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हेल्थ

मन के इलाज से थमेगी आत्महत्या

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नई दिल्ली| दक्षिण एशिया में आत्महत्याओं के मामले में भारत पहले स्थान पर है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में प्रति लाख व्यक्तियों के पीछे आत्महत्या करने वालों की संख्या 10.9 है और जो लोग आत्महत्या कर लेते हैं उनमें से ज्यादातर की उम्र 44 साल से कम होती है। मनोरोग का बेहतर इलाज से ही इसे रोका जा सकता है। आत्महत्या की कल्पना करना और उसे व्यवहार में उतारना मानसिक आपातकाल की बहुत ही गंभीर स्थिति है। जो मरीज आत्महत्या करने के बहुत नजदीक हैं, उन्हें तुरंत मनोचिकित्सक की सेवाओं की जरूरत होती है और उस पर लगातार तब तक निगरानी रखनी चाहिए, जब तक वह सुरक्षित हालत में न पहुंच जाएं। एक बार आत्महत्या की कोशिश करने के बाद ‘साइकोथेरेपी’ दोबारा की जाने वाली कोशिशों को रोक सकती है।

इस मसले पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के महासचिव डॉ. के.के. अग्रवाल ने कहा, “आत्महत्या के मामले आम लोगों, किशोरों, युवाओं और बालिगों में एकसमान ही हैं। ऐसे मामले मेडिकल पेशे से जुड़े लोगों में भी पाए जाते हैं। मेडिकल पेशे से जुड़े स्टूडेंट और डॉक्टर दोनों ही बढ़ते तनाव, अवसाद और बेचैनी के मामलों में आत्महत्या करते हुए पाए गए हैं।”

उन्होंने कहा, “चूंकि विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस नजदीक आ रहा है हम इस बात पर जोर देना चाहेंगे कि उचित सहयोगी प्रणाली न होने की वजह से देश में आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। इस वक्त जरूरत है कि सरकार विस्तृत मानसिक स्वास्थय परामर्श सुविधाओं का निर्माण करे। पिछले साल अक्टूबर में पेश किया गया मानसिक स्वास्थ्य विधेयक अभी तक लागू नहीं हो पाया है और इसके बारे में मेडिकल संगठन से और बातचीत होनी भी जरूरी है।”

डॉ. अग्रवाल के मुताबिक, सभी पेशों से जुड़े मानसिक रोगियों की जांच करने पर यह बात सामने आई है कि आत्महत्या करने वालों में मेडिकल क्षेत्र के लोग सबसे ज्यादा हैं। अगर और ज्यादा विस्तार से बात करें तो इनमें फिजीशियन, पैथोलॉजिस्ट, एनिस्थिटिस्ट्स आमतौर पर अपनी जान खुद ले लेते हैं। इसके साथ ही महिला चिकित्सक पुरुषों के मुकाबले ज्यादा आत्महत्याएं करती हैं।

उन्होंने कहा कि इसके पीछे प्रमुख कारण यह है कि डॉक्टर बनने के लिए और मेडिकल पेशे को जारी रखने के लिए बेहद तनाव और मुश्किल माहौल से गुजरना पड़ता है। चूंकि डॉक्टरों को दवाएं आसानी से उपलब्ध होती हैं, इसलिए वह इनका दुरुपयोग अपनी जान देने के लिए कर लेते हैं।

डॉ. अग्रवाल ने कहा कि जिस देश में मानसिक रोगियों की संख्या बहुत ज्यादा हो, वहां पर मौतों की संख्या कम करने के लिए उचित कदम उठाने की बेहद जरूरत होती है। उचित परामर्श सेवाएं प्रदान की जानी चाहिए और इस बारे में जागरूकता पैदा की जानी चाहिए कि कई बार बुरे हालात में फंसना कोई बुरी बात नहीं होती, लेकिन तनाव से निपटने के लिए आपनी जान देने से बेहतर कई अन्य विकल्प मौजूद हैं।

उन्होंने कहा, “हम 21वीं सदी में रह रहे हैं और अभिभावकों के लिए यह समझना बेहद जरूरी है कि जब तक वह बच्चे की काबलियत और रुचि को न परख लें, तब तक उसे डॉक्टर बनने के लिए मजबूर न करें। इसके साथ ही अपनी मानसिक हालत के बारे में बताना कोई शर्म की बात नहीं होती, इस मौके पर मदद ले लेनी चाहिए।”

 

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दिल्ली में डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी

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नई दिल्ली। दिल्ली में डेंगू, मलेरिया और चिकनगुनिया के मरीजों की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी का क्रम लगातार जारी है. अस्पतालों और नर्सिंग होम्स में अकेले डेंगू के मरीजों में भारी संख्या में इजाफे की सूचना है. दिल्ली नगर निगम के आंकड़ों के मुताबिक साल 2024 में डेंगू के अब तक 4533 मरीज सामने आए हैं. इनमें 472 मरीज नवंबर माह के भी शामिल हैं.

एमसीडी की ओर से जारी आंकड़ों के मुताबिक दिल्ली में इस साल अब तक मलेरिया के 728 और चिकनगुनिया के 172 केस दर्ज हुए हैं.

डेंगू एक गंभीर वायरल संक्रमण है, जो एडीज़ मच्छर के काटने से फैलता है। इसके होने से मरीज को शरीर में कमजोरी लगने लगती है और प्लेटलेट्स डाउन होने लगते हैं। एक आम इंसान के शरीर में 3 से 4 लाख प्लेटलेट्स होते हैं। डेंगू से ये प्लेटलेट्स गिरते हैं। डॉक्टरों का मानना है कि 10 हजार प्लेटलेट्स बचने पर मरीज बेचैन होने लगता है। ऐसे में लगातार मॉनीटरिंग जरूरी है।

डॉक्टरों के अनुसार, डेंगू के मरीज को विटामिन सी से भरपूर फल खिलाना सबसे लाभकारी माना जाता है। इस दौरान कीवी, नाशपाती और अन्य विटामिन सी से भरपूर फ्रूट्स खिलाने चाहिए। इसके अलावा मरीज को ज्यादा से ज्यादा लिक्विड डाइट देना चाहिए। इस दौरान मरीज को नारियल पानी भी पिलाना चाहिए। मरीज को ताजा घर का बना सूप और जूस दे सकते हैं।

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