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तेजस्वी संभाले रखेंगे लालू की ‘लालटेन’

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पटना, 7 जनवरी (आईएएनएस)| बहुचर्चित चारा घोटाला के एक मामले में राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के अध्यक्ष लालू प्रसाद को साढ़े तीन साल जेल की सजा मिलने के बाद और उनकी गैरमौजूदगी में राजद की बागडोर उनके पुत्र और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी प्रसाद यादव संभालेंगे। राजद के अध्यक्ष पद पर लालू प्रसाद बने रहेंगे और तेजस्वी पार्टी की कमान संभालेंगे।

शनिवार को राजद की हुई अहम बैठक के बाद यह माना जा रहा है कि पार्टी के सिंहासन पर लालू की ‘खड़ाऊं’ रख, तेजस्वी राजद की नैया पार कराने का प्रयास करेंगे। वैसे, तेजस्वी के सामने राजद को एकजुट रखना सबसे बड़ी चुनौती है।

यह कोई पहली मर्तबा नहीं है कि लालू की अनुपस्थिति के बाद राजद के सामने यह परिस्थिति उत्पन्न हुई है। इससे पहले भी लालू जब जेल गए थे, तो राजद की कमान उनकी पत्नी और पूर्व मुख्यमंत्री राबड़ी देवी के हाथ आई थी और संकट में पार्टी की कमान उन्होंने बखूबी संभाले रखी।

वैसे इस बार परिस्थिति भिन्न है। उस समय लालू के सामने केवल राबड़ी ही विकल्प थीं, जबकि अब उनके सामने दो पुत्र तेजस्वी और तेजप्रताप हैं। ऐसे में तेजस्वी के समक्ष न अपनी पार्टी के वोट बैंक को, बल्कि पार्टी को टूटने से बचाना मुख्य चुनौती होगा।

तेजस्वी के नेतृत्व में हुई बैठक में यह तय हुआ कि राजद अध्यक्ष के संदेश को गांव-गांव तक पहुंचाना है। तेजस्वी ने भी पार्टी को एकजुट बताते हुए कहा, लालू जी एक व्यक्ति नहीं विचारधारा हैं। लालू प्रसाद यादव ने जनता के नाम एक खत लिखा है, उसे जन-जन तक पहुंचाना है। मकर संक्रांति के बाद राजद के नेता और कार्यकर्ता लालू जी के संदेश और चिट्ठी को लेकर जन-जन के बीच जाएंगे।

राजनीति के जानकार और वरिष्ठ पत्रकार सुरेंद्र किशोर भी मानते हैं कि लालू के पास वोटबैंक है, जिसे नकारा नहीं जा सकता। यह समझते हुए नीतीश कुमार ने उनसे दोस्ती की थी। उन्होंने कहा कि तेजस्वी अभी राजनीति में परिपक्व नहीं हैं, ऐसे में उनको लालू की ‘खड़ाऊं’ रखकर ही आगे बढ़ना होगा। वे कहते हैं कि राजद में भले ही कई बड़े नेता हों, लेकिन सबका आधार लालू का वोट बैंक ही है।

किशोर कहते हैं कि लालू का खड़ाऊं रख पार्टी को चलाने में तेजस्वी को कोई दिक्कत नहीं आनी चाहिए।

बिहार की राजनीति पर गहरी नजर रखने वाले पत्रकार संतोष सिंह कहते हैं कि लालू के संदेश को पार्टी किस तरह लोगों तक पहुंचाएगी, यह देखना होगा। वे कहते हैं कि यादव मतदाताओं को राजद से तोड़ लेना किसी अन्य पार्टी के लिए आसान नहीं होगा।

तेजस्वी का यह कहना, लालू जी ‘शेर’ हैं और हम लोग भी किसी लालच और पद के लिए राजनीति में नहीं आए हैं। सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले लालू को बिहार के लोगों के लिए दिल से निकाल देना आसान नहीं है।

लालू की पुत्री और सांसद मीसा भारती भी कहती हैं, लालू प्रसाद के एक अंश को ही जेल भेजा जा सकता है, बाकी का 99 प्रतिशत अंश नश्वर नहीं। वह हर दलित पिछड़े के 90 के दशक के जागरण का रूप धर सदियों तक हर मनुवादी, संघवादी, सवर्णवादी को कचोटता रहेगा। जन जागरण एक क्रांति है, और क्रांतिकारी हर सजा, हर जहर पीने को तैयार है।

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नेशनल

कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने मुस्लिम आरक्षण को लेकर कही बड़ी बात

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कर्नाटक। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने उन मीडिया रिपोर्टों को खारिज कर दिया जिनमें दावा किया गया था कि राज्य सरकार नौकरियों में मुस्लिम आरक्षण के प्रस्ताव पर विचार कर रही है। उन्होंने रिपोर्टों को एक और नया झूठ बताया। मुख्यमंत्री कार्यालय (सीएमओ) ने एक बयान में स्पष्ट किया कि आरक्षण की मांग की गई है लेकिन इस संबंध में सरकार के समक्ष ऐसा कोई प्रस्ताव नहीं है। यह स्पष्टीकरण कर्नाटक में मुसलमानों के लिए आरक्षण के मुद्दे पर चल रहे विवाद के बीच आया है।

मुख्यमंत्री कार्यालय ने जारी किया बयान

मुख्यमंत्री कार्यालय ने एक बयान में कहा, ‘कुछ मीडिया में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है कि नौकरियों में मुसलमानों को आरक्षण देने का प्रस्ताव सरकार के समक्ष है। इसमें कहा गया है कि मुस्लिम आरक्षण की मांग की गई है, हालांकि, यह स्पष्ट किया गया है कि इस संबंध में सरकार के समक्ष कोई प्रस्ताव नहीं है।’

4% कोटा, जो श्रेणी-2बी के अंतर्गत आता, सार्वजनिक निर्माण अनुबंधों के लिए समग्र आरक्षण को 47% तक बढ़ा देता। कर्नाटक का वर्तमान आवंटन विशिष्ट सामाजिक समूहों के लिए सरकारी ठेकों का 43% आरक्षित रखता है: एससी/एसटी ठेकेदारों के लिए 24%, श्रेणी-1 ओबीसी के लिए 4%, और श्रेणी-2ए ओबीसी के लिए 15% है।

राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता आर अशोक ने कहा कि सिद्धारमैया के राजनीतिक सचिव, नसीर अहमद, आवास और वक्फ मंत्री बीजे ज़मीर अहमद खान और अन्य मुस्लिम विधायकों के साथ, 24 अगस्त को एक पत्र प्रस्तुत किया था, जिसमें अनुबंधों में मुसलमानों के लिए 4% आरक्षण का अनुरोध किया गया था। उन्होंने आगे कहा कि सिद्धारमैया ने वित्त विभाग को उसी दिन प्रस्ताव की समीक्षा करने का निर्देश दिया था, कथित तौर पर उन्होंने इस मामले से संबंधित कर्नाटक सार्वजनिक खरीद पारदर्शिता (केटीपीपी) अधिनियम में संशोधन का भी समर्थन किया था।

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