साइंस
माईकॉर्ड की पहल से निजी गर्भनाल रक्त बैंकिंग को मिलेगी नई दिशा
नई दिल्ली। गर्भनाल के रक्त का उपयोग रक्त से संबंधित कई बीमारियों के इलाज में होता है। इसी को ध्यान में रखते हुए सेलुजेन बायोटेक की अग्रणी स्टेम सेल अनुसंधान संस्था ‘माईकॉर्ड’ ने एक अनूठी पहल ‘माईकॉर्ड प्रेसस पूल प्लान’ की शुरुआत करके भारत में गर्भनाल रक्त (यूसीबी) बैंकिंग को नई दिशा व दशा दी है। इस पहल के तहत गर्भनाल रक्त इकाइयों के एक बड़े निजी पूल का निर्माण किया जाएगा। यह पूल अपने सदस्यों को खुद के अलावा अन्य सर्वश्रेष्ठ मिलान वाले गर्भनाल रक्त के नमूने का भी उपयोग करने की अनुमति देगा।
दरअसल, खुद के गर्भनाल रक्त का इस्तेमाल रक्त से संबंधित अधिकतर बीमारियों में प्रत्यारोपण के लिए नहीं किया जा सकता है, क्योंकि अधिकतर बीमारियां आनुवंशिक होती हैं या विरासत में मिली हुई होती हैं। ऐसे मामलों में गर्भनाल के रक्त का कोई उपयोग नहीं हो पाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए इस पहल को अंजाम दिया गया है, ताकि ऐसे लोग सर्वश्रेष्ठ मिलान वाले गर्भनाल के रक्त का इस्तेमाल कर सकें।
यह पहल निजी गर्भनाल रक्त बैंकों की वर्तमान कार्य प्रणाली से बिल्कुल अलग है, जो अधिकतर मामलों में केवल अपने ही गर्भनाल रक्त का इस्तेमाल करने की अनुमति देते हैं और इस तरह से स्टेम सेल प्रत्यारोपण ज्यादातर मामलों में नहीं हो पाते हैं। इस तरह से इस पहल की मदद से परंपरागत गर्भनाल रक्त बैंकिंग की प्रवृत्ति में क्रांतिकारी बदलाव लाया जा रहा है। हालांकि, माईकॉर्ड सिर्फ एक गर्भनाल रक्त बैंक नहीं है, बल्कि यह गर्भनाल रक्त, गर्भनाल ऊतक और एम्नयोटिक झिल्ली के संभावित चिकित्सीय उपयोग की भी अनुमति देता है।
नई दिल्ली में बुधवार को एक संवाददाता सम्मेलन में गर्भनाल के मूल्यवान संसाधन की बैंकिंग की जरूरत के बारे में बताया गया। चिकित्सकों और शोधकर्ताओं ने इस बात पर चर्चा की कि माईकॉर्ड प्रेसस पूल प्लान भारत में उन लोगों के रक्त से संबंधित बीमारियों के इलाज में किस प्रकार क्रांतिकारी बदलाव ला सकता है, जिन्होंने अपने गर्भनाल की बैंकिग कराने का निर्णय लिया है और जरूरत के समय में पूल का एक हिस्सा बन जाते हैं। इस दौरान इस बात पर भी बल दिया गया कि जैसे-जैसे पूल विकसित होता जाएगा वैसे-वैसे सबसे अच्छे मिलान वाले कॉर्ड पाने की संभावना भी बढ़ती जाएगी।
गर्भनाल रक्त प्रत्यारोपण (यूसीबीटी) ने सन् 1988 में फ्रांस में पहली सफल यूसीबीटी के बाद से ही रक्त से संबंधित विभिन्न घातक और गैर घातक बीमारियों के लिए एक प्रभावी उपचार के साधन के रूप में लोकप्रियता हासिल कर ली है। उसके बाद से दुनिया भर में 35,000 से अधिक सफल गर्भनाल रक्त प्रत्यारोपण किए जा चुके हैं।
गुडग़ांव स्थित मेदांता अस्पताल के बाल रक्त रोग विशेषज्ञ डॉ.एस.पी. यादव ने कहा, भारत में निजी स्टेम सेल बैंकों की संख्या बढ़ रही है। यहां माता-पिता अपने नवजात शिशु की रक्त संबंधी बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करने के लिए सालाना 500 करोड़ से अधिक का निवेश कर रहे हैं। दुर्भाग्य से, निजी बैंकों ने यह प्रचार किया है कि किसी भी व्यक्ति के गर्भनाल रक्त स्टेम कोशिकाओं का 80 से अधिक चिकित्सा समस्याओं में इस्तेमाल किया जा सकता है, जो सच नहीं है। तथ्य यह है कि रक्त संबंधी बीमारियों में प्रत्यारोपण के लिए खुद के यूसीबी के उपयोग की संभावना 5 प्रतिशत से कम है। खुद के उपयोग के लिए यूसीबी के भंडारण की इस निर्थकता को चिकित्सा बिरादरी ने भी अपनी मान्यता दे दी है।
उन्होंने कहा, गर्भनाल रक्त स्टेम सेल प्रत्यारोपण को एक व्यवहार्य विकल्प बनाने के लिए किसी अन्य व्यक्ति का गर्भनाल रक्त (एलोजेनिक) सबसे अच्छा समाधान है। चूंकि भारत में सार्वजनिक क्षेत्र में सीमित गर्भनाल रक्त इकाइयां उपलब्ध हैं, इसलिए माईकॉर्ड प्रेसस पूल प्लान इस रिक्तता को भरने के लिए अच्छी तरह से कारगर है।
सेलुजेन बायोटेक प्राइवेट लिमिटेड के संस्थापक-निदेशक ललित जायसवाल ने कहा, माईकॉर्ड का उद्देश्य माईकार्ड प्रेसस पूल प्लान (एमपीपीपी) के माध्यम से इसे फिर से परिभाषित करना है। निजी बैंकिंग के तहत संग्रहित की गई सभी गर्भनाल रक्त इकाइयों को सभी ग्राहकों के लिए सबसे अच्छे मिलान वाले गर्भनाल रक्त यूनिट का पता लगाने के लिए एक गर्भनाल रक्त पूल में उपलब्ध कराया जाना चाहिए। इसके तहत किसी गर्भनाल को लेने के लिए कोई अतिरिक्त शुल्क नहीं देना पड़ता है, जबकि किसी सार्वजनिक बैंक में इसके उपलब्ध होने पर यह बहुत महंगा पड़ता है। यह अनूठा लाभ उन कीमती बच्चों के लिए सबसे लाभकारी होगा जिनके कॉर्ड की बैंकिंग की गई हो।
गर्भनाल रक्त के अलावा, उभरते हुए चिकित्सकीय अनुप्रयोगों के लिए अपने ग्राहकों के विशिष्ट निजी इस्तेमाल के लिए माईकार्ड गर्भनाल ऊतक, एमनियोटिक झिल्ली और शेष गर्भनाल (प्रत्यक्ष कॉर्ड भंडारण) के क्षेत्र में भी काम करता है। गर्भनाल ऊतक को स्टेम कोशिकाओं से लिया जाता है जिसका उपयोग तंत्रिका तंत्र, गंभीर ऑस्टियोआर्थराइटिस, ऑप्टिक तंत्रिका एट्रोपी, मधुमेह आदि जैसी विभिन्न डिजेनरेटिव बीमारियों के उपचार में हो सकता है। माईकॉर्ड भंडारण से पहले ऊतक स्टेम कोशिकाओं को अलग करने के मानदंड का पालन किया जाता है, ताकि उपयोग के समय उसकी पूरी क्षमता एवं प्रभावकारिता बनी रहे।
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फेमस न्यूक्लियर फिजिस्ट होमी जहांगीर भाभा का आज जन्मदिन, जानें कुछ उनके बारे में
नई दिल्ली। इंडियन न्यूक्लियर प्रोग्राम के जनक और फेमस न्यूक्लियर फिजिस्ट होमी जहांगीर भाभा का आज जन्मदिन है। जे. भाभा, टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च (TIFR) के फाउंडिंग डायरेक्टर और फिजिक्स के प्रोफेसर भी थे। होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 में एक अमीर पारसी परिवार में हुआ था। होमी जहांगीर भाभा के पिता का नाम जहांगीर होर्मुस्जी भाभा और माता का नाम मेहरबाई भाभा था, इनके पिता एक जाने-माने वकील थे जबकि माँ एक गृहिणी थीं।
होमी भाभा ने 16 साल की आयु में ही सीनियर कैम्ब्रिज परीक्षा पास कर ली थी। फिर वे गोनविले और कैयस कॉलेज में मैकेनिकल इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने के लिए कैम्ब्रिज गए। इसके बाद उन्होंने कैम्ब्रिज में कैवेंडिश लैब में रिसर्च करना शुरू किया और उनका पहला रिसर्च पेपर 1933 में प्रकाशित हुआ। दो साल बाद, उन्होंने अपनी पीएचडी हासिल की और 1939 तक कैम्ब्रिज में रहे।होमी भाभा ने छात्र के रूप में कोपेनहेगन में नोबेल पुरस्कार विजेता नील्स बोहर के साथ काम किया और क्वांटम सिद्धांत के विकास में प्रमुख भूमिका निभाई।
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