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उत्तराखंड

उत्तराखंड में भूकंप का खतरा बरकरार

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उत्तराखंड में भूकंप का खतरा बरकरार, चार माह में छह बार आ चुका है भूकंप, इंडियन प्लेट्स लगातार घंस रहीं, भूगर्भीय हलचलों से हो रहा हिमस्खलन

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उत्तराखंड में भूकंप का खतरा बरकरार, चार माह में छह बार आ चुका है भूकंप, इंडियन प्लेट्स लगातार घंस रहीं, भूगर्भीय हलचलों से हो रहा हिमस्खलन

photo: devbhoomimedia.com

चार माह में छह बार आ चुका है भूकंप

सुनील परमार

देहरादून । उत्तर भारत में भूकंप आने का सिलसिला बढ़ गया है। पिछले चार माह की अवधि में उत्तराखंड में आधा दर्जन से भी अधिक बार यह झटके महसूस किये गये हैं। गत सोमवार को पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिले के कई हिस्सों में भूकंप के झटकों से धरती हिल गई। रिक्टर पैमाने पर भूकंप की तीव्रता 3.7 आंकी गई है। शाम को 4 बजकर 6 मिनट पर भूकंप के झटके आने से नाचनी, थल और मदकोट क्षेत्र के लोग घरों से बाहर निकल आए। वहीं, बागेश्वर जिला मुख्यालय समेत कपकोट, गरुड़, कांडा और अन्य इलाकों में इसी दौरान भूकंप के झटके महसूस किए गए। भूकंप से जिले में किसी तरह के जानमाल की क्षति नहीं हुई।  पिथौरागढ़ के जिला आपदा प्रबंधन अधिकारी आरएस राणा और मौसम विभाग देहरादून के अनुसार भूकंप का केंद्र 29.8 डिग्री नॉर्थ, 80.1 डिग्री ईस्ट और 10 किमी की गहराई में पिथौरागढ़ जिले के थल-बेरीनाग के बीच में स्थित थर्प गांव में था।

इंडियन प्लेट्स लगातार घंस रहीं

उत्तर भारत को भूकंप अभी और बड़ा झटका दे सकता है। वैज्ञानियों का कहना है कि इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट के नीचे धंसती जा रही है, जैसे-जैसे इनर्जी स्टोर होगी और प्लेट बीच-बीच में टूटेगी भूकंप आते रहेंगे। यह तय नहीं है कि कब और कितने रिएक्टर स्केल पर भूकंप आएगा। यह प्लेट के टूटने वाले स्थान पर इनर्जी की मात्रा पर निर्भर है, लेकिन कभी भी भूकंप का बड़ा झटका धरती हिला सकता है। वाडिया हिमालय भू विज्ञान संस्थान के कोठी, मनाली स्थित वेधशाला में हिंदूकुश में आए भूकंप को रिकार्ड किया गया था। संस्थान के भू-भौतिकी समूह के अध्यक्ष वरिष्ठ विज्ञानी डा. सुशील कुमार ने बताया कि इंडियन प्लेट साढ़े तीन सौ किमी नीचे तक धंस चुकी है।

संक्रमण काल से गुजर रहा हिमालयी क्षेत्र

भूगर्भीय हलचलों से हो रहा हिमस्खलन

लगातार चल रहीं भूगर्भीय हलचलें भविष्य में बड़े खतरे का संकेत हैं। इंडियन प्लेट के यूरेशियन प्लेट में धंसने की प्रक्रिया से पूरा हिमालयी क्षेत्र संक्रमण काल से गुजर रहा है। इस क्षेत्र में नए भूस्खलन जोन बन-बिगड़ रहे हैं। यही नहीं पहाड़ों की ऊंचाई बढ़ने से भूस्खलन जोन की स्थितियों में भी बदलाव हो रहा है।वैज्ञानिकों के मुताबिक यह प्रक्रिया करीब पांच करोड़ साल पहले तब शुरू हुई थी जब भारतीय प्लेट का चीन की प्लेट से टकराव शुरू हुआ। अनुमान है कि उस समय जम्मू-कश्मीर का हिस्सा आज के चेन्नई या बंगलूरू के पास रहा होगा। वहां से लेकर चीन की सीमा तक गहरा समुद्र था। इस टकराव से जमीन के भीतर की प्लेटें टूट गईं और इनके टुकड़े मिट्टी के साथ ऊपर आ गए। इसी प्रक्रिया में पहाड़ बनते गए और ऊंचे होते गए। इन पहाड़ों पर बारिश से भूस्खलन और हिमस्खलन की प्रक्रिया चलती रही। भारतीय प्लेट चीन की प्लेट से टकरा रही हैं। वैज्ञानिकों की मानें तो भारतीय प्लेट हिमालय के कश्मीर गैप में 3.8 सेंटीमीटर, सेंट्रल गैप में 4.3 सेंटीमीटर और असोम गैप में 4.8 सेंटीमीटर प्रति वर्ष की गति से ऊपर की तरफ खिसक रही हैं।

 

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उत्तराखंड

शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद

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उत्तराखंड। केदारनाथ धाम में भाई दूज के अवसर पर श्रद्धालुओं के लिए शीतकाल का आगमन हो चुका है। बाबा केदार के कपाट रविवार सुबह 8.30 बजे विधि-विधान के साथ बंद कर दिए गए। इसके साथ ही इस साल चार धाम यात्रा ठहर जाएगी। ठंड के इस मौसम में श्रद्धालु अब अगले वर्ष की प्रतीक्षा करेंगे, जब कपाट फिर से खोलेंगे। मंदिर के पट बंद होने के बाद बाबा की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल की ओर रवाना हो गई है।इसके तहत बाबा केदार के ज्योतिर्लिंग को समाधिरूप देकर शीतकाल के लिए कपाट बंद किए गए। कपाट बंद होते ही बाबा केदार की चल उत्सव विग्रह डोली ने अपने शीतकालीन गद्दीस्थल, ओंकारेश्वर मंदिर, उखीमठ के लिए प्रस्थान किया।

बता दें कि हर साल शीतकाल की शुरू होते ही केदारनाथ धाम के कपाट बंद कर दिया जाते हैं. इसके बाद बाबा केदारनाथ की डोली शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ के लिए रवाना होती है. अगले 6 महीने तक बाबा केदार की पूजा-अर्चना शीतकालीन गद्दीस्थल ओंकारेश्वर मंदिर ऊखीमठ में ही होती है.

उत्तरकाशी ज़िले में स्थिति उत्तराखंड के चार धामों में से एक गंगोत्री में मां गंगा की पूजा होती है। यहीं से आगे गोमुख है, जहां से गंगा का उदगम है। सबसे पहले गंगोत्री के कपाट बंद हुए हैं। अब आज केदारनाथ के साथ-साथ यमुनोत्री के कपाट बंद होंगे। उसके बाद आखिर में बदरीनाथ धाम के कपाट बंद किए जाएंगे।

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