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56 साल पुराना सिंधु जल समझौता रद्द कर सकता है भारत, पाक को लगेगा करारा झटका

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Indus riverनई दिल्ली। भारत का कहना है कि 1960 की सिंधु जल संधि के कार्यान्वयन पर मतभेद है, एक ऐसा मतभेद जिसे इसे विश्व बैंक के तत्वावधान में एक अंतरराष्ट्रीय न्यायाधिकरण में भेजा जा चुका है। यह मुद्दा उड़ी में सेना के एक शिविर पर सीमा पार से आतंकी हमले के बाद पाकिस्तान के साथ पैदा हुए हालिया तनाव की वजह से फिर चर्चा में है। गुरुवार को भारत ने इस मुद्दे को यह कहते हुए उठाया कि कोई भी संधि एकतरफा नहीं हो सकती। तो, क्या है यह सिंधु जल संधि?

सिंधु जल संधि पानी के बंटवारे की वह व्यवस्था है जिस पर 19 सितम्बर, 1960 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने कराची में हस्ताक्षर किए थे। इसमें छह नदियों ब्यास, रावी, सतलुज, सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के वितरण और इस्तेमाल करने के अधिकार शामिल हैं। इस समझौते के लिए विश्व बैंक ने मध्यस्थता की थी।

समझौते पर हस्ताक्षर क्यों किया गया था?
इस समझौते पर इसलिए हस्ताक्षर किया गया क्योंकि सिंधु बेसिन की सभी नदियों के स्रोत भारत में हैं (सिंधु और सतलुज हालांकि चीन से निकलती हैं)। समझौते के तहत भारत को सिंचाई, परिवहन और बिजली उत्पादन के लिए इन नदियों का उपयोग करने की अनुमति दी गई है, जबकि भारत को इन नदियों पर परियोजनाओं का निर्माण करने के लिए काफी बारीकी से शर्ते तय की गईं कि भारत क्या कर सकता है और क्या नहीं कर सकता है। पाकिस्तान को डर था कि भारत के साथ अगर युद्ध होता है तो वह पाकिस्तान में सूखे की आशंका पैदा कर सकता है। इसलिए इस संबंध में एक स्थायी सिंधु आयोग का गठन किया गया। बाद में दोनों देशों के बीच तीन युद्ध हुए, लेकिन एक द्विपक्षीय तंत्र होने से सिंधु जल संधि पर किसी विवाद की नौबत नहीं आई। इसके तहत दोनों देशों के अधिकारी आंकड़ों का आदान-प्रदान करते हैं, इन नदियों का एक-दूसरे के यहां जाकर निरीक्षण करते हैं तथा किसी छोटे-मोटे विवाद को आपस में ही सुलझा लेते हैं।

इस समझौते में क्या है?
इस संधि के तहत तीन पूर्वी नदियां ब्यास, रावी और सतलुज के पानी का इस्तेमाल भारत बिना किसी बाधा के कर सकता है। वहीं, तीन पश्चिमी नदियां सिंधु, चिनाब और झेलम पाकिस्तान को आवंटित की गईं हैं। भारत हालांकि इन पश्चिमी नदियों के पानी को भी अपने इस्तेमाल के लिए रोक सकता है, लेकिन इसकी सीमा 36 लाख एकड़ फीट रखी गई है। हालांकि भारत ने अभी तक इसके पानी को रोका नहीं है। इसके अलावा भारत इन पश्चिमी नदियों के पानी से 7 लाख एकड़ जमीन में लगी फसलों की सिंचाई कर सकता है।

क्या कोई विवाद है?
दोनों देशों के बिना किसी बड़े विवाद के इस संधि के तहत पानी का बंटवारा चलता रहा है। लेकिन, विशेषज्ञों का कहना है कि इस समझौते से भारत को एकतरफा नुकसान हुआ है और उसे छह सिंधु नदियों की जल व्यवस्था का महज 20 फीसदी पानी ही मिला है। पाकिस्तान ने इसी साल जुलाई में भारत द्वारा झेलम और चिनाब नदियों पर जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण करने तैयारी की आशंका में अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता की मांग की थी। हालांकि, इस समझौते को सबसे सफल जल बंटवारे समझौतों में से एक के रूप में देखा जाता है लेकिन अब दोनों दक्षिण एशियाई पड़ोसियों के बीच मौजूदा तनाव में यह समझौता टूटने की आशंका पैदा हो गई है। सामरिक मामलों और सुरक्षा विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य के युद्ध पानी के लिए लड़े जाएंगे।

क्या भारत इस समझौते को रद्द कर सकता है?
इसकी संभावना नहीं है। दोनों देशों के बीच तीन युद्धों के बावजूद यह संधि बनी रही है। हालांकि, गुरुवार को भारत ने इस मुद्दे को उठाया, कहा कि कोई भी संधि दोनों पक्षों के बीच आपसी सहयोग और विश्वास पर ही टिकी होती है। लेकिन, यह किसी वास्तविक खतरे की तुलना में दबाव बनाने की रणनीति ज्यादा प्रतीत होती है। ऐसा भारत पहले भी कह चुका है। अगर भारत इसे रद्द करेगा तो दुनिया के शक्तिशाली देश इसकी आलोचना करेंगे क्योंकि यह समझौते कई मुश्किल हालात में भी टिका रहा है।

समझौता रद्द करने के अलावा भारत क्या कर सकता है?
कुछ विशेषज्ञों ने कहा है कि यदि भारत पश्चिमी नदियों के पानी का भंडारण शुरू कर दे (संधि के तहत जिसकी इजाजता है, भारत 36 लाख एकड़ फीट का इस्तेमाल कर सकता है) तो पाकिस्तान के लिए कड़ा संदेश होगा। पाकिस्तान इस मामले में भारत द्वारा कुछ करने की आहट से ही अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता के लिए दौड़ पड़ता है। इससे उस पर काफी दबाव पड़ेगा।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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