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बिजनेस

पाकिस्तान से चीनी आयात के आसार : इस्मा

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नई दिल्ली, 23 जनवरी (आईएएनएस)| चीनी मिलों ने सरकार से चीनी पर आयात कर बढ़ाकर 100 फीसदी करने की मांग की है। मिलों को आशंका है कि देश में चीनी के भाव में गिरावट के बाद पाकिस्तान के रास्ते चीनी का आयात हो सकता है। चीनी उद्योग का शीर्ष संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोएिशन (इस्मा) का कहना है कि पाकिस्तान की ओर से चीनी के निर्यात पर सब्सिडी की घोषणा के बाद आयात की संभावना बढ़ गई है।

देश में इस साल चीनी का उत्पादन खपत के मुकाबले ज्यादा होने के कारण कीमतों में भारी गिरावट आई है, जिसके बाद चीनी उद्योग संगठनों के साथ-साथ व्यापारी भी मानने लगे हैं कि चीनी के कारोबार को संभालने के लिए सरकार को उपाय करना चाहिए। लिहाजा, चीनी मिलों के संगठनों ने खाद्य मंत्रालय से चीनी पर आयात शुल्क मौजूदा 50 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी करने एवं निर्यात शुल्क को 20 फीसदी से घटाकर शून्य करने की मांग की है।

इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने आईएएनएस से बातचीत में कहा, देश में चीनी की कोई कमी तो है नहीं, फिर बाहर से चीनी मंगाने की जरूरत क्या है? उनके मुताबिक, सरकार को चीनी पर आयात कर 100 फीसदी कर देना चाहिए, ताकि आगे फिर पाकिस्तान के रास्ते चीनी देश में आने से घरेलू बाजार पर चीनी के भाव में आगे और गिरावट न हो।

वर्मा ने बताया, पाकिस्तान की ओर से चीनी निर्यात पर सब्सिडी की घोषणा के बाद पाकिस्तान से चीनी देश में आ सकती है, जिससे घरेलू उद्योग पर असर पड़ेगा। सिंध प्रांत की सरकार की ओर से चीनी पर सब्सिडी देने की बात हो रही है। हालांकि इसकी अधिघोषणा नहीं हुई है।

इस्मा महानिदेशक के मुताबिक, पाकिस्तान की ओर से चीनी निर्यात पर सब्सिडी दिए जाने से भाव को लेकर भारत में आयात आसान हो जाएगा।

अविनाश वर्मा ने कहा, पिछले साल मुकाबले इस साल चीनी की कीमतों में भारी गिरावट आने से चीनी मिलों को घाटा हो रहा है, जिससे आगे किसानों को समय पर गो का दाम चुकाना मिलों के लिए मुश्किल हो जाएगा।

उधर, बांबे शुगर मर्चेट एसोसिएशन के प्रेसिडेंट अशोक जैन ने भी कहा कि सरकार को चीनी के भाव में आई गिरावट को संभालने के लिए कदम उठाने चाहिए। उन्होंने कहा कि सरकार को कुछ बफर स्टॉक बनाना चाहिए। इससे बाजार को सपोर्ट मिलेगा। लेकिन आयात कर बढ़ाने के मुद्दे पर उनका कहना था कि इसका कोई मतलब नहीं है क्योंकि चीनी का आयात वैसे भी नहीं हो रहा है।

अशोक जैन ने कहा, आयात कर बढ़ाने से बाजार को सपोर्ट मिलेगा, इसकी कोई संभावना नहीं है। हां, सरकारी खरीद पर अगर बफर स्टॉक किया जाए तो उससे बाजार को सपोर्ट जरू र मिलेगा। उन्होंने बताया कि कुछ समय पहले पाकिस्तान में चीनी की कीमतें भारत से ज्यादा थीं, लेकिन इधर कुछ कमी आई है।

अविनाश वर्मा ने बताया कि पूरे देश में चीनी के उत्पादन पर औसत लागत 3500-3600 रुपये प्रति क्विं टल आती है जबकि इस समय औसत एक्स मिल रेट 3100-3200 रुपये प्रति क्विं टल है। इस तरह चीनी मिलों को लागत भी नहीं निकल रही है। पिछले साल की अपेक्षा इस साल चीनी की मिल डिलीवरी दरों में तकरीबन 500-600 रुपये प्रति क्विं टल की कमी आई है।

सोमवार को मुंबई में मीडियम क्वोलिटी की चीनी की कीमत 3152-3400 रुपये प्रति क्विंटल थी जबकि नाका डिलीवरी मिल रेट 3080-3350 रुपये प्रति क्विंटल था। वहीं, उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में मीडियम क्वालिटी की चीनी का एक्स मिल रेट 3150-3170 रुपये प्रति क्विं टल था।

इस्मा ने पिछले सप्ताह चालू गन्ना पेराई सत्र 2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में चीनी उत्पादन का अनुमान 10 लाख टन बढ़ाकर 261 लाख टन कर दिया है। भारत में पिछले साल 2016-17 में चीनी का उत्पादन 203 लाख टन रहा था जबकि उससे पिछले साल की बचा हुआ स्टॉक 77 लाख टन था। इससे पहले वर्ष 2015-16 में देश में चीनी का उत्पादन 280 लाख टन से ज्यादा हुआ था और पिछले साल का स्टॉक 100 लाख टन से ज्यादा रहने की वजह से देश में चीनी का आधिक्य भंडार (सरप्लस स्टॉक) 130 लाख टन के करीब होने के कारण सरकार ने चीनी मिलों के लिए निर्यात का कोटा तय करते हुए 40 लाख चीनी का निर्यात अनिवार्य कर दिया था। मगर निर्यात महज 16 लाख टन के आसपास हो पाया था।

देश के पश्चिमी और दक्षिण भाग में सूखे की वहज से पिछले साल महाराष्ट्र और कर्नाटक में चीनी का उत्पादन कम हुआ था। लिहाजा, देश में चीनी उपलब्धता पर्याप्त रखने के मकसद से सरकार ने निशुल्क यानी शून्य आयात शुल्क पर पांच लाख टन कच्ची चीनी के आयात को अनुमति दी। इसके बाद त्योहारी सीजन में भी सरकार ने पिछले साल तीन लाख टन चीनी 25 फीसदी आयात शुल्क पर मंगाने की अनुमति दी थी।

गौरतलब है कि विदेशी बाजार में चीनी की कीमतें कम होने से भारत इस समय चीनी का निर्यात नहीं कर पा रहा है। हालांकि सरकार और चीनी मिलों के संगठनों की ओर से बांग्लादेश और श्रीलंका को चीनी निर्यात की संभावनाओं पर विचार जा रहा है।

इस्मा महानिदेशक ने कहा कि ये दोनों देश भारत से 30 लाख टन तक चीनी का आयात कर सकता है। मालूम हो कि भारत का इनके साथ द्विपक्षीय मुफ्त व्यापार समझौता है।

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जियो ने जोड़े सबसे अधिक ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’- ट्राई

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नई दिल्ली| भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) के नवीनतम आंकड़ों के मुताबिक, रिलायंस जियो ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में सबसे आगे है। सितंबर महीने में जियो ने करीब 17 लाख ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़े। समान अवधि में भारती एयरटेल ने 13 लाख तो वोडाफोन आइडिया (वीआई) ने 31 लाख के करीब ग्राहक गंवा दिए। ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ जोड़ने के मामले में जियो लगातार दूसरे महीने नंबर वन बना हुआ है। एयरटेल और वोडाआइडिया के ‘एक्टिव सब्सक्राइबर’ नंबर गिरने के कारण पूरे उद्योग में सक्रिय ग्राहकों की संख्या में गिरावट देखी गई, सितंबर माह में यह 15 लाख घटकर 106 करोड़ के करीब आ गई।

बताते चलें कि टेलीकॉम कंपनियों का परफॉर्मेंस उनके एक्टिव ग्राहकों की संख्या पर निर्भर करता है। क्योंकि एक्टिव ग्राहक ही कंपनियों के लिए राजस्व हासिल करने का सबसे महत्वपूर्ण जरिया है। हालांकि सितंबर माह में पूरी इंडस्ट्री को ही झटका लगा। जियो, एयरटेल और वीआई से करीब 1 करोड़ ग्राहक छिटक गए। मतलब 1 करोड़ के आसपास सिम बंद हो गए। ऐसा माना जा रहा है कि टैरिफ बढ़ने के बाद, उन ग्राहकों ने अपने नंबर बंद कर दिए, जिन्हें दो सिम की जरूरत नहीं थी।

बीएसएनएल की बाजार हिस्सेदारी में भी मामूली वृद्धि देखी गई। इस सरकारी कंपनी ने सितंबर में करीब 15 लाख वायरलेस डेटा ब्रॉडबैंड ग्राहक जोड़े, जो जुलाई और अगस्त के 56 लाख के औसत से काफी कम है। इसके अलावा, बीएसएनएल ने छह सर्किलों में ग्राहक खो दिए, जो हाल ही की वृद्धि के बाद मंदी के संकेत हैं।

ट्राई के आंकड़े बताते हैं कि वायरलाइन ब्रॉडबैंड यानी फाइबर व अन्य वायरलाइन से जुड़े ग्राहकों की कुल संख्या 4 करोड़ 36 लाख पार कर गई है। सितंबर माह के दौरान इसमें 7 लाख 90 हजार नए ग्राहकों का इजाफा हुआ। सबसे अधिक ग्राहक रिलायंस जियो ने जोड़े। जियो ने सितंबर में 6 लाख 34 हजार ग्राहकों को अपने नेटवर्क से जोड़ा तो वहीं एयरटेल मात्र 98 हजार ग्राहक ही जोड़ पाया। इसके बाद जियो और एयरटेल की बाजार हिस्सेदारी 32.5% और 19.4% हो गई। समान अवधि में बीएसएनएल ने 52 हजार वायरलाइन ब्राडबैंड ग्राहक खो दिए।

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