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प्रादेशिक

छोटा भीम की मदद से जिंदगी की महाभारत जीतने की कवायद

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धमतरी। राशि और नाम कब किसके लिए कमाल कर दे, इसका पता स्वयं उस व्यक्ति को नहीं चलता, लेकिन उसी नाम के कई ऐसे लोग होते हैं जो गुमनामी के अंधेरों में पेट भर रौशनी के लिए तरसते रहते हैं। राजस्थान के अमित और सचिन की दास्तां कुछ ऐसी ही है।

धमतरी के गली मोहल्लों में कुछ अलग तरह के राजस्थानी गुब्बारे बेच रहे अमित और सचिन को लगता है कि गुब्बारों में बना छोटा भीम आज नहीं तो कल जिंदगी के महाभारत में उनको कुछ ऐसा पैंतरा सिखा जाएगा कि रोज कमाओ रोज खाओ की लड़ाई से उन्हें निजात मिलेगी। राजस्थान से धमतरी पहुंचे अमित को पता है कि अमिताभ बच्चन कौन हैं और उनको भी अमित कहा जाता है। सचिन को पता है कि मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर कौन हैं और आज दुनिया में उनकी क्या हस्ती है, पर राशि और नाम सबके लिए प्रगतिकारी नहीं होता।

अमित ने जबसे होश संभाला उसके हाथ में कोई न कोई काम पकड़ा दिया गया। उसे यह भी पता है कि काम नहीं करेगा तो पेट की आग बुझा पाना मुश्किल होगी। दिखने में सुंदर और बांका जवान अमित मानता है कि यदि उसने थोड़ी-बहुत भी पढ़ाई कर ली होती तो आज गुब्बारों को बेचने की जगह उसकी अपनी फैक्ट्री होती।

सचिन ने चार क्लास की पढ़ाई तो की लेकिन घर की आर्थिक स्थिति ने उसे मजबूर कर दिया और निकल पड़ा महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में छोटा भीम बेचकर जिंदगी की तकलीफों को छोटा करने के लिए। करीब 10 माह तक घर से बाहर पाई-पाई जोड़ने 10-12 युवा राजस्थान से धमतरी पहुंचे हैं। अलग-अलग आकृति वाले इन गुब्बारों का चटकीला रंग बच्चों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करता है।

लागत लगाने के बाद कड़ी धूप में घूम-घूमकर जब शाम को अमित और सचिन घर लौटते हैं, तो भूख मिटाने की इच्छा को दबाकर उन्हें फिर कल की तैयारी करनी पड़ती है। क्योंकि किसी भी दिन यदि कमाई नहीं हुई, तो समझिए कि उस दिन फांके में गुजारना पड़ेगा। राजस्थान जैसे प्रगतिशील राज्य से भी युवा छत्तीसगढ़ में रोजी मजूरी के लिए पहुंचते हैं। या कहें कि कुछ महीनों के लिए वहां का भी कुछ प्रतिशत मजदूर वर्ग पलायन करता है।

लोग बेरोजगारी को लेकर शासन प्रशासन की ओर ऊंगली उठाते हैं, पर अमित और सचिन जैसे बच्चों की जिंदगी से पढ़ाई और बचपन दोनों को छिन जाने की ओर किसी का ध्यान नहीं। होना यह चाहिए कि आज जिस तरह सबके पास आधार कार्ड होना जरूरी है, उसी तरह हर घर में बच्चों को कम से कम 12वीं तक पढ़ा होना अनिवार्य कर देना चाहिए। शायद यह तरीका देश में शिक्षा के अधिकार को फलीभूत करने में कारगर हो।

 

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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई

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नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।

बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।

बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।

ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।

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