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झुलसे लोगों को स्किन बैंक देगा नई जिंदगी
नई दिल्ली| शायद ही किसी ने कल्पना की हो कि मौत के बाद दान किए हुए मानव शरीर की कागज से भी पतली त्वचा किसी को नई जिंदगी दे सकती है, लेकिन अब ऐसा संभव हो गया है स्किन बैंक की बदौलत।
डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट पर एक नजर डालें तो हमारे देश में किसी दुर्घटनावश या फिर साजिशन हर साल दस लाख से अधिक लोगों के आग से झुलसने के मामले सामने आते हैं। इस तरह के मामलों में दान में दी गई स्किन पीड़ितों की जान बचाने में खासी मददगार साबित हो सकती है। देश में आग, बिजली या फिर रसायनों से झुलसने के मामलों में महिलाओं और बच्चों की संख्या चौंकाने वाली है।
नेशनल बर्न सेंटर की वेबसाइट के मुताबिक, भारत में हर साल 70 लाख लोगों के आग, बिजली, रसायनों या फिर विकिरणों की वजह से झुलसने के मामले दर्ज होते हैं, जिसमें 80 प्रतिशत महिलाएं और बच्चे शामिल हैं।
हमारे देश में जितनी तेजी से दुर्घटनावश या फिर आपराधिक षड्यंत्रों के कारण झुलसने के मामले बढ़ रहे हैं, उसे ध्यान में रखते हुए देश में बड़े स्तर पर स्किन बैंकों की जरूरत है।
आमतौर पर 50 प्रतिशत से अधिक झुलसने के मामले में पीड़ित के संक्रमित होने का खतरा अत्यधिक होता है। ऐसी स्थिति में व्यक्ति की स्वयं की त्वचा उपचार के लिए पर्याप्त नहीं होती, इसलिए दान में दी हुई स्किन से घायलों की झुलसी हुई त्वचा के उपचार में मदद मिलेगी। 80 प्रतिशत से अधिक जले हुए मामलों में तो पीड़ितों की जिंदगी तक बचाई जा सकती है।
स्किन बैंक मरणोपरांत दान में मिले मृतकों की त्वचा को सुरक्षित रख उसका उपयोग करता है। स्किन दान करने के लिए न्यूनतम 18 वर्ष की आयु निर्धारित की गई है, जबकि अधिकतम आयु सीमा निर्धारित नहीं की गई है। मरणोपरांत सौ वर्ष के व्यक्ति की स्किन भी उपयोग में लाई जा सकती है।
स्किन दान करने के लिए दानकर्ता को उचित दिशा-निर्देशों के तहत फॉर्म भरना पड़ता है। दानकर्ता की मृत्यु के बाद छह घंटे के भीतर ही उसकी स्किन दान करना जरूरी होता है। स्किन निकालने की प्रक्रिया में 30 से 45 मिनट का ही समय लगता है। इस प्रक्रिया में एक डॉक्टर, दो नर्सो और एक सहायक शामिल होते हैं।
मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल के कॉस्मेटिक सर्जन सुनील केसवानी के मुताबिक, “स्किन निकालने के लिए एक शल्य चिकित्सा उपकरण ‘डर्मेटोम’ का इस्तेमाल किया जाता है। यह उपकरण बैटरी चालित है। स्किन को सिर्फ दोनों पैरों, जांघों और पीठ से ही निकाला जाता है। ग्राफ्टिंग तकनीक की मदद से मरीज के झुलसे हुए स्थान पर स्किन चढ़ाई जाती है।”
मनुष्य की त्वचा की आठ परतें होती हैं, जिसमें से सबसे ऊपरी यानी आठवीं परत को ही निकाला जाता है। स्किन निकालने के बाद इसकी जांच की जाती है। इसे चार से आठ डिग्री सेल्सियस तापमान के बीच ग्लिसरॉल के घोल में रखा जाता है। स्किन बैंक में इसे पांच साल तक सुरक्षित रखा जा सकता है।
सुनील केसवानी का कहना है कि एचआईवी संक्रमित, हेपेटाइटिस बी और सी, त्वचा कैंसर, त्वचा रोग, यौन बीमारियों आदि से पीड़ित लोग स्किन दान नहीं कर सकते।
दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल के त्वचा रोग विशेषज्ञ रोहित बत्रा का कहना है कि किसी भी उम्र के व्यक्ति की स्किन किसी को भी प्रत्यारोपित की जा सकती है, इसके लिए ब्लड ग्रुप का समान होना जरूरी नहीं होता। पीड़ित को चढ़ाई गई स्किन से उसके घाव भरने में मदद मिलती है, जिससे उसकी जान बन जाती है।
देश में मुंबई, पुणे, कोच्चि, बेंगलुरू और हाल ही में छत्तीसगढ़ के भिलाई में स्किन बैंक की स्थापना की गई है। इसके अलावा देश के अन्य हिस्सों में भी स्किन बैंक खोलने की दिशा में काम चल रहा है।
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स्वच्छ घाट प्रतियोगिता 2.0: छठ महापर्व पर घाटों की स्वच्छता और सौंदर्यीकरण के लिए योगी सरकार ने बढ़ाए कदम
लखनऊ| छठ महापर्व के अवसर पर योगी सरकार प्रदेश में स्वच्छ घाट प्रतियोगिता 2.0 का आयोजन कर रही है। 8 नवम्बर, 2024 तक आयोजित इस प्रतियोगिता का मुख्य उद्देश्य घाटों पर स्वच्छता, सौंदर्यीकरण, और प्लास्टिक मुक्त परिवेश सुनिश्चित करना है। विभिन्न निकायों के बीच इस प्रतियोगिता को बढ़ावा देने के लिए अनेक गतिविधियों का भी आयोजन किया गया है।
स्वच्छता के प्रति नागरिकों में जागरूकता लाने का प्रयास
प्रतियोगिता के अंतर्गत घाटों पर साफ-सफाई बनाए रखने हेतु अर्पण कलश स्थापित किए गए हैं, जिससे लोगों में स्वच्छता के प्रति जागरूकता बढ़ाई जा सके। इसके साथ ही, घाटों को नो प्लास्टिक जोन घोषित किया गया है ताकि प्लास्टिक और थर्माकोल के उपयोग को प्रतिबंधित किया जा सके।
सुविधाएं और रखरखाव पर विशेष ध्यान
प्रतियोगिता के दौरान घाटों पर शौचालयों और स्नान घरों की स्थापना की जा रही है। इन सुविधाओं का नियमित रखरखाव भी सुनिश्चित किया जा रहा है। स्वच्छ सारथी क्लब, स्कूल, कॉलेज, विश्वविद्यालय, एनजीओ और अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं की भागीदारी से इन सुविधाओं को सुदृढ़ बनाया जा रहा है।
नवाचार और सौंदर्यीकरण
घाटों का सौंदर्यीकरण और पूर्ण रूप से बदलाव लाने के लिए नवाचार गतिविधियों का आयोजन किया गया है। कूड़े के उचित निपटान हेतु डस्टबिन की व्यवस्था की गई है ताकि घाट क्षेत्र हमेशा साफ-सुथरा बना रहे। साथ ही, घाटों की स्वच्छता में अधिकतम नागरिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है।
सामाजिक संगठनों की भूमिका
इस स्वच्छता अभियान में एनजीओ, सीएसओ और अन्य स्वयंसेवी संस्थाओं का सहयोग प्राप्त हो रहा है। इन संगठनों द्वारा घाटों पर सफाई अभियान चलाया जा रहा है और लोगों को स्वच्छता का महत्व समझाया जा रहा है।
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