बिजनेस
चीनी निर्यात कोटा, शुल्क मुक्त आयात से सुधरेगी उद्योग की सेहत : नाइकनवरे
नई दिल्ली, 30 मार्च (आईएएनएस)| चीनी उद्योग की सेहत सुधारने के लिए केंद्र सरकार की ओर से लिए गए फैसलों को सहकारी चीनी मिलों का संगठन, नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड (एनएफसीएसएफ) ने सराहनीय कदम बताया है।
एनएफसीएसएफ के मुताबिक, केंद्र द्वारा चीनी मिलों के लिए न्यूनतम सांकेतिक निर्यात कोटा (एमआईईक्यू) के तहत निर्धारित 20 लाख टन चीनी निर्यात के कोटा से घरेलू बाजार में आई सुस्ती दूर होगी, दूसरी तरफ शुल्क मुक्त आयात प्राधिकार पत्र (डीएफआईए) के तहत इस साल 30 सितंबर तक चीनी का निर्यात करनेवाली मिलों को एक अक्टूबर, 2019 के बाद दो साल तक शुल्क मुक्त कच्ची चीनी आयात करने की अनुमति मिलने से उद्योग की सेहत में सुधार होगा।
एनएफसीएसएफ के महानिदेशक (एमडी) प्रकाश पी. नाइकनवरे ने शुक्रवार को आईएएनएस से बातचीत में कहा, एक तरफ अगर चीनी मिलों के लिए चीनी निर्यात का कोटा तय किया गया है तो दूसरी तरफ आगे कच्ची चीनी आयात की भी अनुमति होगी। दोनों स्कीमें चीनी मिलों को फायदा देंगी और इससे घरेलू चीनी मिलों की सेहत में सुधार होगा। खासतौर से डीएफआईए के तहत कच्ची चीनी आयात की सुविधा मिलों के लिए बेहतर निर्यात प्रोत्साहन साबित होगी।
नाइकनवरे ने दोनों स्कीमों की व्यावहारिकता को सरल शब्दों में बयां किया, अगर कोई निर्यातक चीनी मिल एमआईईक्यू के तहत तय कोटे के मुताबिक चालू चीनी विपणन वर्ष 2017-18 (अक्टूर-सितंबर) के दौरान 30 सितंबर तक 100 टन चीनी का निर्यात करता है तो उसे एक अक्टूबर, 2019 के बाद 105 लाख टन कच्ची चीनी का आयात करने की इजाजत मिलेगी।
उन्होंने बताया, एमआईईक्यू के तहत केंद्र सरकार ने 2015 में भी चीनी मिलों के लिए 40 लाख टन निर्यात का कोटा तय किया था, मगर उस समय मिलों को 4.5 रुपये प्रति कुंटल की दर से उत्पादन अनुदान दिया गया था। इस बार ऐसा कोई अनुदान नहीं है, लेकिन शुल्क मुक्त कच्ची चीनी के आयात की अनुमति एक बड़ा प्रोत्साहन है।
मालूम हो कि इस समय चीनी के आयात पर 100 फीसदी शुल्क लागू है, जबकि निर्यात शुल्क शून्य है। निजी मिलों का शीर्ष संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) ने अपने संशोधित अनुमान में इस साल देश में चीनी का रिकॉर्ड 295 उत्पादन होने का आकलन किया है। उत्पादन में बढ़ोतरी के चलते घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में सुस्ती का माहौल देखा जा रहा है, जिसके कारण मिलों पर गन्ना उत्पादक किसानों का बकाया बढ़ रहा है।
गौरतलब है कि विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) द्वारा 28 मार्च, 2018 को जारी एक अधिसूचना के मुताबिक डीएफआईए स्कीम के तहत सितंबर 2018 तक सफेद चीनी के निर्यात की अनुमति दी गई है। वहीं, खाद्य मंत्रालय ने अपने आदेश में घरेलू चीनी मिलों के लिए चालू चीनी विपणन वर्ष 2017-18 में 20 लाख टन चीनी निर्यात की अनिवार्यता तय की है।
नाइकनवरे ने बताया कि हरेक चीनी मिल के लिए पिछले ढाई साल के उत्पादन के आंकड़ों के आधार पर निर्यात कोटा तय किया जाएगा।
उन्होंने बताया, पिछले दो साल यानी 2015-16 और 2016-17 के अलावा 217-18 के फरवरी महीने तक के उत्पादन के आंकड़ों के आधार पर किसी चीनी मिल के लिए 20 लाख टन निर्यात की अनिवार्यता में उसकी हिस्सेदारी तय की जाएगी।
चीनी विपणन वर्ष 2015-16 में एमआईईक्यू के तहत तय 40 लाख टन के कोटे में से सिर्फ 16 लाख टन ही चीनी का निर्यात हुआ था।
दुनिया के बाजारों के मुकाबले भारत में चीनी का भाव ज्यादा होने से निर्यात की संभावना कम रहती है, इसलिए चीनी मिलों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन की अपेक्षा रहती है।
मिलों का कहना है कि यहां गन्ने का मूल्य ऊंचा होने से चीनी मिलों की लागत अधिक है। लिहाजा, ऊंचे भाव पर चीनी नहीं बिकने से मिलों को घाटा उठाना पड़ता है।
नेशनल
ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप को मनमानी करने पर 103 के बदले देने पड़ेंगे 35,453 रु, जानें क्या है पूरा मामला
हैदराबाद। ऑनलाइन फूड ऑर्डरिंग ऐप स्विगी को ग्राहक के साथ मनमानी करना भारी पड़ गया। कंपनी की इस मनमानी पर एक कोर्ट ने स्विगी पर तगड़ा जुर्माना ठोक दिया। हैदराबाद के निवासी एम्माडी सुरेश बाबू की शिकायत पर उपभोक्ता आयोग ने बड़ा फैसला सुनाया है। बाबू ने आरोप लगाया था कि स्विगी ने उनके स्विगी वन मेंबरशिप के लाभों का उल्लंघन किया और डिलीवरी Food Delivery की दूरी को जानबूझकर बढ़ाकर उनसे अतिरिक्त शुल्क वसूला
क्या है पूरा मामला ?
सुरेश बाबू ने 1 नवंबर, 2023 को स्विगी से खाना ऑर्डर किया था। सुरेश के लोकेशन और रेस्टॉरेंट की दूरी 9.7 किमी थी, जिसे स्विगी ने बढ़ाकर 14 किमी कर दिया था। दूरी में बढ़ोतरी की वजह से सुरेश को स्विगी का मेंबरशिप होने के बावजूद 103 रुपये का डिलीवरी चार्ज देना पड़ा। सुरेश ने आयोग में शिकायत दर्ज कराते हुए कहा कि स्विगी वन मेंबरशिप के तहत कंपनी 10 किमी तक की रेंज में फ्री डिलीवरी करने का वादा किया था।कोर्ट ने बाबू द्वारा दिए गए गूगल मैप के स्क्रीनशॉट्स और बाकी सबूतों की समीक्षा की और पाया कि दूरी में काफी बढ़ोतरी की गई है।
कोर्ट ने स्विगी को अनुचित व्यापार व्यवहार का दोषी पाया और कंपनी को आदेश दिया कि वे सुरेश बाबू को 9 प्रतिशत ब्याज के साथ 350.48 रुपये के खाने का रिफंड, डिलीवरी के 103 रुपये, मानसिक परेशानी और असुविधा के लिए 5000 रुपये, मुकदमे की लागत के लिए 5000 रुपए समेत कुल 35,453 रुपये का भुगतान करे।
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