अन्तर्राष्ट्रीय
बाढ़ की तबाही से अब तक उबर नहीं सके हैं मिजोरम में लोग
लुंगलेई (मिजोरम), 16 अगस्त (आईएएनएस)| मिजोरम के लुंगलेई जिले के त्लाबंग क्षेत्र में दो महीने पहले भीषण वर्षा के कारण आई अचानक बाढ़ से मिले जख्म अभी भरे नहीं हैं। स्थानीय समुदाय हालात को सामान्य बनाने के लिए जद्दोजहद कर रहे हैं।
‘मोरा’ तूफान ने इसी साल 13 से 15 जून के बीच बांग्लादेश और पूर्वोत्तर भारत के कई हिस्सों में अपना असर दिखाया था। कई लोगों की मौत हुई थी और बड़ी संख्या में मकान ध्वस्त हो गए थे। मिजोरम पर इसकी मार सबसे बुरी पड़ी थी। इसमें भी विशेषरूप से मिजोरम-बांग्लादेश सीमा पर स्थित त्लाबंग परगना भारी बारिश के बाद अचानक आई इस बाढ़ से सर्वाधिक प्रभावित हुआ था।
अब दो महीने बाद मुख्य शहर में हालात पहले से थोड़ा बेहतर हुए हैं लेकिन नदी के किनारे स्थित गांवों में तबाही का मंजर अभी भी देखा जा सकता है।
डेढ़ हजार की आबादी वाले तबालाबाग गांव में तबाही बहुत अधिक हुई और यहां राहत बहुत कम मिली। उन तीन दिनों में अधिकांश घर पानी में डूब गए थे, कुछ बाढ़ को झेलने में सफल रहे लेकिन कई इसमें बह गए।
इनमें से मजदूर स्वाना चकमा जैसे कई लोग हैं जो अपना घर फिर से नहीं बना सके हैं और रिश्तेदार के घर रह रहे हैं।
चकमा ने गांव में आए आईएएनएस संवाददाता से कहा, हमारे परिवार में तीन लोग हैं। जब रात में पानी बढ़ना शुरू हुआ तो हमें यह अहसास नहीं था कि अगले दिन तक यह पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लेगा। हम किसी तरह भागकर अपनी जान बचाने में कामयाब रहे लेकिन हमारा घर बाढ़ में बह गया। मैं काम पर नहीं लौट पा रहा हूं।
यही हाल नदी के किनारे स्थित एक अन्य गांव सेरहुआं का है। यह पूरा गांव बाढ़ में डूब गया। स्थानीय लोगों ने ऊपरी स्थान पर अस्थायी शिविरों में शरण ली। बाढ़ का पानी घटने पर लोगों ने पाया कि अधिकांश घर सुरक्षित हैं लेकिन कुछ ध्वस्त हो गए हैं।
क्षेत्र की समस्या यह है कि अधिकांश घर नदी के किनारे स्थित हैं और थोड़ा भी पानी बढ़ने से इन पर संकट आ जाता है। ऐसे में यह सवाल है कि ये लोग नदी के इतना नजदीक क्यों रहते हैं?
यंग चकमा एसोसिएशन (वीईसीए) के अध्यक्ष जुदु रंजन चकमा ने इसकी वजह बताते हुए कहा, क्योंकि यहां भूमि बहुत उपजाऊ है और नदी परिवहन का एकमात्र साधन है। लोगों को डर रहता है कि अगर वे ऊपरी इलाके में रहेंगे तो सीमापार के लोग आकर उनकी फसलें चुरा लेंगे। कोई आपात स्थिति हो तो कोई सड़क भी नहीं है जिस पर वाहन चल सके। नदी ही सब कुछ है।
वाईसीए और यंग मिजो एसोसिएशन ने सीमा सुरक्षा बल कर्मियों के साथ मिलकर सबसे पहले लोगों को बचाकर सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाया था। जमीनी स्तर पर काम करने वाले ईसाई एनजीओ वर्ल्ड विजन इंडिया को पंद्रह दिन लगे थे प्रायोजक ढूंढने में और पीड़ितों तक खाद्य पदार्थ एवं अन्य सामान पहुंचाने में। एनजीओ ने अपनी तरफ से कोशिश की लेकिन पचास साल में सबसे भीषण माने जाने वाली बाढ़ में उसकी मदद पर्याप्त साबित नहीं हुई है।
लेकिन, वर्ल्ड विजन इंडिया के निदेशक-आपादा प्रबंधन कुणाल कुमार शाह ने आईएएनएस से बातचीत में उम्मीद जताई कि स्थानीय समुदाय और प्रशासन की मदद से लोगों को फिर से उनके पैरों पर खड़ा करने में सफलता मिलेगी।
लोगों को उम्मीद है कि पहली अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा समूचे पूर्वोत्तर में बाढ़ के प्रकोप से निपटने के लिए घोषित दो हजार करोड़ रुपये के पैकेज से उन्हें जरूर मदद मिलेगी। इस पैकेज और जून में घोषित तीन सौ करोड़ रुपये के पैकेज का लाभ अभी प्रभावित लोगों तक पहुंचना बाकी है।
अन्तर्राष्ट्रीय
हिजबुल्लाह ने इजरायल पर दागे लगभग 250 रॉकेट, 7 लोग घायल
बेरूत। हिजबुल्लाह ने एक बार फिर इजरायल पर बड़ा हमला किया है। रविवार को हिजबुल्लाह ने इजरायल पर लगभग 250 रॉकेट और अन्य हथियारों से हमला किया। इस हमले में कम से कम सात लोग घायल हो गए है। हिजबुल्लाह का यह हमला पिछले कई महीनों में किया गया सबसे भीषण हमला है, क्योंकि कुछ रॉकेट इजरायल के मध्य में स्थित तेल अवीव इलाके तक पहुंच गए।
इजराइल की ‘मैगन डेविड एडोम’ बचाव सेवा ने कहा कि उसने हिजबुल्लाह द्वारा इजराइल पर दागे गए हमलों में घायल हुए सात लोगों का इलाज किया. युद्ध विराम के लिए वार्ताकारों की ओर से दबाव बनाए जाने के बीच हिजबुल्लाह ने ये हमले बेरूत में घातक इजराइली हमले के जवाब में किये
सेना का अभियान चरमपंथियों के खिलाफ
इसी बीच लेबनान की सेना ने कहा कि इजराइल के हमले में रविवार को लेबनान के एक सैनिक की मौत हो गई जबकि 18 अन्य घायल हो गए. इस घटना पर इजराइल की सेना ने चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि यह हमला हिजबुल्लाह के विरुद्ध युद्ध क्षेत्र में किया गया और सेना का अभियान केवल चरमपंथियों के खिलाफ हैं.
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