हेल्थ
भारतीय महिलाओं में कम उम्र में रजोनिवृत्ति के लक्षण : अध्ययन
नई दिल्ली, 27 मार्च (आईएएनएस)| एक अध्ययन से पता चला है कि लगभग एक-दो प्रतिशत भारतीय महिलाएं 29 से 34 साल के बीच रजोनिवृत्ति के लक्षणों का अनुभव करती हैं। इसके अतिरिक्त, 35 से 39 साल की उम्र के बीच की महिलाओं में यह आंकड़ा आठ प्रतिशत तक बढ़ जाता है। नोवा इवी फर्टिलिटी और इवी स्पेन द्वारा किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि कोकेशियन महिलाओं की तुलना में भारतीय महिलाओं के अंडाशय छह साल अधिक तेज हैं। इसके परिणाम बहुत गंभीर हैं।
इन दिनों जोड़े देरी से विवाह करते हैं और गर्भधारण भी देर से करते हैं, वे इस बात से अनजान हैं कि भारतीय महिलाओं की जैविक घड़ी तेजी से आगे बढ़ रही है। एक हालिया विश्लेषण में भी 36 वर्ष से कम उम्र की भारतीय महिलाओं में बांझपन के सामान्य कारणों को पाया गया।
नोवा इवी फर्टिलिटी में कंसल्टेंट डॉ. पारुल सहगल ने कहा, प्रीमैच्यौर ओवेरियन फेल्योर (पीओएफ) को समय से पूर्व अंडाशय में खराबी आने के रूप में जाना जा सकता है। इसमें कम उम्र में ही (35 वर्ष से कम उम्र में) अंडाशय में अंडाणुओं की संख्या में कमी आ जाती है। सामान्यत: महिलाओं में 40-45 वर्ष की उम्र तक अंडे बनते रहते हैं। यह रजोनिवृत्ति से पहले की औसत आयु है। पीओएफ के मामलों में महिलाओं में 30 वर्ष की उम्र में ही अंडाणु नहीं मिलते हैं।
उन्होंने कहा, बांझपन, या स्वाभाविक रूप से गर्भधारण करने में असमर्थता, पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान रूप से प्रभावित करती है। आम तौर पर एक प्रचलित गलत धारणा है कि बांझपन सिर्फ महिलाओं की समस्या है। पुरुष बांझपन की घटनाएं बढ़ रही हैं और ऐसा उन शहरों में बड़े पैमाने पर हो रहा है, जहां लोग तनावपूर्ण जीवनशैली से गुजर रहे हैं।
पीएफओ में अंडाशय खराब हो जाते हैं और वे पर्याप्त मात्रा में एस्ट्रोजन हार्मोन पैदा नहीं करते या नियमित तौर पर अंडाणु नहीं देते। अंडाशय में अंडाणुओं की संख्या में कमी से महिलाओं प्रजनन क्षमता प्रभावित होती है और उनका गर्भवती हो पाना मुश्किल हो जाता है। जीवनशैली से जुड़े बदलाव जैसे धूम्रपान, गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल, अंडाशय की पहले हुई कोई सर्जरी, कैंसर रोकने के लिए की गई थैरेपी और पारिवारिक पीओएफ आदि कुछ ऐसे जाने-पहचाने कारण हैं, जिनके कारण कम उम्र में अंडाणुओं की संख्या में कमी आ जाती है।
पीओएफ का एक अन्य लक्षण मासिक नहीं होना या समय पर नहीं होना भी है। कई बार किसी महिला को नियत समय पर मासिक हो रहा है तो कई बार अगले कुछ महीनों मासिक समय पर नहीं होते। उनमें रजोनिवृत्ति के अन्य लक्षण जैसे रात में पसीना आना, नींद न आना, तनाव, मूड मंे जल्द बदलाव, योनि में सूखापन, ताकत में कमी, सेक्स की इच्छा कम होना, सम्भोग के समय दर्द और ब्लैडर कंट्रोल में समस्या जैसे लक्षण भी नजर आ सकते हैं।
लाइफ स्टाइल
दिल से जुड़ी बीमारियों को न्योता देता है जंक फूड, इन खाद्य पदार्थों से करें परहेज
नई दिल्ली। अनियमित लाइफ स्टाइल व तला भुना जंक फूड दिल से जुड़ी बीमारियों की मुख्य वजह बन गया है। स्टडीज़ के अनुसार, अगर आप अपने दिल की सेहत में सुधार करना चाहते हैं, तो इन 4 तरह के खाने से दूरी बना लें।
तला हुआ खाना
कई शोध से पता चला है कि सैचुरेटेड फैट्स शरीर में बैड कोलेस्ट्ऱॉल की मात्रा को बढ़ाने का काम करते हैं। रेड मीट, फ्रेंच फ्राइज़, सैंडविच, बर्गर आदि जैसे फूड्स LDL यानी बैड कोलेस्ट्रॉल का स्तर बढ़ाते हैं, जिससे स्ट्रोक और दिल के दौरे का ख़तरा बढ़ जाता है।
चीनी युक्त सोडा या फिर केक
चीनी को मीठा ज़हर ही कहा जाता है। केक, मफिन, कुकीज़ और मीठी ड्रिंक्स शरीर में सूजन का कारण बनते हैं। चीनी का ज़्यादा सेवन शरीर में फैट्स बढ़ाता है, जिससे डायबिटीज़, हार्ट अटैक और स्ट्रोक का खतरा बढ़ता है।
लाल मांस
रेड मीट सैचुरेटेड फैट्स से भरपूर होता है, जिसकी वजह से धमनियों में प्लाक जम सकता है। जिनको मटन खाने का शौक है, उन्हें वह हिस्सा खाना चाहिए जिसमें ज़्यादा प्रोटीन और कम फैट हो। अगर आप चिकन खा रहे हैं तो ब्रेस्ट, विंग्ज़ वाला हिस्सा में ज़्यादा प्रोटीन होता है और कम फैट। वहीं, मछली सबसे हेल्दी और अच्छा ऑप्शन है।
सफेद चावल, ब्रेड या फिर पास्ता
सफेद ब्रेड, मैदे, चीनी और प्रोसेस्ड तेल को मिलाकर तैयार किए जाने वाले फूड्स में किसी भी तरह का फायदा नहीं होता। ऐसा ही सफेद पास्ता के साथ भी है। सफेद चावल में फाइबर की मात्रा कम होती है, इसलिए दिल की सेहत के लिए इसका ज़्यादा सेवन नहीं किया जाना चाहिए।
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