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‘हमारे शहरों को साफ रखने वाले कर्मचारी न्यूनतम वेतन से भी महरूम’

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एक दशक की लंबी कानूनी लड़ाई के बाद सर्वोच्च न्यायलय ने अप्रैल 2017 में फैसला दिया कि भारत की सबसे धनी नगरपालिका ब्रह्नमुंबई महानगर निगम (बीएमसी) के 2,700 संविदा श्रमिकों को स्थायी नौकरियां दी जाएंगी।

इस फैसले के बाद अब सड़कों पर झाडू़ लगाने वाले, कचरा एकत्र करने वाले और नालों की सफाई करने वाले यह ठेका श्रमिक अभी तक स्वास्थ्य और अन्य लाभ, अवकाश, और पेंशन के हकदार नहीं थे। लेकिन अब उन्हें दो साल का वेतन और अन्य कर्मचारी लाभ जैसे साप्ताहिक छुट्टी और वेतन की कटौती के बगैर चिकित्सकीय छुट्टी आदि का लाभ मिलेगा।

मुंबई के स्वच्छता श्रमिक संघ के महासचिव व टेक्सटाइल इंजीनियर मिलिंद रानाडे ने ‘इंडियास्पेंड’ से खास मुलाकात में बताया कि उन्होंने एक बार श्रमिकों को दोपहर के भोजन के दौरान कचरे के एक ढेर पर खाना खाते देखा तो उन्हें पता चला कि वह अनुबंध पर कार्य करते हैं और उनके पास खाने के लिए कोई स्थान नहीं है।

रानाडे ने कहा कि नगरपालिकाओं व नगर निगमों द्वारा देश भर में संविदा प्रणाली का दुरुपयोग किया गया है। नगर निगम ने श्रमिकों के शोषण को बढ़ावा देने, खराब कामकाजी परिस्थितियों को बनाए रखने और मजदूरों के प्रति उदासीनता दिखाई है, जो आमतौर पर दलित वर्ग से आते हैं।

मिलिंद से पूछा गया कि बीएमसी में कितने कर्मचारी अस्थायी संविदा पर हैं? अप्रैल 2017 के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार 2,700 ऐसे मजदूरों के लिए नियमित नौकरियों का उनके लिए क्या मतलब है।

इस पर उन्होंने कहा कि बीएमसी में 28,000 स्थायी कर्मचारी और 6,500 संविदा कर्मचारी हैं। कचरा वाहटुक श्रमिक संघ संविदा पर काम करने वाले श्रमिकों का सबसे बड़ा संगठन है, जिसके सदस्य 5000 से अधिक संविदा कर्मचारी हैं। इनके स्थायीकरण के लिए हमारी चार याचिकाएं न्यायालयों में लंबित हैं। 2,700 कार्यकर्ताओं के मामलों के निपटारे के अलावा औद्योगिक न्यायाधिकरण में 580 संविदा कामगारों का मामला और ऐसे ही 1,300 कर्मचारियों और 1,100 कर्मचारियों के दो अन्य मामले लंबित हैं।

उन्होंने बताया कि पहला मामला 1997 में दायर किया गया था, जिसका निपटान 2003 में हुआ। इसके तहत 1,204 श्रमिकों को स्थायी कर दिया गया। 6,500 (संविदा श्रमिक) में से 5,000 के पास अब विभिन्न मामलों के माध्यम से स्थायी नौकरियां हैं।

मिलिंद से पूछा गया कि बीएमसी ने स्वच्छता श्रमिकों को काम पर रखने के लिए संविदा प्रणाली का इस्तेमाल सबसे पहले कब किया और किस तरह से संविदा प्रणाली लाभों से वंचित करती है? जवाब में उन्होंने कहा कि 1980 के दशक में बीएमसी ने संविदा कर्मचारियों को काम पर रखना शुरू किया। इनके काम को ‘मलबे’ को उठाना करार दिया गया। मलबे शब्द का उपयोग इस तथ्य को छिपाने के लिए किया गया था कि वे कचरा उठा रहे हैं, चूंकि मलबा निगम की जिम्मेदारी नहीं है, लेकिन अवशिष्ट और कचरा उठाना उनकी जिम्मेदारी है।

उन्होंने कहा कि हमने 1999 में केस जीता, उसके बाद बीएमसी ने सभी अनुबंध कार्यो को बंद कर दिया। लेकिन, उन्होंने 2004 में दोबारा शुरू कर दिया। इस बार उन्होंने इसे हैदराबाद पैटर्न करार दिया। हैदराबाद पैटर्न क्या है? इसका अर्थ है कि प्रत्येक ठेकेदार 20 से कम श्रमिकों को रोजगार देगा। अगर आपके पास 20 कर्मचारी हैं, तो फिर आप पर सभी श्रम कानून लागू होते हैं। इसलिए श्रम कानूनों के दायरे से बचने के लिए 18 श्रमिकों को काम पर रखा जाने लगा। बीएमसी में अब 350 से अधिक ठेकेदार हैं और प्रत्येक ठेकेदार 20 से कम श्रमिकों का उपयोग कर रहे हैं।

उन्होंने कहा कि स्थिथि यह है कि कुछ जगहों पर आपको ब्राह्मण समुदाय से संबंध रखने वाले स्थायी श्रमिक मिलेंगे लेकिन वे वास्तव में यह (स्वच्छता कार्य) नहीं करते हैं। उनका वेतन 21,000 रुपये है और वे यह काम कराने के लिए दलित को 5000 रुपये का भुगतान करते हैं। कागज पर उसी कर्मचारी को ‘उपस्थित’ दिखाया जाता है और उसे 15,000 रुपये मिलते हैं, जबकि अधिकारियों के चुप रहने के लिए 1000 रुपये की ‘दस्तूरी’ (दलाली) का भुगतान किया जाता है।

उन्होंने कहा कि भारत भर में स्वच्छता विभाग के लिए काम कर रहे मजदूर दलित हैं। चूंकि यह 100 प्रतिशत आरक्षित हैं और इसलिए कोई भी इसे चुनौती नहीं दे रहा। कोई नहीं पूछता है कि इस क्षेत्र में स्वर्ण जाति के मराठा, ठाकुर या कायस्थ क्यों नहीं हैं।

भारत में कितने संविदा कर्मचारी हैं, इस पर मिलिंद ने कहा कि यह कोई भी नहीं जानता, लेकिन यह संख्या हजारों में है।

स्वच्छ भारत अभियान के बाद किसी भी तरह से सफाई कर्मचारियों का जीवन प्रभावित हुआ है, इस पर उन्होंने कहा, हां, उनका काम अधिक बढ़ गया है। इनसे कोई भी पूछने नहीं आता है कि क्या उन्हें (स्वच्छता कर्मचारी) पूरा वेतन मिल रहा है या नहीं और क्या उनकी भविष्य निधि (पीएफ) उनके खातों में जमा की जाती है या फिर उन्हें ईएसआईएस (कर्मचारी राज्य बीमा योजना) का लाभ मिलता है। भारत को स्वच्छ कौन कर रहा है? प्रधानमंत्री, जो पांच मिनट के लिए अपने हाथों में झाड़ू पकड़ते हैं? यह काम कर्मचारी और संविदा कर्मचारी कर रहे हैं और स्थाई कर्मचारियों से अधिक कर रहे हैं।

(आंकड़ा आधारित, गैर लाभकारी, लोकहित परोपकारी मंच इंडिया स्पेंड के साथ एक करार के तहत)

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5.6 मिलियन फॉलोअर्स वाले एजाज खान को मिले महज 155 वोट, नोटा से भी रह गए काफी पीछे

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मुंबई। टीवी एक्टर और पूर्व बिग बॉस कंटेस्टेंट एजाज खान इस बार महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत आजमाने उतरे थे। हालांकि जो परिणाम आए हैं उसकी उन्होंने सपने में भी उम्मीद नहीं की होगी। एजाज आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) के टिकट पर वर्सोवा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे लेकिन उन्होंने अभी तक केवल 155 वोट ही हासिल किए हैं।

आपको जानकर हैरानी होगी कि नोटा को भी 1298 वोट मिल चुके हैं। इस सीट से शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के हारून खान बढ़त बनाए हुए हैं जिन्हें अबतक करीब 65 हजार वोट मिल चुके हैं।

बता दें कि ये वहीं एजाज खान हैं जिनके सोशल मीडिया पर 5.6 मिलियन फॉलोअर्स हैं। ऐसे में बड़ी ही हैरानी की बात है कि उनके इतने चाहने वाले होने के बावजूद भी  1000 वोट भी हासिल नहीं कर पाए। केवल 155 वोट के साथ उन्हें करारा झटका लगा है।

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