मुख्य समाचार
पुरातात्विक खोज का विषय बनता वामपंथ
कहते हैं विचारधारा की मौत शुभ नहीं होती और इस संदर्भ में मार्क्सवादी विचारधारा मरणासन्न की स्थिति में है। तत्व का महत्वपूर्ण गुण है गति लेकिन यदि गति की दिशा ठीक हो तो प्रगति और दिशा गलत हो तो दुर्गति। भारत का वामपंथ दुर्गति की स्थिति में है।
कभी पश्चिम बंगाल और केरल में लगातार राज करने एवं उत्तर प्रदेश व बिहार में प्रभावशाली उपस्थिति दर्ज करवाने वाली वामपंथी पार्टियां आठ जिलों वाले छोटे से राज्य त्रिपुरा में सिमट जाने को विवश हैं। वामपंथी खुद को वैज्ञानिक भौतिकवादी कहते हैं, भारत के बुद्धिजीवी वर्ग का एक हिस्सा वामपंथी अंधभक्ति से लैस है।
अंधसेक्युलरवादी सोच वाला वामपंथ इतिहास का हिस्सा बनने व पुरातात्विक महत्व की विषयवस्तु बनने को क्यों प्राप्त हुए? यह शोध का विषय है क्योंकि विज्ञान और भौतिकी गणित के समान है जहां दो जमा दो बराबर चार ही होते हैं। तो फिर भारत के सर्वहारा वर्ग का तथाकथित प्रतिनिधित्व व सामंती संसदीय व्यवस्था का विरोध करने वाले वामपंथी भारतीय राजनीति से अप्रासंगिक क्यों हो गए?
भारत में कम्युनिस्ट पार्टी का जन्म 1925 में हुआ, इसी वर्ष वामपंथ की बिल्कुल विपरीत विचारधारा वाले संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का भी उदय हुआ। वर्तमान में दोनो विचारधाराओं की स्थिति किसी से छिपी नहीं है। वामपंथ को विचार करना होगा कि ऐसा क्यों हुआ? क्या उन्होंने अपनी विचारधारा का भारतीयकरण नहीं किया?
वामपंथ के उदारीकरण के अंधविरोध को भारतीय समाज ने नकार दिया जिसका नतीजा विभिन्न राज्यों में वामपंथ के अवशेष के रूप में सामने है। सवाल यह है कि भारतीय सभ्यता, संस्कृति, समृद्धि का विरोध और फिर भारतीयों के ही जनसमर्थन का औचित्य क्या है? भगवान उन्हीं की सहायता करता है जो उन पर विश्वास करते हैं, समय के पीछे चलने वालों को समय पीछे छोड़ देता है। वामपंथियों को अपनी सोच, विचारधारा, व्यवहार में परिवर्तन लाना होगा। यदि वे ऐसा कर सके तो ठीक नहीं तो इतिहास तो वे बन ही चुके हैं।
इस बीच विशाखापत्तनम में शुरू हुई मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की 21वीं कांग्रेस को मीडिया द्वारा किसी भी प्रकार की कवरेज से महरूम रखना आश्चर्यजनक है। शायद मीडिया भी अभी अवशेषों की खोज से दूर ही रहना चाहती है या उनके पास कवरेज के लिए भारत में और भी विषय हैं। जो भी हो आज अखबारों व इलेक्ट्रानिक मीडिया में भी माकपा के कार्यक्रम की कोई झलक न दिखाना सचमुच उनके साथ अन्याय है।
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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