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प्रादेशिक

मांझी और भाजपा आ रहे करीब

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बिहार,जनता परिवार,माथापच्ची,प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी,मांझी,भाजपा,नीतीश कुमार और लालू प्रसाद

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बिहार में जनता परिवार के विलय पर महीनों से माथापच्ची चल रही है, लेकिन फिलहाल कोई रास्ता नहीं निकल सका है। दूसरी ओर, भाजपा और पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी गठबंधन की दिशा में आगे निकलने की तैयारी कर रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मांझी की मुलाकात को इसी नजर से देखा जा रहा है। नीतीश कुमार और लालू प्रसाद के बीच तालमेल हो भी गया तो अविश्वास की खाई को पाटना असंभव होगा, जबकि भाजपा और मांझी के बीच ऐसा कोई अविश्वास नहीं है।

चुनावी गणित के हिसाब से गठबंधन का लाभ मांझी और भाजपा दोनों को होगा। मांझी ने मुख्यमंत्री रहते हुए दलितों के बीच अच्छी छवि और पैठ बना ली है, लेकिन अकेले लड़ने से उन्हें इसका फायदा नहीं मिलेगा। वह ऐलान कर चुके हैं कि जिस गठबंधन में नीतीश होंगे, उसमें वह शामिल नहीं होंगे। इसके बाद माना जा सकता है कि उनका भाजपा से गठबंधन हो सकता है। ऐसी स्थिति में भाजपा के खाते में दलित वोट भी जुड़ेगा। भाजपा से अलग होने के बाद नीतीश कुमार एक दिन भी चैन से बैठ नहीं सके। पहले संख्या और फिर सुशासन, दोनों को लेकर वह निश्चिंत थे। अब उसी को लेकर परेशान हैं। मतलब भाजपा से अलग होने का फैसला न उनके हित में रहा, न इससे बिहार का भला हुआ। यह जनादेश की अवहेलना का परिणाम था, जिसे नीतीश समझ नहीं सके।

बिहार के मतदाताओं ने राजग को पूर्ण बहुमत से सरकार चलाने का जनादेश दिया था। जाहिर है, तब संख्याबल उनके साथ था। राजग सरकार का नेतृत्व करते हुए ही सुशासन-बाबू की छवि बनी थी। अब तीन हजार करोड़ रुपये का चावल घोटाला उनका पीछा कर रहा है। लोकसभा चुनाव में मात्र दो सीटों पर संतोष करना पड़ा। विधानसभा में उनका समर्थन लेकर सरकार चलानी पड़ रही है, जिन्हें वह जंगलराज का संस्थापक मानते थे। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के साथ गठबंधन की बात चल रही है, लेकिन नीतीश अपने को अकेला महसूस कर रहे हैं। उन्हें समझ आ गया है कि लालू यादव के साथ दल का गठबंधन या विलय भले हो जाए, दिल का मिलन संभव ही नहीं है। इस तरह जहां तक दिल का मामला है, नीतीश अकेले पड़ते जा रहे हैं। राजद का कोई भी नेता या कार्यकर्ता उन्हें मुख्यमंत्री पद पर देखना नहीं चाहता। यह मानसिकता ऊपर से लेकर निचले स्तर तक कार्यकर्ताओं में है। लालू के प्रति यही मानसिकता नीतीश के जद (यू) में ऊपर से नीचे तक व्याप्त है। ऐसे में अगर गठबंधन हुआ, तब भी यह एक-दूसरे को हराने के लिए काम

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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई

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नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।

बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।

बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।

ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।

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