प्रादेशिक
मुलायम के दांव से कई खेमो में खलबली, गठबंधन राजनीति की तरफ बढे कदम
अथर्व
लखनऊ। सूबे में चुनावी आहट सुनाई देने लगी है। नेताओ के सुर बदलने लगे हैं। गठबंधन की कवायद भी शुरू हो रही है। सूबे में चुनाव आयोग भी कदमताल करने लगा है। उत्तर प्रदेश में भले ही चुनाव होने में चार महीने बाक़ी है। हलचल अभी से शुरू हो गयी है। जहाँ एक ओर लोहियावादी, चरणसिंह वादी और गांधीवादी एक छाते के नीचे इकट्ठा होने लगे हैं।
सपा सुप्रीमो मुलायम सिंह यादव ने अपने अनुज शिवपाल सिंह को अपना दूत बना बनाकर कवायद शुरू कर दी है। पहले चरण की वार्ता भी शुरू हो गयी है। पश्चिम उत्तर प्रदेश के छत्तरप चौधरी अजित सिंह जाट बेल्ट में अपनी खोई हुई जमीन पाने को बेताब दिख रहे हैं।
2014 में लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने जाट बिरादरी में सेंध लगाते हुए क्लीन स्वीप किया था। जहाँ अजीत सिंह और उनके बेटे जयंत भी अपनी सीट बचा नहीं पाए। पूरे प्रदेश में सिर्फ गाँधी परिवार के सोनिया गांधी और राहुल गाँधी अमेठी और रायबरेली पर अपना परचम फहरा पाए और पूरे प्रदेश में उनके प्रत्याशी अपनी अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए।
समाजवादी पार्टी से सिर्फ मुलायम सिंह का कुनबा ही लोकसभा तक पहुच सका। सबसे बुरी पोजीशन तो दलित वोट की राजनीत करने वाली बसपा की हुई। मायावती का तो खाता ही नही खुल सका। उनके सारे प्रत्याशी बुरी तरह से पराजित हुए।
ऐसे में राजनेताओं को सफलता उसी को मिलती दिख रही है जो वोटो का बिखराव रोक सके। खासकर अपनी बिरादरी और निर्यायक वोटो को। सूबे का मुसलमान वोट उसी पार्टी की तरफ झुकता दिखेगा जो भाजपा को पटकनी देती हई दिखेगी। ऐसी स्थिति को मुलायम सिंह बखूबी भांप गए हैं। इसलिए उनकी गठबंधन की कवायद तेज हो गयी है।
उनके दांव से बसपा और भाजपा में खलबली मच गयी है। अमित शाह की पेशानी पे बल पड़ने लगे हैं। इसलिए उन्होंने भी जाट लैंड से चुनावी शुरुवात कर दी है। अपने समीकरण ठीक कर रहें हैं। दूसरी तरफ दलित वोट के साथ साथ और वोट जुटाने की कवायद मायावती ने शुरू कर दी है।
बसपा से कई बड़े नेताओ के नाता तोड़ने से मायावती के कई समीकरण बिगड़ गए हैं। उन्हे दुरुस्त करना आसान नहीं दिख रहा है। स्वामी प्रसाद मौर्या, आरके चौधरी, ब्रजेश पाठक, जुगल किशोर जैसे तमाम पुराने बसपाइयों के जाने से माया को झटका लगा है। ब्राह्मण वोट 2007 की तरह बसपा की तरफ झुकता नहीं दिख रहा है। उनका बसपा से मोहभंग हुआ है। अब देखना यह होगा की भविष्य में मुलायम का दांव कितना कारगर होगा ।
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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई
नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।
बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।
बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।
ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।
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