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प्रादेशिक

यूपी: सरकारी धान खरीद नीति स्पष्ट नहीं, बेहतरीन पैदावार के बावजूद अन्नदाता परेशान

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rice productionलखनऊ। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव एक तरफ जहां यह दावा कर रहे हैं कि राज्य सरकार गांव, गरीब और किसानों के हितों के लिए काम कर रही है, लेकिन ये दावे खोखले साबित हो रहे हैं। उत्तर प्रदेश में धान की मंदी की वजह से किसान परेशान हैं और इस वजह से चावल निर्यात में भी कमी आई है।

अब एक तरफ जहां किसान आशा भरी निगाहों से सरकार की तरफ देख रहा है, वहीं निर्यातक भी सरकार की निर्यात नीति को लेकर उलझन में हैं। धान की पैदावार अच्छी होने से अच्छे दिन की आस लगाए किसान जब धान की पैदावार लेकर मंडियों में पहुंच रहे हैं, तो उन्हें निराशा ही हाथ लग रही है। बाजार में साधारण धान 1,300 रुपये प्रति क्विंटल है, जबकि बासमती 1,700 रुपये प्रति क्विंटल से अधिक कीमत में नहीं बिक पा रहा है। हालांकि सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,470 रुपये निर्धारित किया है, लेकिन सरकारी क्रय केंद्रों पर धान की खरीद नहीं हो रही है, इसीलिए किसान परेशान हैं।

धान के निर्यात के कारोबार से जुड़े लोग बताते हैं कि 2 वर्ष के भीतर चावल निर्यात में 20 फीसदी की कमी आई है। प्रदेश की करीब 50 फीसदी चावल निर्यात कंपनियां अपना कारोबार समेट चुकी हैं, जिससे किसानों के सामने यह मुश्किल आ रही है।

बागपत जिले के किसान व्यापारी गजेंद्र सिंह ने कहा, राइस मिलों के लगातार बंद होने से किसानों के सामने मुश्किलें पैदा हो रही हैं। इससे धान की बिक्री के समय उचित दाम नहीं मिल पाता। सरकार ने क्रय केंद्र खोले नहीं और मंडी में खरीदार मिल नहीं रहे हैं।

आंवला जिले के किसान हरिओम शर्मा ने कुछ इसी तरह की परेशानी बताई। उन्होंने कहा कि बासमती धान सरकार भी नहीं खरीदती, इसीलिए पूरी तरह से किसान को आढ़तियों के भरोसे ही रहना पड़ता है।

शर्मा ने कहा कि पिछले वर्ष 2012-13 में जो बासमती धान 2,500 रुपये प्रति क्विंटल था, वह इस वर्ष 1,700 रुपये प्रति क्विंटल की दर से अधिक पर नहीं बिक रहा है।

राइस मिल एसोसिएशन के पदाधिकारी संजीव अग्रवाल के मुताबिक, सरकार की खरीद नीति स्पष्ट न होने की वजह से व्यापारी भी धान खरीदने से कतरा रहे हैं। 2012 में चावल निर्यात नीति पांच वर्ष के लिए लागू की गई थी। इसकी अवधि अगले वर्ष समाप्त होगी, लेकिन सरकार की ओर से अवधि बढ़ाने का फैसला सरकार की ओर से न लिए जाने की वजह से व्यापारी भी दुविधा में हैं।

उप्र राइस एक्सपोर्ट एसोसिएशन के उपाध्यक्ष अजय भलोटिया के मुताबिक, बासमती धान के उत्पादन में 35 फीसदी भागीदारी के बावजूद प्रदेश से निर्यात में हिस्सा महज छह प्रतिशत है। निर्यात नीति देर से लागू होने की वजह से पहले वर्ष कोई लाभ नहीं मिल सका और अब अंतिम वर्ष में निर्यातक एक बार फिर उलझन में हैं।

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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई

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नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।

बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।

बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।

ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।

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