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उत्तराखंड

नमामि गंगे प्रोजेक्ट की टीम में आईआईटी रुड़की के प्रोफेसर भी

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नमामि गंगे प्रोजेक्ट की टीम, आईआईटी रुड़की के प्रो. कमल जैन, थिंक टैंक के तौर पर शामिल

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नमामि गंगे प्रोजेक्ट की टीम, आईआईटी रुड़की के प्रो. कमल जैन, थिंक टैंक के तौर पर शामिल

देहरादून। गंगा की सफाई के लिए चलाए जा रहे नमामि गंगे अभियान में आईआईटी रुड़की के सिविल इंजीनियरिंग विभाग के प्रो. कमल जैन को भी शामिल किया गया है। उन्हें इस प्रोजेक्ट में थिंक टैंक के तौर पर शामिल किया गया है। जल संसाधन मंत्रालय ने इस संबंध में दस सदस्यीय टीम का गठन किया है। प्रो. जैन के अनुसार उन्हें इस संबंध में मंत्रालय का पत्र मिला है। प्रो. जैन बिट्स पिलानी से सिविल इंजीनियरिंग किये हुए हैं और पिछले तीन दशक से आईआईटी रुड़की में सिविल इंजीनियरिंग पढ़ा रहे हैं। उनके अनुभव का लाभ मंत्रालय नमामि गंगे प्रोजेक्ट में ले रहा है।

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उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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