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अब देशभर में रखिए एक ही मोबाइल नंबर

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नई दिल्ली। सरकार के एक आदेश पर अमल करते हुए दूरसंचार सेवा प्रदाता कंपनियां तीन जुलाई से देशभर में मोबाइल नंबर पोर्टेबिलिटी (एमएनपी) लांच करेगी। इससे उपभोक्ता देशभर में कहीं भी जाने पर अपने नंबर को बरकरार रख पाएंगे। प्रमुख कंपनियां भारती एयरटेल, वोडाफोन इंडिया, रिलायंस कम्युनिकेशंस, आईडिया सेल्युलर और एमटीएस इंडिया ने तीन जुलाई से एमएनपी लागू करने की पुष्टि की है। दूरसंचार विभाग ने इसके लिए तीन जुलाई की समय सीमा तय की थी।

इस सुविधा के तहत पूरे देश के ग्राहक विभिन्न राज्यों में स्थानांतरित होने पर अपने मोबाइल नंबर को बरकरार रख पाएंगे। भारती एयरटेल ने हालांकि कहा कि जम्मू एवं कश्मीर, असम और पूर्वोत्तर जाने वाले ग्राहक सुरक्षा कारणों से ऐसा नहीं कर पाएंगे। एयरटेल नेटवर्क के अंदर पोर्टिंग के अनुरोध पर 24 घंटे के भीतर कार्रवाई पूरी कर ली जाएगी। कंपनी ने कहा, “जब तक अनुरोध पर कार्रवाई होगी एयरटेल के ग्राहक रोमिंग के दौरान मुफ्त इनकमिंग कॉल का लाभ उठा पाएंगे। ग्राहक अपने प्रीपेड बायलेंस को हस्तांतरित कर पाएंगे और पोस्टपेड अनबिल्ड/बिल्ड राशि को कैरी फॉरवर्ड कर पाएंगे।”

वोडाफोन इंडिया के मुख्य वाणिज्यिक अधिकारी विवेक माथुर ने कहा, “एमएनपी सेवा से ग्राहक पूरे देश में अपना नंबर बरकरार रख पाएंगे और उसी नंबर पर अपनी पसंद की कंपनी की सेवा ले पाएंगे। वोडाफोन 2011 में सर्किल के अंदर शुरू हुई रोमिंग सुविधा से लाभ में रही है। इस बार भी हमें ऐसी ही उम्मीद है।” कंपनी के देशभर में 18.4 करोड़ ग्राहक हैं।

रिलायंस कम्युनिकेशंस ने भी तीन जुलाई से देश भर में एमएनपी सेवा लागू करने की पुष्टि की। कंपनी के प्रवक्ता ने कहा कि कंपनी इसके लिए तैयार है। उन्होंने यह भी कहा, “रिलायंस कम्युनिकेशंस एमएनपी के तहत अपनी सेवा लेने वाले प्रीपेड और पोस्टपेड ग्राहकों के लिए आकर्षक ऑफर भी पेश करेगी।” एमटीएस ने भी कहा कि कंपनी इसके लिए पूरी तरह से तैयार है। एमटीएस इंडिया के प्रवक्ता ने कहा, “एमएनपी से भारतीय दूरसंचार क्षेत्र में ग्राहक सेवा का नया मानक स्थापित होगा।” आइडिया सेल्युलर ने कहा कि एमएनपी से अब तक उसके ग्राहकों की संख्या सबसे अधिक 1.4 करोड़ बढ़ी है।

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हरियाणा में बीजेपी की हैट्रिक, कांग्रेस को भारी पड़ी गुटबाजी

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सुबह 8 बजे जब EVM खुलीं तो काँग्रेस कार्यकर्ताओं का जोश हाई था .. जैसे जैसे घड़ी की सुई आगे बढ़ती गई कार्यकर्ताओं का जोश नाच गाने और लड्डू बांटने में तब्दील हो गया.. लेकिन ये क्या अचानक से वक्त बदल गया हालात बदल गए और देखते देखते जज़्बात ठंडे पड़ गए .. हरियाणा में जो काँग्रेस रुझानों में पूर्ण बहुमत में दिख रही थी वो अर्श से फर्श पर आ गई और जो बीजेपी फर्श पर पड़ी थी वो अर्श पर पहुँच गई. अब जोश वही था लेकिन हालात और जज़्बात अपनी जगह बदल चुके थे.. अब ढोल की गूंज बीजेपी ऑफिस पहुँच चुकी थी और लड्डू बीजेपी कार्यकर्ताओं का मुंह मीठा कर रहे थे .लोकसभा चुनाव की तरह हरियाणा के नतीजों ने भी चुनावी पंडितों को मुंह छिपाने के लिए मजबूर कर दिया.. सारे  पोल धाराशाई हो गए.. बीजेपी का कमल पूरे बहुमत के साथ खिल गया.. काँग्रेस के मुख्यालय 24 अकबर रोड के जिस कमरे में कौन बनेगा हरियाणा का मुख्यमंत्री पर चर्चा हो रही थी वहाँ का माहौल गमगीन हो गया और इस बात पर चर्चा होने लगी इस हार का बलि का बकरा कौन बनेगा.. 10 साल की एंटी इनकंबेंसी को बीजेपी की रणनीति ने प्रो इनकंबेंसी में बदल कर तीसरी बार सत्ता में वापसी कर ली. जान लेते हैं वो कौन सी वजहें थीं जिसने हरियाणा में कांग्रेस की नैया डुबाने का काम किया है.

गुटबाजी कांग्रेस को भारी पड़ी

हरियाणा चुनाव प्रचार के दौरान सबसे ज्यादा चर्चा कांग्रेस के अंदर चल रही गुटबाजी की होती रही. कुमारी शैलजा और हुड्डा के साथ एक खेमा रणदीप सिंह सुरजेवाला का भी था. ऊपर के नेताओं के बीच की इस खींचतान ने संगठन को नुकसान पहुंचाने का काम किया और कार्यकर्ताओं के अंदर भी असमंजस की स्थिति बनी रही. तमाम कोशिशों के बाद भी कांग्रेस आलाकमान प्रदेश में खेमेबाजी पर लगाम लगाने में नाकामयाब रहा और पार्टी जीती हुई लड़ाई हार गई।

एंटी इनकंबेंसी को भुनाने में रही नाकामयाब

काँग्रेस अपनी अंदरूनी खींचतान से ही नहीं उबर पाई जिससे चुनाव प्रचार के दौरान काँग्रेस बीजेपी की गलतियों को भुनाने में नाकामयाब रही . हालांकि कांग्रेस के पास 10 साल की एंटी इनकंबेंसी,  मुख्यमंत्री बदलने जैसे मुद्दे थे. पहलवानों का प्रदर्शन और अग्निवीर योजना से लेकर किसान आंदोलन जैसे बड़े मुद्दों को प्रचार के दौरान ठीक से हवा नहीं दी जा सकी. लिहाजा पार्टी का पूरा ध्यान खेमेबाजी पर लगाम लगाने में ही रहा और इसका बीजेपी ने पूरा फायदा उठाया.

केजरीवाल की बेल ने बिगाड़ा खेल

चुनाव से ठीक पहले आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविन्द केजरीवाल जेल से बाहर आए तो गठबंधन के लिहाज से काफी देर हो चुकी थी .. केजरीवाल खुलकर हरियाणा के चुनावी मैदान में उतार चुके थे लेकिन आम आदमी पार्टी के साथ अगर काँग्रेस का गठबंधन होता तो शायद तस्वीर अलग होती.

टिकट बंटवारे में दिखी गुटबाजी

टिकट बंटवारे में गुटबाजी और भाई भतीजाबाद को अलग रखकर सिर्फ विनिंग उम्मीदवारों को ही प्राथमिकता दी जाती, तो भी नतीजे उलट सकते थे. आम आदमी पार्टी को भले ही किसी सीट पर जीत न मिली हो, लेकिन करीबी मुकाबले वाली सीटों पर उसने कांग्रेस को ही नुकसान पहुंचाने का काम किया है…

एस एन द्विवेदी के साथ शिखा मेहरोत्रा की रिपोर्ट

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