मुख्य समाचार
बुराइयों से दूर रखना है रोज़े का मकसद
‘‘सिर्फ भूखा-प्यासा रहना ही रोजा नहीं है। रोजे का असली मतलब है, बुराइयों से दूर रहना और अल्लाह की इबादत में मशगूल रहना।” माह-ए-रमज़ान लोगों को नेकी की तरफ बुलाता है और कुरआन जिंदगी गुजारने का बेहतरीन तरीका बताता है। रमज़ान के पाक महीने में हर नेक अमल यानि पुण्य के कामों का सवाब 70 गुना बढ़ जाता है। रोज़ा इस्लाम के पांच फरायज [जरूरी इबादतों] में से एक है। ऐसे व्रत या फास्ट का हर मजहब में किसी न किसी रूप में प्रावधान है लेकिन इस्लाम में पूरे एक महीने का रोज़ा फर्ज करार दिया गया है। अल्लाह ने कुरआन को रमज़ान माह में नाजिल कर यही पैगाम दिया है। कुरआन की बातों को जानकार उसे दूसरों तक पहुंचाना भी रोजे का मकसद है। इस्लाम विद्वानों के मुताबिक, पहले रमज़ान से शुरू होने वाली कुरआन की तिलावत और तरावीह की नमाज भी पूरे महीने पढ़नी चाहिए। रोज़ेदारों को कुरआन का एहतमाम भी ज्यादा से ज्यादा इस माह में करना चाहिए। साथ ही कुरआन को मायने के साथ पढ़ना चाहिए, ताकि अल्लाह तआला के एक-एक हुकुम पर अमल करना आसान हो सके। रमजान के रोजे के दौरान आंख, नाक, कान व जुबान का रोजा भी होना चाहिए और हर तरह से गुनाहों से बचना चाहिए।
रोजा अल्लाह को राजी करने के लिए रखा जाता है। भूखा-प्यासा भी उसी के लिए रहते हैं। यह माह रहमत, बरकत और मगफिरत का महीना है। आखिरी असरा मगफिरत में तीन रातें सबे कद्र की होती हैं, जिनमें रातभर जागकर तिलावत की जाती हैं। रमजान में अल्लाह मुसलमानों का दिल नेकियों की तरफ झुका देता है, इसलिए कुरआन को ध्यान से सुनना चाहिए और उसकी बातों पर अमल करना चाहिए। कुरआन के मुताबिक, जिंदगी गुजारने पर कामयाबी मिलती है। रोज़े का मकसद यह भी है कि अमीर, गरीब के बीच की खाई बराबर रहे। रमजान का महीना मुसलमानों के लिए कई मायने में रहमतें व बरकतें लेकर आता है। इस माह में रखे जाने वाले रो़जे की अहमियत अगर आज आधुनिक अर्थो में भी देखा जाए तो इसका काफी महत्व है। इसमें एक ओर जहां रो़जा रखने व इबादत करने से मृत्यू के बाद की जिंदगी (आकबत) बनती है और सवाब से उसकी झोली भर जाती है वहीं दूसरी ओर रो़जे से इस दुनिया की आधुनिक जिन्दगी में भी तुरंत एक फायदा फौरी तौर पर जो लोगों को पहुंचता है वह सेहत का तोहफा है।
रमज़ान में जकात, सदका व फितरा निकालने से बरकत होती है और गरीब भी खुशियों के साथ ईद मनाते हैं। माह-ए-रमजान इबादत का महीना है। हर बालिग आकिल के लिए रोज़ा फर्ज है। बिना किसी शरई मजबूरी के जो भी इन रोजों को छोड़ेगा, वह गुनहगार है। बीमारों और मुसाफिरों को रोज़े में छूट दी गई है। बीमारी दूर हो जाने व सफर से लौटने के बाद छूटे हुए रोज़े रखना जरूरी है। बेहतर है कि रमजान के फर्ज रोज़ो को छोड़ा न जाए। रोजा सिर्फ भूखा रहने का नाम नहीं है। बुरे काम से परहेज जरूरी है। तकवा के बगैर रो़जा यानि रो़जेदार अगर बुरे कामों और बुरी बातों जैसे- झूठ, गीबत व गाली-गलौज वगैरह से परहेज न करे और नेक काम जैसे- इबादत, तिलावत, सदका व खैरात वगैरह न करे तो फिर वह रो़जा नहीं होगा बल्कि उसे फाका कहेंगे। हदीस-ए-नबवी में कहा गया है कि जो शख्स रो़जे की हालत में भी बुरे कामों को न छोड़े तो खुदा को ऐसे रो़जेदार की भूख-प्यास से कुछ लेना देना नहीं है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा समय इबादत में गुजारना मुनासिब होता है। रोज़ेदारों को रमजान के पूरे महीने गुनाहों से बचना चाहिए। अल्लाह उन पर अपनी नजरें नाजिल करता है। रोजा रखने से अहसास होता है कि गरीबों की भूख प्यास क्या होती है? जकात करने के पीछे गरीबों की भलाई का सबक छिपा है।
रोज़ा रखना अल्लाह का हुक्म है। साथ ही आधुनिक अर्थो यानि जदीद मायनों में भी इसकी बड़ी अहमियत है। कहा जाता है कि रो़जे से दुनियाबी व जिस्मानी बहुत से फायदे हैं, पेट जब खाली रहता है तो अक्ल भी खुलती है। भरा रहने पर आदमी की अक्ल कुंद हो जाती है इसलिए भी आज के इस आधुनिक युग में विज्ञान के लिहाज से भी रोजे की काफी अहमियत है। बताया जाता है कि अंग्रेजों ने भी तीन सौ से ज्यादा फायदे रो़जा रखने के बताये हैं। इस मौके पर एक शेर भी कहा गया है कि “हमको गुरबत ने अता की है बशीरत की निगाह, पेट जलता है तो बातिन जिलह होती है”। लिहाजा इससे साफ जाहिर है कि रो़जे का मकसद इंसान को जिस्मानी और रूहानी दोनों तौर पर बिल्कुल पाक-ओ-साफ कर देना है। इस एक महीने में बुराई से बचने और नेक काम करने की ऐसी ट्रेनिंग दे देना है जिसकी रोशनी में वह पूरे साल की जिन्दगी गुजार सके।
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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