ऑफ़बीट
400 साल श्राप करता रहा राजघराने का पीछा, अब जाकर मिली मुक्ति
बेंगलुरु/मैसूर। मैसूर राजघराना 400 साल से एक श्राप से ग्रस्त था जिससे अब जाकर उनको मुक्ति मिली है। इस राजवंश पर कथित रूप से शाप था कि राजगद्दी के उत्तराधिकारी या राजा के घर कभी बेटे का जन्म नहीं होगा।
मैसूर के वाडियार राजवंश को 400 साल पुराने एक कथित ‘शाप’ से मुक्ति मिल गई है। बुधवार रात करीब 9:30 बजे शाही परिवार के उत्तराधिकारी यदुवीर श्रीकंठ दत्ता चामराजा की पत्नी त्रिशिका ने एक बेटे को जन्म दिया। दरअसल वाडियार राजवंश में 400 साल बाद पहली बार किसी लडक़े यानी राजवंश के उत्तराधिकारी का प्राकृतिक तरीके से जन्म हुआ है।
डॉक्टरों के मुताबिक, बच्चे की सेहत अच्छी है। 400 साल बाद आई इस खुशखबरी से राज परिवार में उत्सव का माहौल है। मालूम हो कि मैसूर के राजा यदुवीर की शादी जून में डुंगरपुर की राजकुमारी त्रिशिका से हुई थी।
वंश के वर्तमान उत्तराधिकारी यदुवीर भी गोद ली हुई संतान हैं। यदुवीर को मैसूर के दिवंगत राजा श्रीकांतदत्त वॉडेयार एवं उनकी पत्नी प्रमोददेवी वॉडेयर ने कुछ साल पूर्व गोद लिया था। बता दें कि 400 सालों से इस राजवंश में अगला राजा दत्तक पुत्र ही बनता रहा है।
क्या था श्राप
मान्यता है कि 1612 में दक्षिण में सबसे शक्तिशाली माने जाने वाले विजयनगर साम्राज्य के पतन के बाद वाडियार राजा के आदेश पर यहां की धनसंपत्ति लूट ली गई। हार के बाद विजयनगर की तात्कालीन रानी अलमेलम्मा एकांतवास में थीं, लेकिन उनके पास काफी हीरे-जवाहरात और गहने थे।
इसे लेने वाडियार ने महारानी के पास दूत भेजा, लेकिन उन्होंने गहने देने से इनकार कर दिया तो शाही फौज ने जबरदस्ती गहने कब्जा लिए। इससे नाराज होकर महारानी अलमेलम्मा ने श्राप दिया कि वाडियार राजवंश के राजा-रानी की गोद हमेशा सूनी रहेगी। श्राप देने के बाद अलमेलम्मा ने कावेरी नदी में छलांग लगाकर आत्महत्या कर ली।
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बिहार का ‘उसैन बोल्ट’, 100 किलोमीटर तक लगातार दौड़ने वाला यह लड़का कौन
चंपारण। बिहार का टार्जन आजकल खूब फेमस हो रहा है. बिहार के पश्चिम चंपारण के रहने वाले राजा यादव को लोगों ने बिहार टार्जन कहना शुरू कर दिया है. कारण है उनका लुक और बॉडी. 30 मार्च 2003 को बिहार के बगहा प्रखंड के पाकड़ गांव में जन्मे राज़ा यादव देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते हैं.
लिहाजा दिन-रात एकक़र फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ रेसलिंग में जुटे हैं. राज़ा को कुश्ती विरासत में मिली है. दादा जगन्नाथ यादव पहलवान और पिता लालबाबू यादव से प्रेरित होकर राज़ा यादव ने सेना में भर्ती होने की कोशिश की. सफलता नहीं मिली तो अब इलाके के युवाओं के लिए फिटनेस आइकॉन बन गए हैं.
महज 22 साल की उम्र में राजा यादव ‘उसैन बोल्ट’ बन गए. संसाधनों की कमी राजा की राह में रोड़ा बन रहा है. राजा ने एनडीटीवी से कहा कि अगर उन्हें मौका और उचित प्रशिक्षण मिले तो वे पहलवानी में देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. राजा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए दिन रात मैदान में पसीना बहा रहे हैं. साथ ही अन्य युवाओं को भी पहलवानी के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
’10 साल से मेहनत कर रहा हूं. सरकार ध्यान दे’
राजा यादव ने कहा, “मेरा जो टारगेट है ओलंपिक में 100 मीटर का और मेरी जो काबिलियत है उसे परखा जाए. इसके लिए मैं 10 सालों से मेहनत करते आ रहा हूं तो सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मेरे जैसे सैकड़ों लड़के गांव में पड़े हुए हैं. उन लोगों के लिए भी मांग रहा हूं कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सुविधा मिले तो मेरी तरह और युवक उभर कर आएंगे.”
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