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सैनेटरी नैपकिन पर जीएसटी, आखिर इरादा क्या है?

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नई दिल्ली, 6 जुलाई (आईएएनएस)| केंद्र सरकार ने वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के व्यापारियों द्वारा विरोध के बावजूद इसे ऐतिहासिक बताकर लागू कर दिया, लेकिन विरोध अभी थमा नहीं है। उधर, महिलाएं भी जीएसटी को लेकर एक अलग तरह की लड़ाई लड़ रही हैं। उनकी लड़ाई मगर अधिकार और स्वच्छता से जुड़ी है।

देश का दुर्भाग्य है कि बिंदी, सिंदूर, सूरमा और यहां तक कि कंडोम को जीएसटी के दायरे से बाहर रखा गया है, लेकिन सैनेटरी नैपकिन पर 12 फीसदी कर लगाया गया है। महिला संगठनों से लेकर विभिन्न दलों ने सरकार की मंशा पर प्रश्नचिह्न लगा दिया है कि क्या बिंदी और सिंदूर, सैनेटरी नैपकिन से ज्यादा जरूरी हैं? या फिर सरकार के दृष्टिकोण में महिला स्वच्छता की तुलना में श्रृंगार का अधिक महत्व है?

मगर सरकार का कहना है कि जीएसटी की दरें स्थायी नहीं हैं, इसमें संशोधन होता रहेगा और भविष्य में सैनेटरी नैपकिन को जीएसटी के दायरे से बाहर भी रखा जा सकता है, लेकिन अभी तो टैक्स देना ही होगा।

सरकार पिछले तीन वर्षो से ‘बेटी बचाओ’, बेटी पढ़ाओ’ और ‘स्वस्थ भारत’ जैसे अभियानों का जोर-शोर से डंका बजा रही है, लेकिन महिलाओं के मुद्दे पर वह इतनी ‘असंवेदनशील’ कैसे हो गई?

यह जानकर अचरज होगा कि देश में 35.5 करोड़ महिलाओं में से सिर्फ 12 फीसदी आबादी ही सैनेटरी पैड का इस्तेमाल करती हैं। वजह है इनकी ऊंची कीमतें। इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने वाली संस्था ‘शी सेज’ ने हैशटैग ‘लहू का लगान’ नाम से सोशल मीडिया पर एक मुहिम शुरू की थी।

संस्था से जुड़ी सदस्या नेहा बताती हैं, हमने अप्रैल में इस मुहिम की शुरुआत की थी, मकसद था कि हम अपने ही लहू का लगान क्यों दें? माहवारी एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिससे हर महिला को जूझना पड़ता है। सैनेटरी नैपकिन की कीमत ज्यादा होने से यह एक बड़ी आबादी की पहुंच से बाहर भी है। सरकार को इसे कर मुक्त करना चाहिए, और ग्रामीण स्तरों पर तो इसका निशुल्क वितरण करना चाहिए।

दिल्ली के झंडेवालान स्थित एनजीओ ‘दास फाउंडेशन’ की संस्थापक एवं महिला कार्यकर्ता योगिता ने आईएएनएस को बताया, यह सरकार का बेवकूफी भरा कदम है। इस फैसले से महिलाओं के प्रति सरकार का गैरजिम्मेदाराना रवैया झलकता है। इन्होंने महिलाओं को सिर्फ साजो-श्रृंगार तक ही सीमित रखा है और यह फैसला उसका प्रमाण है।

उन्होंने कहा, सैनेटरी पैड का इस्तेमाल नहीं करने से महिलाओं में तरह-तरह की बीमारियां घर कर लेती हैं। सरकार को चाहिए कि गांवों से लेकर दूर-दराज के इलाकों तक सैनेटरी पैड को निशुल्क बांटा जाए, क्योंकि गरीब तबके की महिलाएं इन्हें नहीं खरीद सकतीं। लेकिन इसके विपरीत सरकार उस पर टैक्स लगा रही है। इससे बड़ा असंवेदनशीलता का उदाहरण और कहां देखने को मिलेगा!

कांग्रेस प्रवक्ता एवं महिलाओं के मुद्दों को जोर-शोर से उठाने वाली प्रियंका चतुर्वेदी ने आईएएनएस से कहा, सरकार एक तरफ तो महिला सशक्तीकरण की बात करती है, तो दूसरी तरफ इस तरह के कदम उठाकर महिलाओं को लेकर अपनी असंवेदनशीलता का परिचय भी देती है। यह सीधे तौर पर महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़ा मुद्दा है। सरकार को बिंदी, सिंदूर महंगा होने की चिंता है, मगर उन्हें महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों से कोई सरोकार नहीं है। 85 फीसदी से अधिक महिलाओं की सैनेटरी पैड तक पहुंच नहीं है। इसे लेकर सरकार ने अब तक क्या किया?

इस मुद्दे पर महिलाओं के रोष और सरकार की नीयत पर उठे सवालों को खारिज करते हुए दिल्ली महिला आयोग की पूर्व अध्यक्ष एवं भाजपा नेता बरखा शुल्का सिंह कहती हैं, जीएसटी की दरें हमेशा के लिए निर्धारित नहीं की गई हैं। इसमें समय-समय पर संशोधन होता रहेगा और हो सकता है कि जीएसटी परिषद की अगली बैठक में सैनेटरी नैपकिन को करमुक्त भी कर दिया जाए। बिंदी और सिंदूर को सैनेटरी नैपकिन से जोड़कर बेवजह ही इसे तूल दिया जा रहा है।

बरखा ने आईएएनएस को बताया, जीएसटी से पहले सैनेटरी पैड पर 14 फीसदी का टैक्स लगा था, जिसे जीएसटी के तहत 12 फीसदी के दायरे में लाया गया। इस तरह सैनेटरी पैड की खरीद में दो फीसदी की गिरावट आई है।

तो क्या इस मुद्दे को राजनीतिक रंग दिया जा रहा है? इसके जवाब में दिल्ली महिला आयोग की अध्यक्ष स्वाति मालीवाल कहती हैं, सवाल यह नहीं है कि पहले 14 फीसदी था और अब इसे 12 फीसदी किया गया। सवाल यह है कि जब लंबे समय से महिलाओं के स्वास्थ्य में सुधार के लिए, उन तक सैनेटरी पैड की पहुंच बनाने के लिए अभियान चलाया जा रहा है कि इसे निशुल्क किया जाए, तो क्यों सरकार उस पर भारी-भरकम कर लगाती है और सिंदूर और बिंदी को करमुक्त कर देती है? हमें इसका जवाब चाहिए। हमने इस बारे में प्रधानमंत्री मोदी और केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली को पत्र भी लिखा है।

महिला कार्यकर्ता योगिता कहती हैं कि महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर राजनीति नहीं होनी चाहिए। सरकार अलग से बजट का प्रावधान कर घर-घर शौचालय बनवा सकती है तो ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों में निशुल्क सैनेटरी नैपकिन उपलब्ध कराना कौन सा मुश्किल काम है।

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RBI गवर्नर शक्तिकांत दास की तबियत बिगड़ी, अस्पताल में भर्ती

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नई दिल्ली। आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास को चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया है। RBI प्रवक्ता की ओर से ये जानकारी दी गई है। फिलहाल उनकी हालत स्थिर है। वो आज ही हॉस्पिटल से डिस्चार्ज हो जाएंगे। एसिडिटी की शिकायत के बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

आरबीआई के प्रवक्ता ने कहा भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर श्री शक्तिकांत दास को एसिडिटी की शिकायत हुई और उन्हें निगरानी के लिए चेन्नई के अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया। अब उनकी हालत ठीक है और अगले 2-3 घंटों में उन्हें छुट्टी दे दी जाएगी। चिंता की कोई बात नहीं है। जहां तक बात करें सीने में दर्द की तो यह कई कारणों से हो सकता है। सिर्फ हार्ट अटैक के कारण ही सीने में दर्द नहीं करता है।

सीने में दर्द उठने पर अक्सर लोग पेट में गैस या हार्ट अटैक मान लेते हैं.,लेकिन ऐसा जरूरी नहीं क्योंकि छाती में दर्द 5 दूसरी बीमारियों के संकेत भी हो सकते हैं। ऐसे में दर्द होने पर सबसे पहले डॉक्टर को दिखाना चाहिए।

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