Connect with us
https://aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

प्रादेशिक

एक अधूरे पुल की कहानी, उसी की जुबानी

Published

on

डोबरा-चांठी पुल, दस साल बीते दम तोड़ने लगी उम्मीद, नेता ठेकेदार अफसर व इंजीनियरों ने डकार लिये करोड़ों

Loading

डोबरा-चांठी पुल, दस साल बीते दम तोड़ने लगी उम्मीद, नेता ठेकेदार अफसर व इंजीनियरों ने डकार लिये करोड़ों

डोबरा-चांठी पुल

 

मैं एक आधा-अधूरा पुल हूं। पिछले दस साल से भागीरथी नदी के दोनों मुहानों पर अकेला पिल्लरों के सहारे खड़ा। गरमी, बरसात, सर्दी कोई भी मौसम आए, मैं ऐसे ही निर्विकार खड़ा हूं। इस उम्मीद में कि कभी तो, कोई तो मुझे पूर्ण करेगा और मैं फिर पिल्लर के सहारे नहीं, दूसरों का सहारा बन सकूंगा। पिछले पांच सालों में आशा और निराशा के भंवर में ंफसा हूं। रात के वीराने में नई सुबह का इंतजार करता हूं। मेरी पीड़ा को समझने वाला कोई नहीं है। यह पीड़ा और वेदना तब और बढ़ जाती है, जब मैं देखता हूं कि 250 से भी अधिक गांवों के लोग मुझसे उम्मीद लगाए हैं कि मैं उनके किसी काम आ सकूं, उनके समय, संसाधनों और जीवन की कीमत को सार्थक कर सकूंगा। जब मैं किसी मरीज, घायल, गर्भवती या बुजुर्ग को मीलों लंबे सफर में जाते हुए देखता हूं तो मेरी वेदना और बढ़ जाती है। कुछ दिन पहले की बात है, सहासू-नागरा के निकट एक जीप हादसे का शिकार हो गयी। कई घायल हो गये। मैं उन्हें तड़पते देखता रहा, यदि मैं पूर्ण होता तो उनमें से कुछ लोगों की जान बच जाती क्योंकि उन्हें समय पर इलाज मिल जाता, काश! ऐसा हो पाता। लेकिन ऐसा नहीं हुआ, कई घायल जब तक 50 मील की दूरी तय कर अस्पताल पहुंचे तो दम तोड़ चुके थे। यह पहली बार नहीं हुआ, कई बार हो चुका है और मैं अक्सर मूक, निर्जीव खड़ा सब देखता रहता हूं, लाचार जो हूं। आधा-अधूरा पुल।

दस साल बीते, दम तोड़ने लगी उम्मीद

नेता, ठेकेदार, अफसर व इंजीनियरों ने डकार लिये करोड़ों

टिहरी बांध ने देश के लाखों घरों को रोशन किया हैै। जिस तरह से दिये तले हमेशा होता है वैसे ही मेरे साथ भी हुआ। जब मुझे पता चला कि मुझे जनसेवा के लिए तैयार किया जा रहा है तो मेरा रोम-रोम खुशी से झूम उठा। उम्मीदों का सागर हिलारें मारने लगा। मैं बेसब्री से अपने अस्तित्व की तैयारी करने लगा। आखिर वह दिन भी आया। वर्ष 2006 में मुझे अस्तित्व में लाने की तैयारी हुई। मैं इतरा रहा था कि मेरा अस्तित्व करोड़ों का है। 89 करोड़ 20 लाख। स्पान 440 मीटर लंबा। अनुमानित लागत 129 करोड़ 43 लाख। मैं अपने होने का इंतजार करता रहा, वक्त की सुईयां दिन, महीने और साल में बीतने लगे। इस लागत का 50 फीसदी हिस्सा राज्य सरकार और 50 फीसदी हिस्सा टीएचडीसी ने देना था। मुझे एक जनवरी 2008 को पूर्ण हो जाना था। लेकिन सरकारी काम की बात, यह तारीख 31 अक्टूबर 2010 तक बढ़ा दी गई। फिर तो दिन -ब-दिन बीतने लगे, और वक्त के साथ उम्मीदों की डोर भी टूटने लगी। मेरे निर्माण का कार्य मैसर्स वीके गुप्ता एंड एसोसिएट, चंडीगढ़ को सौंपा गया।

लूट-खसोट और लापरवाही का दौर

लोनिवि ने इसके बाद मेरे डिजायन की बात की। पुल का डिजायन आईआईटी रुड़की ने तैयार किया, लेकिन यह सिरे नहीं चढ़ा। इसके बाद आईआईटी खड़गपुर ने यह डिजायन तैयार किया। कंसल्टेंसी पर ही लगभग तीन करोड़ रुपये खर्च कर दिये गये। आईआईटी रुड़की ने ही यहां का भूगर्भीय सर्वे किया था। रिपोर्ट में कहा गया कि पुल निर्माण में कोई दिक्कत नहीं हैै। इसके बाद ठेकेदार ने मेरे दोनों मेन एंकर, दोनों एबटमेंट व दोनो ंटावर बना दिये। उम्मीद की किरण जगने लगी थी। लेकिन इसके बाद फिर शुरु हुआ मेरे नाम पर नेताओं, अफसरों व ठेकेदारों द्वारा लूट-खसोट। मेरा नाम लेकर तत्कालीन अधिशासी इंजीनियर शशांक भट्ट स्वीटजरलैंड की सैर कर आए। मेरा डिजायन फिर भी तैयार नहीं हो सका। इसके बाद डिजायन के लिए विदेशी सेवाएं भी ली गई लेकिन नतीजा सिफर। ठेकेदार कंपनी ने मेरी आड़ लेकर अवैध रुप से वहां क्रशर भी शुरु कर दिया। करोड़ों रुपये का भुगतान हो रहा था लेकिन निर्माण बंद था।

फिर हेरा-फेरी

निविदा के समय मेरे निर्माण की कुल अनुमानित लागत 89 करोड़ 20 लाख थी जो कि बाद में बढ़कर 129 करोड़ हो गयी। रकम स्वाहा हो चुकी थी, पर मैं वैसे ही पिल्लरों टावर पर ही आधा-अधूरा खड़ा रहा। पिछले दस वर्षों की अवधि में ठेकेदार को अब तक 12 करोड़ रुपये का पेंमेंट हो चुका है। अब नई कंपनी पीएडंआर इंफ्रास्टक्चर लिमिटिड को मेरे निर्माण का कार्य सौंपा गया है। बता दूं कि यह वही कंपनी है जो दिल्ली के काॅमनवेल्थ गेम्स में ब्लैक लिस्टेड हो चुकी हैै। हालांकि जुगाड़ से फिर काम करने का लाइसेंस पा चुकी है। आखिर ऐसी कंपनी को मेरे निर्माण का कार्य दिया ही क्यों गया।

250 गांव हैं प्रभावित

मेरे पूर्ण होने का इंतजार 250 गांवों के लगभग पचास हजार से भी अधिक लोगों को है। ये गांव प्रतापनगर, जाखणीधार, डूंडा ब्लाक व उत्तरकाशी के हैं। अभी इन ग्रामीणों को जिला मुख्यालय तक पहुंचने के लिए 50 से 100 किलोमीटर की दूरी तय करते हैं। लोगों की उम्मीदें दिन प्रतिदिन धूमिल हो रही हैं। मैं जानता हूं लोग मेरे लिए आंदोलित हैं। डोबरा-चांठी पुल बनाओ संघर्ष समिति, प्रतापनगर पिछले छह साल से मेरे वजूद के लिए लड़ रही है। चुनाव के वक्त नेता यहां आते हैं और वादों का झुनझुना पकड़ा देते हैं। तत्कालीन सीएम रमेश पोखरियाल ने वर्ष 2011 में यहां जल्द ही पुल निर्मित हो जाएगा, लेकिन इस वादे के बाद वह आज तक वापस नही ंलौटे। तत्कालीन सीएम विजय बहुगुणा ने अपने पुत्र साकेत के चुनाव के वक्त लम्बगांव में कहा कि छह माह में पुल बन जाएगा और वह इसी पुल से यहां पहुंचेंगे, लोनिवि के तत्कालीन चीफ इंजीनियर ने भी बहुगुणा की हाॅ में हाॅ मिलाते हुए कहा कि इतनी अवधि में पुल बन जाएगा,  लेकिन वक्त देखिये कि वायदे वह अब सड़क की बजाए हेलीकाॅप्टर से यहां आते हैं। मैं अब भी नेताओं के चुनावी वादों और अफसरों की ठेकेदारों से मिलीभगत कर कमाई का साधन बना हुआ हूं। मेरे वजूद की लड़ाई लड़ रहे राजेश्वर प्रसाद पैन्युली का कहना है कि नेताओं, अफसरों, इंजीनियरों व ठेकेदारों ने सरकार को 131 करोड़ रुपये से भी अधिक की चपत लगाई है। इस मुद्दे को लेकर ग्रामीण अब उग्र प्रदर्शन की तैयारी कर रहे हैं। समिति जल्द ही अदालत में एक पीआईएल डालेगी और दिल्ली में विशाल प्रदर्शन किया जाएगा।

प्रस्तुति – आकाश राणा, देहरादून

 

 

Continue Reading

18+

जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई

Published

on

Loading

नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।

बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।

बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।

ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।

Continue Reading

Trending