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बंजर भूमि भी उगल सकती है सोना

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नई दिल्‍ली। धरती पर जब पेड़-पौधों की पकड़ कमजोर होती है तब बरसात का पानी सीधा धरती पर पड़ता है और वहाँ की मिट्टी बहने लगती है। जमीन के समतल न होने के कारण पानी को जहाँ भी जगह मिलती है, मिट्टी काटते हुए वह बहता है। इस प्रक्रिया में नालियाँ बनती हैं और जो आगे चलकर गहरे होते हुए बीहड़ का रूप ले लेती है।

इस तरह के भूक्षरण से हर साल लगभग 4 लाख हेक्टेयर जमीन उजड़ रही है। इसका सर्वाधिक प्रभावित इलाका चम्बल, यमुना, साबरमती, माही और उनकी सहायक नदियों के किनारे के उप्र, मप्र, बिहार, राजस्थान और गुजरात है। बीहड़ रोकने का काम जिस गति से चल रहा है उसके अनुसार बंजर खत्म होने में 200 वर्ष लगेंगे, तब तक ये बीहड़ ढ़ाई गुना अधिक हो चुके होंगे।

बीहड़ों के बाद, धरती के लिये सर्वाधिक जानलेवा, खनन-उद्योग रहा है। पिछले तीस वर्षों में खनिज-उत्पादन 50 गुना बढ़ा लेकिन यह लाखों हेक्टेयर जंगल और खेतों को वीरान बना गया है। नई खदान मिलने पर पहले वहाँ के जंगल साफ होते हैं। फिर खदान में कार्यरत श्रमिकों की दैनिक जलावन की जरूरत पूर्ति हेतु आस-पास की हरियाली होम होती है।

तदुपरान्त खुदाई की प्रक्रिया में जमीन पर गहरी-गहरी खदानें बनाई जाती हैं, जिनमें बारिश के दिनों में पानी भर जाता है। वहीं खदानों से निकली धूल-रेत और अयस्क मिश्रण दूर-दूर तक की जमीन की उर्वरा शक्ति हजम कर जाते हैं। खदानों के गैर नियोजित अन्धाधुन्ध उपायोग के कारण जमीन के क्षारीय होने की समस्या भी बढ़ी है। ऐसी जमीन पर कुछ भी उगाना नामुमकिन ही होता है।

ज़मीन को नष्ट करने में समाज का लगभग हर वर्ग और तबका लगा हुआ है, वहीं इसके सुधार का जिम्मा मात्र सरकारी कन्धों पर है। 1985 में स्थापित राष्ट्रीय बंजर भूमि विकास बोर्ड ने 20 सूत्रीय कार्यक्रम के 16वें सूत्र के तहत बंजर भूमि पर वनीकरण और वृक्षारोपण का कार्य शुरू किया था। आँकड़ों के मुताबिक इस योजना के तहत एक करोड़ 17 लाख 15 हजार हेक्टेयर भूमि को हरा-भरा किया गया लेकिन इन आँकड़ों का खोखलापन सेटेलाईट द्वारा खींचे गए चित्रों से उजागर हो चुका है।

विदित हो हमारे देश में कोई तीन करोड़ 70 लाख हेक्टेयर बंजर भूमि ऐसी है, जो कृषि योग्य समतल है। अनुमान है कि प्रति हेक्टेयर 2500 रुपए खर्च कर इस जमीन पर सोना उगाया जा सकता है। यानि यदि 9250 करोड़ रुपए खर्च किए जाएँ तो यह ज़मीन खेती लायक की जा सकती है, जो हमारे देश की कुल कृषि भूमि का 26 प्रतिशत है।

सरकारी खर्चों में बढ़ोत्तरी के मद्देनज़र जाहिर है कि इतनी राशि सरकारी तौर पर एकमुश्त मुहैया हो पाना नामुमकिन है। ऐसे में भूमिहीनों को इसका मालिकाना हक देकर उस ज़मीन को कृषि योग्य बनाना, देश के लिये क्रान्तिकारी कदम होगा। इससे कृषि उत्पाद बढ़ेगा, लोगों को रोज़गार मिलेगा और पर्यावरण रक्षा भी होगी।

यदि यह भी नहीं कर सकते तो खुले बाजार के स्पेशल इकोनॉमी जोन बनाने के लिये यदि ऐसी ही अनुपयोगी, अनुपजाऊ जमीनों को लिया जाए। इसके बहुआयामी लाभ होंगे – जमीन का क्षरण रुकेगा, हरी-भरी जमीन पर मँडरा रहे संकट के बादल छँटेंगे।

चूँकि जहाँ बेकार बंजर भूमि अधिक है वहाँ गरीबी, बेरोजगारी भी है, नए कारखाने वगैरह लगने से उन इलाकों की आर्थिक स्थिति भी सुधरेगी। बस करना यह होगा कि जो पैसा जमीन का मुआवजा बाँटने में खर्च करने की योजना है, उसे समतलीकरण, जल संसाधन जुटाने, सड़क-बिजली मुहैया करवाने जैसे कामों में खर्च करना होगा।

 

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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