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हिंदू राष्ट्रवाद से जुड़ा है डोकलाम सीमा विवाद
सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के लिए यह चेतावनी जैसी होनी चाहिए, जो ऊपर से तो देश की अंदरूनी और बाह्य सुरक्षा के लिए स्पष्टत: खतरा नजर आती है, लेकिन वास्तव में यह देश की राजनीति में हिंदू राष्ट्रवाद की धाक जमाने के एजेंडे को ही पूरा करती है।
डोकलाम में ही चल रहे सीमा विवाद को लें। प्रत्यक्ष तौर पर तो यह भूटान के विवादित सीमा क्षेत्र में चीन द्वारा सड़क बनाए जाने से भारत के समक्ष खड़ी हुई अप्रत्याशित चुनौती नजर आती है।
चीन से सटे पूर्वोत्तर राज्यों की सीमा पर तनाव की स्थिति वैसे तो कोई नई बात नहीं है, लेकिन 1962 में चीन से युद्ध में मिली हार से भारत को जो मूल सबक मिला है, वह चीन को युद्ध के लिए न भड़काना है।
दूसरी ओर इस बात में भी कोई संदेह नहीं है कि डोकलाम सीमा पर भारत ने उकसाने वाला कोई काम नहीं किया, हां चीन की अति महत्वाकांक्षी बेल्ड एंड रोड परियोजना का हिस्सा बनने से जरूर इंकार किया, जिसे इस सीमा विवाद के पीछे मूल कारण के तौर पर देखा जा सकता है।
ऐसे में यह सवाल उठता है कि क्या भारत में पनपी धार्मिक एवं राजनीतिक अस्थिरता के माहौल को देखते हुए चीन अपने चिर प्रतिद्वंद्वी भारत को पूर्वोत्तर के खूबसूरत पर्वतीय इलाके में शक्ति प्रदर्शन के लिए उकसा रहा है।
जम्मू एवं कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर और घाटी के अंदर भी सेना और अर्धसैनिक बलों को जिस तरह बढ़े हुए हिंसा के स्तर का सामना करना पड़ा है, उसे देखते हुए डोकलाम में 16 जून को भारतीय सैनिकों द्वारा चीनी सैनिकों को सड़क बनाने से रोकने से काफी पहले चीन सीमा पर तनाव भड़काने को बेसब्र रहा होगा।
कुल मिलाकर चीन की पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की रणनीति क्या है, इसका अनुमान तो मुश्किल है, लेकिन एक बात तो स्पष्ट है कि चीन को माहौल सैन्य कार्रवाई के अनुकूल लगा।
भारत के अंदर हिंदुत्ववादी एजेंडे पर चल रही सरकार, गोवध और गोरक्षा के नाम पर हो रही हिंसा और मुख्यधारा की मीडिया से लेकर सोशल नेटवर्क पर इसे लेकर मचे हंगामे के बीच राजकीय और गैर-राजकीय तत्वों द्वारा लगातार खड़ी की गई समस्याओं से घिरे भारत के इस ताकतवर पड़ोसी देश को सीमा पर तनाव की स्थिति पैदा करने का अच्छा अवसर नजर आया।
अगर डोकलाम मुद्दा देश में राष्ट्रवाद की भावना को उकसाने में कामयाब होता है तो पूर्वोत्तर में पहचान की राजनीति और ध्रुवीकरण के शब्दाडंबर से हिंदुत्व राष्ट्रवादियों को और शक्ति मिलेगी, लेकिन साथ ही इससे राष्ट्र कमजोर होगा और सीमा पर जोखिम को भी बढ़ावा देने वाला होगा।
(अर्णब एन. सेनगुप्ता कतर में पत्रकार हैं और यह उनके निजी विचार हैं)
नेशनल
महाराष्ट्र के CM एकनाथ शिंदे ने दिया इस्तीफा, क्या फडणवीस के सिर सजेगा ताज ?
मुंबई। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने राज्यपाल राज्यपाल सी.पी. राधाकृष्णन को अपना इस्तीफा सौंपा है। इस दौरान डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस और अजित पवार भी मौजूद थे। विधानसभा का कार्यकाल आज यानी 26 नवंबर तक ही है। नए मुख्यमंत्री की शपथ की तारीख तय नहीं है। तब तक शिंदे कार्यवाहक सीएम रहेंगे।
इस बीच महाराष्ट्र में अगली सरकार के गठन की रूपरेखा लेकर चर्चा तेज हो गई है। खबर है कि गृह मंत्री अमित शाह मंगलवार को देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात कर सकते हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा के नेतृत्व वाले ‘महायुति’ गठबंधन ने 288 सदस्यीय विधानसभा में 235 सीट हासिल की हैं। जिसमें बाजेपी अकेली 135 सीटों पर कब्जा कर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी है।
बीजेपी की महाराष्ट्र में ये अब तक की सबसे बड़ी जीत है। शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना ने 57 सीट पर जीत हासिल की और अजित पवार के नेतृत्व वाली राकांपा ने 41 सीट पर जीत दर्ज की है। मौजूदा उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस सीएम की रेस में सबसे आगे चल रहे है।
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