलिस का कहना है कि इस प्रकार की गलत जानकारी किसानों में तनाव फैला सकती है और इसीलिए मामला दर्ज किया गया है।

वहीँ एफआईआर दर्ज होने के बाद तेजस्वी सूर्या ने इसपर सफाई दी है। उन्होंने कहा कि हाल ही में वक्फ भूमि के नोटिसों ने किसानों के बीच चिंता बढ़ाई है, जिसके चलते उन्होंने प्रारंभिक रिपोर्ट पर विश्वास किया।

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