ऑफ़बीट
8 वर्ष की उम्र से ही खेतों में बंदूकें बोते थे भगत सिंह, ये थी पूरी कहानी
ये दिल उन्हे तहे-ए-दिल से सलाम करता है
जो अपना लहू इस वतन को कुर्बान करता है
कभी भगत कभी खुदीराम तो कभी राजगुरु, सुखदेव जैसा क्रांतिकारी बन
मुश्किल राहों पर भी वो डटकर दुश्मन पे वार करता है
खुद मिटकर वो रोशन जहां करता है
उगता हुआ सूरज भी सबसे पहले उसे प्रणाम करता है- (चारू खरे )
नई दिल्ली। आज देश अपना 69 वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। हर देशवासी के लिए ये सम्मान का दिन है लेकिन हम आज जो गणतंत्र दिवस मना रहे हैं, स्वतंत्र होने की एहसास कर रहे हैं वो कहीं न कहीं हमें कुछ लोगों की कुर्बानी से हासिल हुई है। देश की सेवा में हमारे वीर सैनिक अपनी जान देकर देश की रक्षा करते हैं। हमारी आज़ादी और निश्चितता से रहने के लिए वो अपने आज को कुर्बान कर देते हैं। वो रात-दिन सरहद पर तैनात रहते हैं ताकि हम अच्छी नींद सो सकें।
आज हम एक ऐसे ही वीर जवान क्रांतिकारी ‘भगत सिंह’ की बात करेंगे, जिनकी विस्मृतियाँ आज किन्हीं कोनों में धूल खा रही हैं।
आजादी का वो मतवाला जो सिर्फ अपने दिलों दिमाग की सुनता था। उसका जन्म 27 सितंबर, 1907 को लायलपुर ज़िले के बंगा में (अब पाकिस्तान में) हुआ था। उनका पैतृक गांव खट्कड़ कलाँ है जो पंजाब, भारत में है। उनके पिता का नाम किशन सिंह और माता का नाम विद्यावती था। भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। भगत सिंह करतार सिंह सराभा और लाला लाजपत राय से अत्याधिक प्रभावित रहे।
जिस उम्र में आज के युवा अपनी जिंदगी हाथ में स्मार्टफ़ोन और कान में ईयरफोन लगा कर बिता देते है उस उम्र में इस युवा ने अपने खेतों में चाचा अजित सिंह के साथ बंदूके बोना शुरू कर दी थी। आज भी उनकी स्मृतियों का वो वाकया याद आता है जब चाचा अजित सिंह ने भगत से पूछा था- बेटा तुम रोज बंदूके जमीं में क्यों बोते हो।
कहते हैं ‘पूत के पांव पालने में ही दिखाई पड़ जाते हैं’।
पांच वर्ष की बाल अवस्था में ही भगतसिंह के खेल भी अनोखे थे। वह अपने साथियों को दो टोलियों में बांट देता था और वे परस्पर एक-दूसरे पर आक्रमण करके युद्ध का अभ्यास किया करते। भगतसिंह के हर कार्य में उसके वीर, धीर और निर्भीक होने का आभास मिलता था।
चाचा के इस सवाल पर वो मुस्कुराए और बोले- चाचा मैं इन ढेर सारी बंदूकों से इन अंग्रेजों का सफाया कर अपनी मातृभूमि की रक्षा करूँगा उनके इस जवाब ने चाचा अजित को भी चकित कर दिया अब तो वो भी ये बात समझ चुके थे कि भगत सिंह की सच्ची देशभक्ति के आगे उनकी छोटी उम्र का कोई मोल नहीं रह गया था।
उनके चाचा सरदार अजित सिंह ने भारतीय देशभक्त संघ की स्थापना की थी। अजित सिंह के खिलाफ 22 मामले दर्ज हो चुके थे जिसके कारण वो ईरान पलायन के लिए मजबूर हो गए। उनके परिवार ग़दर पार्टी के समर्थक थे और इसी कारण से बचपन से ही भगत सिंह के दिल में देश भक्ति की भावना उत्पन्न हो गयी।
13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह के बाल मन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाला। उनका मन इस अमानवीय कृत्य को देख देश को स्वतंत्र करवाने की सोचने लगा। भगत सिंह ने चंद्रशेखर आज़ाद के साथ मिलकर क्रांतिकारी संगठन तैयार किया।
लाहौर षड़यंत्र मामले में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को फांसी की सज़ा सुनाई गई और बटुकेश्वर दत्त को आजीवन कारावास दिया गया। भगत सिंह को 23 मार्च, 1931 की शाम सात बजे सुखदेव और राजगुरू के साथ फांसी पर लटका दिया गया। तीनों ने हंसते-हँसते देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया और हम सबको अलविदा कह गए।
भगत सिंह नास्तिक थे वो भगवान में विश्वास नहीं रखते थे द पीपल” में 27 सितम्बर 1931 के अंक में प्रकाशित अंक में भगतसिंह ने ईश्वर के बारे में अनेक तर्क किए हैं। इसमें सामाजिक परिस्थितियों का भी विश्लेषण किया गया है।
खैर मुद्दा ये नहीं है कि भगत सिंह ने इस देश को क्या दिया मुद्दा तो ये है की हम उन्हें और उनकी यादों को क्या दे रहे है? क्या आज का युवा उनके द्वारा दिए गए त्यागों से परिचित है? क्या हम और आप उन्हे उतना ही सम्मान दे रहे है जितने के वो हकदार है?
अगर ये सवाल आप खुद से करें तो शायद जवाब ‘न’ ही होगा क्योंकि सच तो भगत सिंह पर आधारित फिल्म के उस फ़िल्मी डायलाग में छिपा है जिसमें भगत सिंह की भूमिका निभाने वाले भगत सिंह कहते है- ‘ आज ये अंग्रेज हमारे देश को खटमल की तरह चूस रहे है कल इस देश में जो भी सत्ता की गद्दी संभालेगा वो हर कोई इस देश को बर्बादी की राह पर ले जाएगा।
वैसे तो कहने को यह एक फ़िल्मी डायलाग है पर इस डायलाग में छिपी सच की मात्रा का आंकलन हम स्वं ही कर सकते है।
गुजारिश तो बस अब इतनी है कि आज का युवा ऐसे लोगों को देखकर इन क्रांतिकारियों के त्याग, बलिदान, आत्मसमर्पण की स्मृतियों को धूमिल न करें
“उसे यह फ़िक्र है हरदम,
नया तर्जे-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक देखें,
सितम की इंतहा क्या है?- भगत सिंह
इन्कलाब जिंदाबाद
(article by charu khare)
ऑफ़बीट
आ गई आईपीएल की डेट, 14 मार्च को पहला मैच, जानें कब खेला जाएगा फाइनल
नई दिल्ली। आईपीएल का अगला सीजन 14 मार्च से शुरू होगा और इसका फाइनल 25 मई को खेला जाएगा। IPL ने इसकी जानकारी टीमों को गुरुवार को भेजे ईमेल में दी है। क्रिकइंफो के मुताबिक, IPL ने सभी टीमों को अगले तीन सीजन का ड्राफ्ट शेड्यूल भेजा है, लेकिन संभावना है कि ये अंतिम तारीखें होंगी।
2025 के सीज़न में पिछले तीन सीज़न की तरह ही 74 मैच खेले जाएंगे। हालांकि 2022 में आईपीएल द्वारा 2023-27 के चक्र के लिए बेचे गए मीडिया राइट्स में 84 मैच खेले जाने का ज़िक्र था।
आईपीएल ऑक्शन पर सभी की निगाहें
दुनिया की सबसे बड़ी क्रिकेटिंग लीग आईपीएल का फैंस का हमेशा बेसब्री से इंतजार रहता है। आईपीएल दुनिया भर के क्रिकेटरों को एक शानदार मंच देता है। यहां खेलने वाले खिलाड़ियों को पैसा और शोहरत दोनों चीजें मिलती हैं। आईपीएल रिटेंशन के बाद अब फैंस की निगाहें मेगा ऑक्शन पर टिकी हुई हैं। इस ऑक्शन में कई फ्रेंचाइजी पूरी तरह से नया स्क्वाड बनाएंगी और कई प्लेयर्स के सबसे महंगे भी खरीदे जाने की उम्मीद है।
इस बार की मेगा ऑक्शन में 574 खिलाड़ियों का भविष्य दांव पर होगा, जिसमें 366 भारतीय जबकि 208 विदेशी खिलाड़ी शामिल हैं। कुल 330 अनकैप्ड खिलाड़ी इस नीलामी का हिस्सा होंगे, जिसमें 318 भारतीय और 12 विदेशी खिलाड़ी शामिल हैं। 10 टीमों में 204 खिलाड़ियों के लिए स्लॉट खाली हैं, जिसमें 70 विदेशी खिलाड़ी जगह बना सकते हैं। बड़ी नीलामी 24 नवंबर को भारतीय समयानुसार दोपहर 3.30 बजे शुरू होगी।
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