मुख्य समाचार
आम बजटः कुछ मीठे तो कुछ कड़वे घूंट
नई दिल्ली। अब इसे आंकड़ों की बाजीगरी कहें या कुछ करने का इरादा, वैसे इस बजट को राजग सरकार के मजबूत जनादेश का परिणाम भी कहा जा सकता है जिसमें भारत के सबसे बड़े मतदाता वर्ग यानी कि मध्य वर्ग के खुश होने को कुछ भी नहीं है। बड़ा सवाल है आखिर क्यों? क्या मोदी सरकार एक चुनावी बजट नहीं पेश कर सकती थी? या वास्तव में पीएम मोदी जैसा कहते आए हैं कि हमारी सरकार गरीबों की सरकार है उसको वास्तविकता के धरातल पर लाना चाहते हैं। विरोधी कह रहे हैं कि यह बजट उद्योगपतियों का बजट है। मुझे समझ में नहीं आता कि क्या बाकी सारे दल जब उनकी सरकार होती है तो उद्योगपतियों को साधने का प्रयास नहीं करते?
समझने वाली बात यह है कि देश में सरकारी नौकरियों की तुलना में बीस गुना से ज्यादा लोग प्राइवेट संस्थानों में काम करते हैं। मैं इसके विस्तार में नहीं जाना चाहता लेकिन एक बात जरूर कहना चाहता हूं कि यदि किसी भी देश में व्यापार करने की सुविधाएं नहीं रहेंगी तो वहां का आर्थिक विकास कभी भी संभव नहीं है। एक बड़ा उद्योग लगने से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोगों की आजीविका उससे चलती है। सरकार का काम प्राप्त राजस्व से ढांचागत सुधार व अन्य कल्याण कार्यक्रमों को चलाना होता है।
बजट में कुछ ऐसी बाते हैं जिनकी तारीफ होनी चाहिए और कुछ न होने की निंदा। सबसे पहले निंदा ही करता हूं, सर्विस टैक्स बढ़ाकर सरकार ने गलत किया है, इससे मंहगाई पर काबू पाने की सरकार की कोशिशों को ब्रेक लग सकता है। आयकर स्लैब में कोई फेरबदल न करना भी आलोचना का एक मुद्दा बन सकता है। वैसे इस देश में आयकर देने वालों की संख्या बहुत ही कम है और कुछ समय पहले अरूण जेटली आयकर को पूरी तरह हटाकर कुछ और व्यवस्था लाने की वकालत कर चुके हैं।
अब बात तारीफ की, तो इस बजट में युवाओं, महिलाओं, गांव और गरीब सबके लिए कुछ न कुछ है। कुछ घोषणाओं को उद्धरित करता हूं- निर्भया फंड में बढ़ोत्तरी, ग्राम सिंचाई योजना, 2022 तक हर घर में एक जॉब, 2020 तक बीस हजार गांवों में बिजली, 2022 तक सबको पक्के मकान, स्वच्छ भारत अभियान के तहत देश भर में छह करोड़ शौचालयों का निर्माण, अटल पेशन योजना, गरीबों को 12 रूपये के सालाना प्रीमियम पर दो लाख का बीमा कवर आदि कुछ ऐसी योजनाएं हैं जिस पर मोदी सरकार अपनी पीठ थपथपा सकती है।
वैसे मुझे बजट की जो सबसे अच्छी बात लगी वह यह कि बजट दीर्घावधि के लिए बनाया गया है। अल्पावधि में क्षुद्र राजनीतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए यह बजट नहीं है और इसका लाभ भी आम जनता तो दीर्घ अवधि में ही समझ में आएगा। इसीलिए मनमोहन सिंह जैसे अर्थशास्त्री को भी विरोधी होने के बावजूद यह कहना पड़ा कि इरादे तो अच्छें हैं लेकिन क्रियान्वयन का कोई रोडमैप नहीं। मुझे भी लगभग यही बात कहनी है कि मोदी सरकार को चाहे वह रेल बजट हो या आम बजट अथवा अन्य कोई योजना, क्रियान्वयन पर विशेष ध्यान देना होगा। बिना किसी दबाव या हिचक के सुधार कार्यक्रमों को आगे बढ़ाते रहिए क्योंकि कोशिश करने वालों को मिलती है मंजिल और मिलेगी ही इंशाअल्लाह।
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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