प्रादेशिक
योग की स्वीकार्यता से आयुर्वेद जगत में जगी आस
भोपाल। योग को दुनिया में मिली मान्यता के बाद आयुर्वेद से जुड़े लोगों में उम्मीद की आस जाग गई है। उन्हें लगने लगा है कि भले ही देर से ही सही, लेकिन दुनिया के चिकित्सा जगत को आयुर्वेद का लोहा मानना पड़ेगा, क्योंकि यह चिकित्सा की ऐसी पद्धति है जो किसी तरह का नुकसान पहुंचाए बिना जीवन को सुखमय बना देती है।
आयुर्वेद भारत की पुरातन चिकित्सा पद्धति है। भगवान धनवंतरी को इसका जनक माना गया है। वर्तमान में देश में आयुर्वेद के अलावा एलोपैथी, होम्योपैथ और यूनानी चिकित्सा पद्धति के जरिए इलाज किया जाता है। एलोपैथी के बढ़ते प्रभाव के बीच अन्य तीन पद्धतियों का जोर कम हो गया है, लेकिन इन पद्धतियों से इलाज कराने वालों का भरोसा अब भी कायम है। यही कारण है कि दूरस्थ इलाकों में डॉक्टर भले न मिले मगर वैद्यराज के अलावा घरेलू नुस्खों (प्राकृतिक अवयवों) से इलाज होता जरूर नजर आ जाता है।
आयुर्वेदिक दवाओं की निर्माता कंपनी ‘दीनदयाल’ के प्रमुख आनंद मोहन छापरवाल ने आईएएनएस से चर्चा करते हुए कहा कि आयुर्वेद सिर्फ चिकित्सा व्यवस्था नहीं है, बल्कि शास्त्र है, जो इंसान को स्वस्थ और सुखमय जीवन जीने का तरीका बताता है। इस चिकित्सा पद्धति की खूबी यह है कि यह पूरी तरह प्राकृतिक अवयवों पर निर्भर है, जो कृत्रिम नहीं है। साथ ही यह शरीर को किसी तरह का नुकसान भी नहीं पहुंचाता।
उन्होंने आगे कहा कि दुनिया के दूसरे देशों ने हमेशा इस चिकित्सा पद्धति को घटिया करार देकर इस पर कब्जा करने की कोशिश की है, अब भी यह कोशिशें जारी हैं, मगर अब योग को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता मिलने पर आयुर्वेद को भी पूरी दुनिया में अपना प्रभाव दिखाने का अवसर मिलने की संभावना बढ़ गई है, क्योंकि योग आयुर्वेद का ही एक हिस्सा है। जब दुनिया ने योग को स्वीकार लिया है तो एक दिन उसे आयुर्वेद को भी स्वीकारना होगा, क्योंकि सुखमय और स्वस्थ्य जीवन का राज इसी में छुपा है।
अखिल विश्व गायत्री परिवार के प्रमुख और ब्रह्मवर्चस शोध संस्थान शांतिकुज हरिद्वार के निदेशक डॉ. प्रणव पंड्या ने कहा है कि ‘स्वास्थ्य को स्थाई सुखमय बनाने में आयुर्वेद का महत्वपूर्ण योगदान है। अन्य चिकित्सा पद्धतियों से जहां अस्थाई लाभ होता है, वहीं आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति स्थायी लाभ देती है, यह ऋषियों की निरापद परंपरा है।’
उन्होंने आगे कहा कि ‘आयुर्वेदिक औषधियां वनौषधियां है, जिनके नियमित सेवन से दीर्घ स्वास्थ्य और चिर यौवन की प्राप्ति होती है, स्थायी स्वास्थ्य आकांक्षाओं को पूरा करने में भी आयुर्वेद ही सहायक है।’
भोपाल के पंडित खुशीलाल शर्मा स्वशासी आयुर्वेदिक महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. उमेश शुक्ला ने आईएएनएस से चर्चा करते हुए कहा कि ‘आयुर्वेद में हर बीमारी का न केवल इलाज है, बल्कि उसके किसी तरह के नकारात्मक प्रभाव (साइड इफैक्ट) भी नहीं है, वहीं एलोपैथी में एक भी दवा ऐसी नहीं है जो किसी भी प्रकार का साइड इफैक्ट न करती हो।’
कई देशों का भ्रमण कर चुके डॉ. शुक्ला का कहना है कि ‘चीनी चिकित्सा पद्धति और आयुर्वेद में ज्यादा अंतर नहीं है, मगर दुनिया के बाजार के बड़े हिस्से पर चीनी पैथी की दवाओं का कब्जा है, वहीं आयुर्वेदिक दवाओं का हिस्सा पांच प्रतिशत से ज्यादा नहीं है। उनका दावा है कि दुनिया के कई देशों में आयुर्वेद की मांग भी है, योग को दुनिया के मंच पर मान्यता मिलने से आयुर्वेद का विकास व विस्तार रुकने वाला नहीं है।’
आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी की जयंती पर आयुर्वेद जगत से जुड़े लोग यह मान रहे है कि आने वाला समय आयुर्वेद का है, क्योंकि एक तरफ देश की वर्तमान सरकार इस पैथी को बढ़ावा दे रही है तो दूसरी ओर दुनिया में बढ़ते तनाव और बीमारियों का स्थायी निदान चिकित्सा की इसी पैथी में छुपा है।
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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई
नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।
बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।
बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।
ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।
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