प्रादेशिक
बुंदेलखंड में चुनाव पार्टी नहीं, उम्मीदवार पर निर्भर !
झांसी | उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में 2017 का विधानसभा चुनाव ऐसा चुनाव होगा, जो पार्टी के आधार पर नहीं बल्कि उम्मीदवार की सक्रियता, जनता के बीच पैठ, जातीय समीकरण और छवि के चलते जीता जा सकेगा, क्योंकि यहां किसी दल के पक्ष या विपक्ष में कोई माहौल नहीं है।
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड के सात जिलों में 19 सीटें हैं। वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव पर नजर दौड़ाई जाए तो एक बात साफ हो जाती है कि यहां बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और समाजवादी में बराबरी का मुकाबला था। बसपा ने जहां सात सीटों पर कब्जा जमाया था, वहीं समाजवादी पार्टी के खाते में कुल छह सीटें आई थीं। इसके अलावा कांग्रेस चार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को दो सीटें मिली थीं। उसके बाद एक उपचुनाव में सपा ने चरखारी सीट भाजपा से छीन ली थी।
इस बार के चुनाव की तस्वीर पिछले चुनाव से जुदा है, क्योंकि सपा और कांग्रेस मिलकर चुनाव लड़ रहे हैं। 19 सीटों में जो बंटवारा हुआ है, उसमें आठ सीटें कांग्रेस और 11 सीटें सपा के हिस्से में आई हैं।
वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा का मानना है कि इस बार का चुनाव विशुद्ध तौर पर उम्मीदवार आधारित चुनाव है, क्योंकि न तो किसी दल के पक्ष में माहौल है और न ही विरोध में। इस तरह उम्मीदवार की छवि अहम होने वाली है तो दूसरी ओर उसका जातीय वोट बैंक हार-जीत में बड़ी भूमिका निभा सकता है।
सपा और कांग्रेस को पिछले चुनाव में मिली कुल सीटों को जोड़ दिया जाए तो वह 11 सीटें (उपचुनाव सहित) हो जाती है। इस बार गठबंधन से नतीजों में कितना बदलाव आएगा, इस पर शर्मा का कहना है कि यह तो होने वाला नहीं है कि गठबंधन को उतनी सीटें मिल जाएं, जितनी दोनों की अलग-अलग लड़ने पर मिली थी, फिर भी चुनाव रोचक रहने वाला है।
बुंदेलखंड में 23 फरवरी को मतदान होना है। नामांकन छह फरवरी तक भरे जाना है। अभी यहां चुनावी रंग कहीं भी नजर नहीं आ रहा है। युवा कारोबारी ललित मिश्रा का कहना है कि इस बार के चुनाव में हार-जीत का आकलन करना किसी भी राजनीतिक पंडित के लिए आसान नहीं है, ऐसा इसलिए क्योंकि न तो अखिलेश सरकार के प्रति ‘एंटी इन्कम्बेंसी’ है और न ही नोटबंदी से भाजपा के खिलाफ असंतोष। लिहाजा, यह चुनाव पूरी तरह उम्मीदवार पर निर्भर करने वाला है।
बुंदेलखंड में सपा-कांग्रेस के गठबंधन के चलते इस बार त्रिकोणीय मुकाबला होना तय है, क्योंकि यहां अन्य कोई क्षेत्रीय दल सक्रिय नहीं है। पिछले चुनाव में तो यहां चतुष्कोणीय मुकाबला था। मतदान की तारीख करीब आने के साथ तस्वीर भी उजली होने लगेगी, मगर फिलहाल तो न चुनावी रंग है और न ही मतदाताओं में चुनाव को लेकर कोई उत्साह।
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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई
नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।
बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।
बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।
ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।
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