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बिहार : कांग्रेस तलाश रही अपना खोया रुतबा

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बिहार, कांग्रेस, तलाश रही, अपना खोया रुतबा, पिछले विधानसभा चुनाव, मात्र आठ फीसदी मत

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मनोज पाठक

पटना| बिहार की सत्ता पर कई वर्षो तक एकछत्र राज करने वाली कांग्रेस के पास कहा जाता है कि आज न जन है न आधार। कभी 42 प्रतिशत से ज्यादा मतों पर कब्जा जमाने वाली कांग्रेस को पिछले विधानसभा चुनाव में मात्र आठ फीसदी ही मत मिले थे। बिहार में किसी जमाने में कांग्रेस का सामाजिक व राजनीतिक दबदबा पूरी तरह था, लेकिन कालांतर में सामाजिक ताने-बाने को जोड़ने में कांग्रेस नाकाम रही है और वह पिछड़ती चली गई। कांग्रेस बिहार में जब वर्ष 1990 में सत्ता से बाहर हुई, तब से न केवल उसका सामाजिक आधार सिमटता गया, बल्कि उसकी साख भी फीकी पड़ती चली गई।

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता प्रेमचंद्र मिश्रा ने बातचीत में माना कि कांग्रेस जनता से दूर होती चली गई। मतदाताओं के अनुरूप कांग्रेस खुद को ढाल नहीं सकी। मिश्रा कहते हैं, “कांग्रेस बिहार में आए सामाजिक बदलावों के साथ खुद को जोड़ नहीं पाई। सामाजिक स्तर पर राजनीतिक चेतना बढ़ी, जिसे कांग्रेस आत्मसात नहीं कर सकी।” बिहार में वर्ष 1952 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को कुल मतों का 42़ 09 प्रतिशत वोट मिले थे, जबकि वर्ष 1967 में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के हिस्से 33.09 प्रतिशत मत आए।

कांग्रेस के सत्ता से दूर होने का मुख्य कारण पारंपरिक वोटों का खिसकना माना जाता है। पूर्व में जहां कांग्रेस को अगड़ी, पिछड़ी, दलित जातियों और अल्पसंख्यक मतदाताओं का वोट मिलता था। कालांतर में वह विमुख हो गया। चुनाव दर चुनाव बिहार में कांग्रेस पार्टी सिमटती चली गई। वर्ष 1990 में हुए विधानसभा चुनाव में जहां कांग्रेस के 71 प्रत्याशी जीते थे वहीं 1995 में हुए चुनाव में मात्र 29 प्रत्याशी ही विधानसभा पहुंच सके। वर्ष 2005 में हुए चुनाव में नौ, जबकि 2010 में हुए चुनाव में कांग्रेस के चार प्रत्याशी ही विजयी पताका फहरा सके।

कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता और वरिष्ठ कांग्रेसी उमाकांत सिंह कहते हैं, “कांग्रेस के जनाधार में आई कमी का सबसे बड़ा कारण उसके पारंपरिक वोटों का बिखराव है। वे कहते हैं, कांग्रेस का वोट करीब सभी जातियों में था, परंतु 90 के दशक में मंडल-कमंडल की राजनीति के बाद कांग्रेस की स्थिति और कमजोर हो गई।” उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा कि कांग्रेस संप्रदायवाद, भ्रष्टाचार और जातिवाद की राजनीति करने वाली पार्टी से दूर रही थी, मगर बाद में कांग्रेस ऐसे ही दलों के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरने लगी।

वह कहते हैं, “जिन दलों का उदय ही कांग्रेस के विरोध के कारण हुआ था, वही दल कांग्रेस के साथ हो गई। इससे कांग्रेस से जनता दूर होती गई।” वैसे कांग्रेस के विधायक दल के नेता सदानंद सिंह कहते हैं कि आने वाले विधानसभा में कांग्रेस की स्थिति में सुधार संभव है। बिहार विधानसभा चुनाव-2015 में सत्तारूढ़ महागठबंधन में शामिल कांग्रेस अपने पूर्व साथी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जनता दल (युनाइटेड) के साथ चुनाव मैदान में है। महागठबंधन में सीट बंटवारे में कांग्रेस को 40 सीटें मिली हैं। राजनीति के जानकार सुरेंद्र किशोर कहते हैं कि बिहार में कांग्रेस के ग्राफ गिरने का सबसे बड़ा कारण मंडल-कमंडल की राजनीति के दौर में आरक्षण को लेकर स्पष्ट रणनीति का नहीं होना है। यही कारण है कि कांग्रेस से मतदाता दूर होते चले गए और अन्य दलों का उदय हो गया। किशोर का मानना है कि कांग्रेस को बिहार में अपने पुराने रुतबे में लौटने के लिए किसी दमदार नेता की जरूरत है।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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