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सरकारी कार्यशैली का उदाहरण है एचसीबीएल, ग्राहकों का सुख-चैन छिना
हिन्दुस्तान कोऑपरेटिव बैंक पर रिजर्व बैंक की छह महीने की पाबंदी ने करीब 50 हजार ग्राहकों की सांसें अटका दी है। खराब आर्थिक हालत के कारण बैंक अब न तो किसी का पैसा जमा कर सकेगा और न ही अपने खाताधारकों को 1 लाख से अधिक का भुगतान कर सकेगा। ग्राहकों को इसकी सूचना मिलते ही हड़कम्प मच गया। देर रात तक अफरातफरी का माहौल रहा। बैंक से अपने खून-पसीने की कमाई निकालने के लिए कतारें लग गईं। बैंक की सभी शाखाओं में बैंक कर्मियों और ग्राहकों के बीच झड़प भी हुई। बाद में पुलिस को मोर्चा संभालना पड़ा।
कुल मिलाकर रिजर्व बैंक ने अचानक मुस्तैदी दिखाते हुए जनहित में एचसीबीएल के खिलाफ छह महीने की पाबंदी लगाने का ऐलान तो कर दिया, लेकिन ग्राहकों के पक्ष का ध्यान नहीं रखा। बैंक ने 10 मार्च 2015 को ज्यादा ब्याज का लालच देखकर निवेशकों को अपनी तरफ आकर्षित किया था। बैंक ने 15 से 30 दिन की छोटी अवधि के लिए 15 लाख रुपए तक जमा करवाने पर 5 प्रतिशत ब्याज की बात कही थी। बैंक ने अपना बिजनेस बढ़ाने के लिए 1 साल में 100 फीसदी की उछाल जैसी भ्रमित करने वाली टैग लाइन भी जारी की। सवाल यह है कि ऐसी लोकलुभावन योजनाएं और भ्रमित करने वाले विज्ञापन जारी करते वक्त ही आरबीआई क्यों नहीं चेतता? गड़बड़ी करने वालों को पूरा मौका दिया जाता है कि वह अपना संजाल फैला सकें।
वैसे पुराने रिकार्ड भी पुष्टि करते हैं कि जब-जब निवेशकों के साथ धोखा हुआ, उनका पैसा लौटाने में सरकारी एजेंसियां हमेशा नाकाम साबित हुई हैं। अदालतों से धोखेबाज कंपनियों की परिसंपत्तियों को बेचकर ग्राहकों के पैसे लौटाने वाले आदेश होने के बावजूद जमीनी स्थिति बेहद दर्दनाक है। शायद ही निवेशकों को कभी उनकी जमा-पूंजी वापस मिल सकी। चाहे चिट फंड कंपनियां हों या फिर पश्चिम बंगाल का सारधा घोटाला, सभी के खिलाफ सरकारी तंत्र के ढीले-ढाले रवैये ने उन्हें पनपने का भरपूर मौका दिया। इसकी बानगी कई फाइनेंस कंपनियों के मामले में साफ देखी जा सकती है। जेवीजी फाइनेंस कंपनी 90 के दशक में आम निवेशकों से लगभग एक हजार करोड़ रुपये लेकर चंपत हो गई थी। इस कंपनी के खिलाफ गंभीर अपराध जांच कार्यालय (एसएफआइओ) ने जांच करने में पांच साल (वर्ष 2005-2010) का समय लगा दिया। इसकी रिपोर्ट कंपनी कार्य मंत्रालय को सौंप दी गई। दो साल से ज्यादा समय बीत जाने पर भी रिपोर्ट पर अमल नहीं हो सका। उसके बाद भी निवेशकों के पैसे नहीं लौटाए गए। 90 के दशक में ही बिहार से लेकर पंजाब तक के निवेशकों को लगभग दो हजार करोड़ रुपये का चूना लगाने वाली कुबेर समूह की कंपनियों के खिलाफ रिजर्व बैंक ने जांच की। यह स्थिति तब थी जब कुबेर को खुद केंद्र सरकार ने निधि कंपनी के तौर पर लोगों से पैसा जमा करने की इजाजत दी थी। आरबीआई ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस कंपनी ने उसके लगभग हर नियम की अवहेलना की। लगभग 16 वर्ष पहले यह कंपनी भारी अनियमितता के बाद बंद हो गई। कंपनी की करोड़ों रुपये की परिसंपत्तियां हैं, लेकिन पिछले 12 सालों से उन्हें बेच कर निवेशकों को पैसा वापस करने की प्रक्रिया कानूनी पचड़े में फंसी हई है।
फर्जीवाड़ा करने वाली कंपनियों की ये सूची बहुत ही लंबी है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि एक तरफ कानून मंथर गति से अपना काम करता रहता है और फर्जी कंपनियां ग्राहकों की गाढ़ी कमाई लेकर रफूचक्कर होने के बाद किसी और नाम से लोगों को ठगने का काम शुरू कर देती हैं। फिलहाल एचसीबीएल के मामले में ऐसा कुछ न हो तो ही बेहतर है वरना ग्राहकों का तो भगवान ही मालिक है। वैसे कुछ साल पहले भी देश में अचानक निजी क्षेत्र के एक नामी गिरामी बैंक के बंद होने की अफवाह फैली थी। तब भी कुछ ऐसा ही माहौल था लेकिन तब सारी आशंकाएं निर्मूल साबित हुईं और वह बैंक आज भी अपना कार्य सफलतापूर्वक कर रहा है।
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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