बिजनेस
सिक्का का इंफोसिस के सीईओ पद से इस्तीफा, नकारात्मक टिपप्णियों को बताया वजह
बेंगलुरु, 18 अगस्त (आईएएनएस)| विशाल सिक्का ने शुक्रवार को प्रमुख वैश्विक सॉफ्टवेयर कंपनी इंफोसिस के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) और प्रबंध निदेशक (एमडी) के पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने काम में डाली जा रही लगातार बाधाओं और उनके खिलाफ किए गए निजी एवं नकारात्मक बयानों को इसका कारण बताया है। सिक्का के इस्तीफे को स्वीकार कर लिया गया है। 31 मार्च 2018 तक नए सीईओ एवं एमडी की नियुक्ति होने तक उन्हें कंपनी का कार्यकारी उपाध्यक्ष नियुक्त किया गया है।
कंपनी बोर्ड ने मुख्य संचालन अधिकारी (सीओओ) यू.बी. प्रवीण राव को कपंनी का अंतरिम सीईओ और एमडी नियुक्त किया है। वह सिक्का की निगरानी एवं नियंत्रण में कामकाज देखेंगे।
बयान के मुताबिक, सिक्का रणनीतिक कामकाज, ग्राहक संबंध और प्रौद्योगिकी विकास जैसे क्षेत्रों में ध्यान केंद्रित करेंगे। वह निदेशक मंडल को अपने कामकाज से अवगत कराएंगे।
सिक्का (50) ने इस्तीफे के साथ ही इंफोसिस की क्षमता में विश्वास भी जताया है। उन्होंने कहा कि काम में लगातार पड़ रहे खलल एवं उनके खिलाफ निजी एवं नकारात्मक बयान उनके इस्तीफे की वजह हैं और ये सब चीजें कंपनी के विकास में उपयोगी उनकी क्षमताओं को रोक रही थीं।
कंपनी ने जारी बयान में कहा, निदेशक मंडल सिक्का के बेहतरीन नेतृत्व और उद्योग के तीव्र विकास की अवधि के दौरान उनके अभूतपूर्व योगदान के लिए उनका आभार जताता है।
बयान के मुताबिक, निदेशक मंडल सिक्का के इस्तीफा देने की वजहों को समझता है और इस फैसले पर खेद प्रकट करते हुए इसे स्वीकार करता है। बोर्ड हाल के महीनों में सामने आए अनाम पत्रों के जरिए प्रबंधन टीम के सदस्यों पर हुए निजी हमलों से दुखी है।
जर्मन सॉफ्टवेयर कंपनी ‘सैप’ के पूर्व कार्यकारी निदेशक सिक्का ने एक अगस्त 2014 को एस.डी.शिबुलाल की जगह कंपनी में पद संभाला था। सिक्का ने कहा कि उन्हें अपने तीन साल के कार्यकाल की उपलब्धियों पर गर्व है।
कंपनी के अन्य सहसंस्थापक एन.आर.नारायणमूर्ति, नंदन नीलेकणी और एस.गोपालकृष्णन बीते तीन दशकों में कार्यकारी पद पर रह चुके हैं।
सिक्का को अपने उपाध्यक्ष के कार्यकाल के दौरान एक डॉलर यानी 64 रुपये का वार्षिक वेतन मिलेगा। कंपनी के शेयरों में उनकी हिस्सेदारी जस की तस रहेगी।
निदेशक मंडल ने उन आलोचकों की निंदा की है जिनके ‘झूठे आरोपों’ के कारण कंपनी कर्मचारियों का मनोबल टूटा और कंपनी को अपने एक मूल्यवान सीईओ को खोना पड़ा। बोर्ड ने कंपनी के नेतृत्व में सहज बदलाव के लिए सिक्का की प्रतिबद्धता को सराहा है।
बोर्ड ने कंपनी के अगले स्थाई सीईओ और प्रबंध निदेशक के चुनाव के लिए अध्यक्ष और नामांकन एवं पारिश्रमिक समिति को जिम्मेदारी सौंपी है।
जब सिक्का अगस्त 2014 में कंपनी से जुड़े थे तो उस समय कंपनी औद्योगिक विकास में पिछड़ रही थी। उनके कार्यकाल के दौरान कंपनी की आय वित्त वर्ष 2017-2017 की पहली तिमाही में बढ़कर 2.65 अरब डॉलर रही, जबकि 2014-2015 की पहली तिमाही में यह 2.13 अरब डॉलर थी।
बोर्ड ने कहा है कि सिक्का के नेतृत्व में कंपनी ने नवाचार एवं उद्यमिता को बड़े स्तर पर बढ़ावा देने के लिए नए कार्यक्रम शुरू किए।
सिक्का के नेतृत्व की सराहना करते हुए निदेशक मंडल के अध्यक्ष आर. सेषासायी ने कहा कि सिक्का को कंपनी के भीतर नए उद्देश्यों एवं ऊर्जा के संचार के लिए जाना जाएगा।
नेशनल
ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 के बदले देने पड़ेंगे 35,453 रु, जानें क्या है पूरा मामला
हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला
क्या है पूरा मामला ?
सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।
कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।
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