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बहादुरी को सलाम : अमरनाथ आतंकी हमले में बस ड्राइवर सलीम ने बचाई यात्रियों की जान

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श्रीनगर। सावन महीने के पहले सोमवार का दिन अमरनाथ यात्रा पर गए उन तीर्थयात्रियों के लिए मनहूस रहा जिनकी बस पर आतंकवादियों ने गोलियों की बौछार कर दी। हमले में करीब 7 हिंदू तीर्थयात्रियों की मौत हो गई लेकिन जिस तरह से आतंकवादी हमला हआ है उसमें मरने वाले लोगों की संख्‍या और ज्‍यादा हो सकती थी अगर गर बस ड्राइवर सलीम ने बुद्धिमानी का परिचय नहीं दिया होता।

आतंकवादी लगातार बस को निशाना बना रहे थे और ड्राइवर सलीम के सामने बस में सवार सभी 50 यात्रियों की जिंदगी बचाने का जिम्‍मा था। उन्‍होंने अपनी जिम्‍मेदारी भी निभाई और अपनी जान खतरे में डालकर तीर्थयात्रियों की जान बचाई।

आतंकवादियों की ओर से गोलियों की बौछार जारी थी, लेकिन सलीम ने एक भी सेकेंड के लिए बस नहीं रोकी। उन्‍हें यह बात बखूबी मालूम थी कि बस को रोकने का मतलब और ज्‍यादा नुकसान होगा। आतंकवादी हमले के बीच ही वह बस चलाते रहे और यात्रियों की सुरक्षा का ध्‍यान रखा।

अगर वह यह करने का फैसला नहीं लेते तो शायद मौत का आंकड़ा 7 से बढ़कर और ज्‍यादा हो सकता था। फायरिंग के बीच ही सलीम बस को ड्राइव करके पास के आर्मी कैंप तक ले गए और फिर उन्‍होंने बस रोकी। आर्मी कैंप घटनास्‍थल से करीब दो किलोमीटर की दूरी पर था।

सलीम के चचेरे भाई जावेद मिर्जा ने बताया कि सलीम ने उन्‍हें रात 9:30 बजे फोन कर बताया था कि बस पर फायरिंग हुई है। सलीम ने जावेद से कहा कि उन्‍होंने फायरिंग के बीच रुकने की बात कही थी। वह सिर्फ बस को सुरक्षित जगह तक ले जाना चाहते थे और तीर्थयात्रियों की सुरक्षा चाहते थे। जावेद की मानें तो सलीम को इस बात का अफसोस है कि अपनी कोशिशों के बाद भी वह सात लोगों की जान नहीं बचा सके। आपको बता दें कि इस बस में 50 यात्री सवार थे।

यात्रियों के लिए हीरो बने सलीम जम्‍मू–कश्‍मीर पुलिस के आईजी मुनीर खान ने इस पर बताया, ‘मैंने यात्रियों से बात की और उन सभी ने ड्राइवर की तारीफ की है। फायरिंग के बीच भी सलीम बस चलाते रहे और उन्‍हें सुरक्षित स्‍थान तक ले गए।’

आतंकवादी हमले में जो यात्री बच गए हैं वह सलीम का धन्‍यवाद करते नहीं थक रहे हैं। एक यात्री ने बताया, ‘हम सो रहे थे और अचानक गोलियों की आवाज से हमारी नींद खुली। वह ड्राइव करते रहे और हमें सुरक्षित स्‍थान तक लेकर गए। अगर वह नहीं होते तो शायद स्थिति और बुरी हो सकती थी।’

आईजी मुनीर खान ने बताया कि बस अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्‍टर्ड थी और वह भी काफिले का हिस्‍सा थी। बस में सवार यात्रियों ने दो दिन पहले ही दर्शन किए थे और वह बाकी जगहों पर घूमने जा रह थे। यह सच है कि बस ने एक अलग रास्‍ता लिया था लेकिन बस रजिस्‍टर्ड थी।

गुजरात के सीएम विजय रुपाणी ने भी ड्राइवर सलीम के बहादुरी की तारीफ की और उसे धन्‍यवाद दिया। सीएम ने सलीम का नाम बहादुरी के पुरस्‍कार के लिए नामित करने की बात कही।

 

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बिहार का ‘उसैन बोल्ट’, 100 किलोमीटर तक लगातार दौड़ने वाला यह लड़का कौन

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चंपारण। बिहार का टार्जन आजकल खूब फेमस हो रहा है. बिहार के पश्चिम चंपारण के रहने वाले राजा यादव को लोगों ने बिहार टार्जन कहना शुरू कर दिया है. कारण है उनका लुक और बॉडी. 30 मार्च 2003 को बिहार के बगहा प्रखंड के पाकड़ गांव में जन्मे राज़ा यादव देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते हैं.

लिहाजा दिन-रात एकक़र फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ रेसलिंग में जुटे हैं. राज़ा को कुश्ती विरासत में मिली है. दादा जगन्नाथ यादव पहलवान और पिता लालबाबू यादव से प्रेरित होकर राज़ा यादव ने सेना में भर्ती होने की कोशिश की. सफलता नहीं मिली तो अब इलाके के युवाओं के लिए फिटनेस आइकॉन बन गए हैं.

महज 22 साल की उम्र में राजा यादव ‘उसैन बोल्ट’ बन गए. संसाधनों की कमी राजा की राह में रोड़ा बन रहा है. राजा ने एनडीटीवी से कहा कि अगर उन्हें मौका और उचित प्रशिक्षण मिले तो वे पहलवानी में देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. राजा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए दिन रात मैदान में पसीना बहा रहे हैं. साथ ही अन्य युवाओं को भी पहलवानी के लिए प्रेरित कर रहे हैं.

’10 साल से मेहनत कर रहा हूं. सरकार ध्यान दे’

राजा यादव ने कहा, “मेरा जो टारगेट है ओलंपिक में 100 मीटर का और मेरी जो काबिलियत है उसे परखा जाए. इसके लिए मैं 10 सालों से मेहनत करते आ रहा हूं तो सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मेरे जैसे सैकड़ों लड़के गांव में पड़े हुए हैं. उन लोगों के लिए भी मांग रहा हूं कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सुविधा मिले तो मेरी तरह और युवक उभर कर आएंगे.”

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