खेल-कूद
अपनी मुक्केबाज बेटी का सपना सच करने में जुटा हरियाणा का रुरकी गांव
नई दिल्ली, 7 फरवरी (आईएएनएस)| हरियाणा के रुरकी गांव की मुक्केबाज मीनाक्षी अपने गांव और सरपंच की मदद से अपने सपनों को उड़ान दे रही हैं।
मीनाक्षी ने खेलो इंडिया स्कूल गेम्स के पहले संस्करण में 50 किलोग्राम भारवर्ग के सेमीफाइनल में अंतर्राष्ट्रीय पदकधारी राजस्थान की अर्शी खानुम को मातकर अपने लिए कम से कम रजत पदक पक्का कर लिया है। 2017 में नेशनल सब-जूनियर मुक्केबाजी चैम्पियनशिप की सर्वश्रेष्ठ मुक्केबाज के लिए अंतर्राष्ट्रीय पदकधारी मुक्केबाज को मात देना बड़ी बात है। यह भावना इसलिए और गहरी हो गई क्योंकि यह जूनियर नेशनल्स के फाइनल का रिपीट था। अब मीनाक्षी का लक्ष्य स्वर्ण जीतकर अपने गांव को बेहतरीन तोहफा देने का है।
जूनियर नेशंस कप टूर्नामेंट और जनवरी में सर्बिया में हुए यूथ महिला टूर्नामेंट में कांस्य जीतने वाली खिलाड़ी के बारे में मीनाक्षी ने कहा, इस मैच से पहले, अर्शी ने कहा था कि वह आसानी से जीत जाएगी क्योंकि वह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीत चुकी है। मैंने उन्हें गलत साबित कर दिया। हम नेशनल कैम्प में एक साथ अभ्यास करते हैं। वह मेरी अच्छी दोस्त है, लेकिन अति आत्मविश्वास अच्छा नहीं होता।
मीनाक्षी टूर्नामेंट में इसलिए हिस्सा नहीं ले पाईं थी क्योंकि उनका जन्म 2001 में हुआ था, लेकिन उनकी उम्मीदें काफी ऊंची थीं। उन्होंने कहा, मैं यह नहीं कहूंगी की मैं ओलम्पिक पदक जीतना चाहती हूं। हमें एक बार में एक चीज के बारे में सोचना चाहिए। मेरा अभी का लक्ष्य अप्रैल में होने वाली एशियन यूथ चैम्पियनशिप और अगस्त में होने वाली वर्ल्ड यूथ चैम्पियनशिप में अच्छा करना है।
बीजिंग ओलंपिक में कांस्य पदक जीतने वाले हरियाणा के ही मुक्केबाज विजेंदर सिंह को अपना आदर्श मानने वाली मीनाक्षी ने कहा, मैंने मुक्केबाजी को इसलिए चुना क्योंकि मैं स्वतंत्र बनना चाहती हूं। अगर मैं ऐसा सोचूंगी तो ही पदक जीत पाऊंगी। मैं उस बात पर ध्यान देना चाहती हैं, जिसमें मैं सर्वश्रेष्ठ हूं। बाकी सब बाद में।
गांव में मुक्केबाजी को लाने और रुरकी की लड़कियों को खेल को अपनाने के लिए मीनाक्षी ने सरपंच कुलदीप हुड्डा को इसका श्रेय दिया। चार भाई-बहनों में सबसे छोटी मीनाक्षी ने अपने परिवार और गांव की उम्मीदों का बोझ बखूबी उठाया है। उनके भाई-बहन घर की आमदनी में मदद करते हैं।
मीनाक्षी ने कहा, मेरे पिता (श्री कृष्ण) मुझे अपना बेटा मानते हैं। उन्होंने मुझे कभी मेरे भाईयों से अलग नहीं समझा। यह बड़ी बात है। वह मुझे अभ्यास के लिए ले जाते थे। हर किसी ने मेरी जिंदगी आसान करने की कोशिश की है ताकि मैं अभ्यास पर ध्यान दे सकूं।
उन्होंने कहा, हमारे सरपंच गांव में नई सोच लेकर आए। उन्होंने हमें मुक्केबाजी से रुबरू कराया। हमारे यहां लड़के और लड़कियां दोनों बराबर हैं। रुरकी आगे बढ़ रहा है।
खेल-कूद
IPL Auction: 13 साल के वैभव सूर्यवंशी ने रचा इतिहास, बन गए सबसे युवा करोड़पति
पटना। बिहार के वैभव सूर्यवंशी ने महज 13 साल की उम्र में इतिहास रच दिया है। वैभव को आईपीएल मेगा नीलामी में राजस्थान रॉयल्स ने 1.1 करोड़ रुपये में खरीद लिया है। 13 साल 243 दिन की उम्र में वैभव आईपीएल के इतिहास में सबसे कम उम्र के खिलाड़ी बन गए। रॉयल्स और दिल्ली कैपिटल्स उन्हें अपने साथ जोड़ने में दिलचस्पी दिखाई। राजस्थान ने 1.1 करोड़ रुपये में अपने साथ जोड़ा।
वैभव ने हाल ही में सबका ध्यान अपनी ओर खींचा जब वह अंतरराष्ट्रीय शतक बनाने वाले सबसे युवा बल्लेबाज (13 वर्ष, 288 दिन) बने। उन्होंने चेन्नई में ऑस्ट्रेलिया अंडर-19 के खिलाफ भारत अंडर-19 के लिए खेले गए यूथ टेस्ट में 62 गेंदों पर 104 रन बनाए। बाएं हाथ के इस खिलाड़ी ने 58 गेंदों पर शतक बनाया। यह किसी भारतीय का सबसे तेज यूथ टेस्ट शतक और दुनिया में दूसरा सबसे तेज शतक था।
वैभव एक बेहतरीन खिलाड़ी है और उम्मीद जताई जा रही है कि 2025 आईपीएल में वह जबरदस्त प्रदर्शन करेंगे। वैभव की बात करें तो वह बिहार के समस्तीपुर जिले के रहने वाले हैं। महज 13 साल के बेटे के करोड़पति बनने के बाद उनके पिता भावुक नजर आ रहे हैं।
एक मीडिया चैनल को दिए गए इंटरव्यू में वैभव के पिता संजीव सूर्यवंशी ने कहा कि अपने बेटे के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने बहुत कुछ किया। अपनी खेती तक की जमीन बेच दी ताकि वैभव क्रिकेट खेल सके और अपना करियर बना सके। वैभव के बारे में बात करते हुए पिता ने बताया कि उसे हमेशा से क्रिकेट में रूचि थी और वह महज 5 साल का था, तब से क्रिकेट खेल रहा है। वैभव को उनके पिता ने ही घर में नेट प्रैक्टिस करवाई, जिसके बागद समस्तीपुर क्रिकेट एकेडमी भेजा। उनके पिता ने बेटे की कामयाबी के लिए बिहार क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष राकेश तिवारी का भी शुक्रिया किया।
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