मुख्य समाचार
सांप्रदायिकता, इस्लामोफोबिया के शिकार हैं मुस्लिम युवा : नंदिता हक्सर
साक्षात्कार
सोमरिता घोष
नई दिल्ली| हर युवक की तरह 20 वर्षीय मोहम्मद आमिर खान ने भी अपने सुनहरे भविष्य का सपना देखा था। लेकिन, उन्हें इसका अहसास नहीं था कि जल्द ही उनके सपने चकनाचूर हो जाएंगे। एक रात दिल्ली पुलिस ने अचानक उन्हें उठा लिया और आतंकवादी होने का झूठा आरोप लगाकर जेल भेज दिया। आमिर को इस आरोप से मुक्त होने में 14 साल लग गए। अपने इस खौफनाक अनुभव पर लिखी गई पुस्तक के वह सह-लेखक हैं। ‘फ्रेम्ड एज अ टेररिस्ट’ नामक इस पुस्तक की सह लेखिका नन्दिता हक्सर हैं जो सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता भी हैं। वह कहती हैं, “दिल्ली में बढ़ती सांप्रदायिकता को अभिलेखित करने का यही तरीका था जहां हिन्दू और मुसलमान नजदीक रहने के बावजूद एक-दूसरे के घर नहीं जाते हैं। उनकी कहानी के कुछ अंश इस स्थिति का बयान हैं कि सभी मुस्लिम युवक सांप्रदायिकताऔर इस्लामोफोबिया (इस्लाम के प्रति दुराग्रह) का सामना कर रहे हैं। ” हक्सर ने आईएएनएस से खास मुलाकात में कहा, “आमिर के वकील एन.डी. पंचोली ने मुझे उनसे मिलाया था। मानवाधिकार आंदोलन में पिछले कई दशकों से पंचोली मेरे सहयोगी रहे हैं। करीब एक महीने तक मिलने- जुलने के बाद आमिर एक दिन मेरे घर आए और अपनी आपबीती सुनाई।”
‘फ्रेम्ड एज अ टेररिस्ट’ नामक पुस्तक की सह लेखिका हैं नन्दिता हक्सर
पुस्तक में इस बात का खुलासा किया गया है कि किस तरह आमिर को गलत तरीके से आरोपित किया गया। विभिन्न जेलों में किस तरह पुलिस ने निर्ममतापूर्वक उनकी पिटाई की और मुसलमान होने के चलते उन्हें किस तरह उत्पीड़ित किया गया, मौलिक अधिकार से वंचित किया गया। पुस्तक के पहले अध्याय का शीर्षक ‘द कंटेक्स्ट’ है जिसमें हक्सर ने लिखा है, “आमिर गवाह हैं बढ़ते हिन्दू फासीवाद और मुस्लिम कट्टरवाद के। उन्होंने तब भी इसे महसूस किया जब वह जेल में थे। उन्होंने हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच एक अदृश्य दीवार को खड़े होते देखा है। इसके बावजूद आमिर ने दोनों समुदायों के बीच की दूरियों को पाटने का भरसक प्रयत्न किया। इसकी वजह लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षतामें वह विश्वास है जो उन्हें पुरानी दिल्ली के इतिहास से मिला है, जहां वह पले-बढ़े हैं। पुस्तक में हक्सर ने लिखा है, “पहले तो उनके शब्द मुझे सिर्फ मुहावरे की तरह लगे। लेकिन, जब मैंने उनकी अभिव्यक्ति पर गौर किया तो पाया कि लोकतंत्र और धर्मनिरपेक्षता जैसे शब्द उनके लिए व्यापक अर्थ रखते हैं। यही तो उम्मीद है जिसके सहारे वह हर रोज जीते हैं।”
हक्सर, आमिर की कहानी कहने में इसलिए दिलचस्पी दिखा रही हैं कि उनके पूर्वज उसी क्षेत्र में रहते थे जहां से आमिर आते हैं। नंदिता ने ‘फ्रेमिंग गिलानी, हैंगिंग अफजल: पैट्रियाटिज्म इन दी टाइम ऑफ टेरर’ और ‘द मेनी फेसेज ऑफ कश्मीरी नेशनलिज्म’ जैसी किताबें भी लिखीं हैं। वकील होने की वजह से वह यह भलीभांति जानती हैं कि कैसे भारतीय विधि प्रणाली काम करती है। यह उनकी लेखनी में यह झलकता भी है। एक आमिर ही नहीं है जिनके साथ गलत हुआ है। बल्कि, ऐसे कई मुस्लिम युवक हैं जिन्हें इससे पीड़ित होना पड़ा है या उन्हें न्याय मिलने में देर हुई है या फिर वे दोनों का शिकार हुए हैं।
हक्सर कहती हैं, “सभी गरीब और कई बार धनी लोगों को भी न्यायिक प्रक्रिया की विफलता के चलते देर से न्याय मिलता है। लेकिन, मुसलमानों को ऐसे पक्षपात और पूर्वाग्रहों का सामना करना पड़ता है जिससे अन्य लोगों को नहीं गुजरना पड़ता। मेरा मानना है कि न्याय देने में भारतीय न्यायिक प्रक्रिया की इस विफलता के पीछे क ई कारण हैं, जिनेमें बार (वकीलों की संस्था) भी शामिल हैं जो व्यवस्था में सुधार के लिए कभी भी हस्तक्षेप नहीं करते। इसके अलावा समाज में राजनैतिक जागरूकता की कमी भी महत्वपूर्ण कारण है।”
नंदिता हक्सर महसूस करती हैं कि मुस्लिम समुदाय के प्रति बढ़ते पूर्वाग्रहों को समाप्त किया जा सकता है, लेकिन यह तब संभव होगा जब स्वच्छ भारत अभियान की तरह सांप्रदायिक पूर्वाग्रहों के खिलाफ अभियान चलाया जाएगा। उन्होंने कहा कि इस संबंध में शैक्षणिक संस्थाओं की बड़ी भूमिका हो सकती है, पर पहले सभी राजनैतिक दलों को चाहिए कि वे इस समस्या को रेखांकित करें। इसलिए हक्सर के लिए आमिर की कहानी महज व्यवस्था से पीड़ित व्यक्ति की व्यथा-कथा नहीं है, बल्कि इसका बहुत बड़ा राजनैतिक महत्व है। उन्होंने कहा कि पुस्तक में पुलिस और जेल सुधार, गलत तरीके से आरोपित लोगों के पुनर्वास, पुलिस, डॉक्टर, मजिस्ट्रेट, राजनीतिक दलों और मीडिया की भूमिका से जड़े मुद्दे उठाए गए हैं।
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बदल गई उपचुनावों की तारीख! यूपी, केरल और पंजाब में बदलाव पर ये बोला चुनाव आयोग
नई दिल्ली। विभिन्न उत्सवों के कारण केरल, पंजाब और उत्तर प्रदेश में विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे। कांग्रेस, भाजपा, बसपा, रालोद और अन्य राष्ट्रीय और राज्य दलों के अनुरोध पर चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है।
विभिन्न उत्सवों की वजह से कम मतदान की किसी भी संभावना को खारिज करने के लिए, चुनाव आयोग ने ये फैसला लिया है। ऐसे में ये साफ है कि अब यूपी, पंजाब और केरल में उपचुनाव 13 नवंबर की जगह 20 नवंबर को होंगे।
चुनाव आयोग के मुताबिक राष्ट्रीय और राज्य स्तर की पार्टियों की ओर से उनसे मांग की गई थी कि 13 नवंबर को होने वाले विधानसभा उपचुनाव की तारीख में बदलाव किया जाए, क्योंकि उस दिन धार्मिक, सामाजिक कार्यक्रम हैं। जिसके चलते चुनाव संपन्न करवाने में दिक्कत आएगी और उसका असर मतदान प्रतिशत पर भी पड़ेगा।
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