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प्रादेशिक

झाबुआ विस्फोट : हादसे पर जागना, फिर सो जाना पुरानी आदत

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भोपाल। हादसा होता है। लोग बेमौत मारे जाते हैं। सरकारें आरोपी अधिकारियों पर कार्रवाई करने और मामले की जांच बैठाने का ऐलान कर अपनी जिम्मेदारी निभाने का स्वांग करती हैं, लेकिन हालात नहीं बदलते। झाबुआ जिला विस्फोट में भी ऐसा ही रुख अपनाया जा रहा है। सवाल उठ रहे हैं कि क्या आर्थिक मदद, अधिकारियों पर कार्रवाई और जांच का ऐलान कर सरकार स्वयं को निर्दोष साबित कर सकती है?

झाबुआ के पेटलावद में शनिवार सुबह होटल में गैस सिलेंडर फटने के बाद खनन के लिए संग्रहीत की गईं जिलेटिन की छड़ों और डेटोनेटर (विस्फोटक) में विस्फोट हुआ। इस हादसे में 88 लोग मारे गए। वहीं 100 से ज्यादा लोग अब भी अस्पताल में जिंदगी और मौत की जंग लड़ रहे हैं। पेटलावद के विस्फोट के बाद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने न्यायिक जांच, मृतक आश्रितों को पांच-पांच लाख रुपये की आर्थिक मदद और एक सदस्य को नौकरी देने की घोषणा की। इसके साथ ही आरोपी अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए। वह पेटलावद का दौरा कर पीड़ितों के जख्मों पर मरहम लगाने की कोशिश कर हैं।

राज्य में पिछले कुछ वर्षो में हुए हादसों से सरकार कितना सबक लेती है, यह बात गृहमंत्री बाबूलाल गौर का बयान बयां करता है। बाबूलाल ने कहा, “जब कोई घटना होती है, उसके नतीजे सामने आते हैं और उसके बाद ही कार्रवाई होती है।” सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे ने कहा, “सरकार किसी हादसे से न तो सबक लेती है और न किसी हादसे को रोकने के लिए आवश्यक कदम उठाती है। वर्ष 2009 में सिंगरौली के औद्योगिक क्षेत्र में एक ट्रक में हुए विस्फोट में 23 लोग मारे गए थे। हादसे की जांच हुई, लेकिन जांच रिपोर्ट पर कोई अमल नहीं हुआ।”

मार्क्स वादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के प्रदेश सचिव बादल सरोज ने कहा, “मौजूदा मुख्यमंत्री सिर्फ घोषणाएं करने तक सीमित हैं। पिछले दिनों पन्ना जिले में एक बस में आग लगी थी। बस में दो दरवाजे न होने के कारण 35 से ज्यादा लोग जिंदा जल गए थे। उस वक्त बसों में दो द्वार होना अनिवार्य कर दिया गया था, लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा बिल्कुल नहीं हुआ।”

राज्य में हुए हादसों पर नजर डालें तो पता चलता है कि दतिया के रतनगढ़ में मंदिर में दो हादसे हुए, जिसमें कई जानें गईं। उसके बाद चित्रकूट मंदिर में हादसा हुआ, लेकिन तब भी प्रशासन ने हालात सुधारने के लिए कोई जरूरी कदम नहीं उठाए। हर बार हादसा होता है और फिर उसे न दोहराने का संकल्प लिया जाता है, लेकिन स्थिति जस की तस रहती है।

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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई

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नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।

बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।

बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।

ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।

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