ऑफ़बीट
कहानी उस करोड़पति आंवला किसान की, जिसके 1200 के आंवले आज 60 लाख के हैं
जयपुर। आपको अपनी क्षमता साबित करने के लिए किसी डिग्री की ज़रूरत नहीं है। इंसान को अपने विचारों का प्रयोग करने के लिए सिर्फ हिम्मत और साहस चाहिए होता है। यहां हम अमर सिंह के बारे में बात कर रहे हैं, जो ग्रामीण राजस्थान के सम्मन में स्थित अमर मेगा फूड प्राइवेट लिमिटेड के मालिक हैं। उनकी आंवला मुरब्बा कंपनी 26 लाख रुपये का कारोबार करती है।
अमर अपने मुंह में चांदी के चम्मच के साथ पैदा नहीं हए थे। अमर मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए थे। आर्थिक मुश्किलों के चलते अमर स्कूल से निकलने के बाद उच्च शिक्षा हासिल नहीं कर पाए। वो अपने करियर को लेकर चिंतित रहते थे और अपने अतीत में अजीब नौकरियां करते थे। कभी वो रिक्शा चलाते तो कभी फोटो शॉप चलाते। साल था 1995, और जब अमर को आंवला के स्वास्थ्य लाभों के बारे में पता चला। तुरंत उनका दिमाग ठनगा और उनको आंवले के बिज़नेस का आईडिया आया और तब से उन्होंने अपना जीवन अमला व्यवसाय को समर्पित कर दिया। उन्होंने स्थानीय बाजार में आमला की बिक्री का भी ख्याल रखा। उन्होंने अपने शुरुआत में छोटे व्यवसाय से प्रारंभिक लाभ अर्जित तो किया लेकिन स्थानीय व्यापारियों के चलते उन्हें काफी परेशानी भी हुई।
जल्द ही अमर ने अपना मन बना लिया और अपनी खुद की खाद्य प्रसंस्करण इकाई स्थापित करने का फैसला किया। लेकिन इस बार वह अकेले नहीं थे और उनके साथ था लुपिन ह्यूमन वेलफेयर रिसर्च एंड फाउंडेशन (एलएचडब्ल्यूआरएफ) के नाम से जाना जाने वाला एक एनजीओ। इसके बाद अमर सफलता की ऊंचाई पर आंवला आधारित खाद्य उत्पादों की विभिन्न किस्मों के साथ आए।
अमर बताते हैं कि, “तैयार उत्पादों को प्रसंस्करण, पैकेजिंग और परिवहन के लिए खेती से सबकुछ यहां से किया जाता है। मुझे अब व्यापारियों के पास नहीं जाना पड़ता बल्कि वो यहाँ आते हैं।”
अमर ने ‘अमर सेल्फ हेल्प ग्रुप’ की शुरुआत की थी, जिसे अब ‘अमर मेगा फूड प्राइवेट लिमिटेड’ के नाम से जाना जाता है। अमर ने 1,200 रुपये के निवेश के साथ अपना कारोबार शुरू किया था, जिसमें से उन्होंने 60 आंवला के पौधे लगाए और आज उनका साल का टर्नओवर 60 लाख से अधिक।
अमर अपनी कंपनी को बहुत सफलतापूर्वक चला रहे है। आज स्थानीय बाजार में उनका एक सम्मानजनक नाम है। अपनी टीम के बारे में बात करते हुए अमर ने कहा कि, “मेरी कंपनी में लगभग दो दर्जन से अधिक लोग शामिल हैं जिनमें से आधे कर्मचारी महिलाएं हैं।”
ऑफ़बीट
बिहार का ‘उसैन बोल्ट’, 100 किलोमीटर तक लगातार दौड़ने वाला यह लड़का कौन
चंपारण। बिहार का टार्जन आजकल खूब फेमस हो रहा है. बिहार के पश्चिम चंपारण के रहने वाले राजा यादव को लोगों ने बिहार टार्जन कहना शुरू कर दिया है. कारण है उनका लुक और बॉडी. 30 मार्च 2003 को बिहार के बगहा प्रखंड के पाकड़ गांव में जन्मे राज़ा यादव देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते हैं.
लिहाजा दिन-रात एकक़र फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ रेसलिंग में जुटे हैं. राज़ा को कुश्ती विरासत में मिली है. दादा जगन्नाथ यादव पहलवान और पिता लालबाबू यादव से प्रेरित होकर राज़ा यादव ने सेना में भर्ती होने की कोशिश की. सफलता नहीं मिली तो अब इलाके के युवाओं के लिए फिटनेस आइकॉन बन गए हैं.
महज 22 साल की उम्र में राजा यादव ‘उसैन बोल्ट’ बन गए. संसाधनों की कमी राजा की राह में रोड़ा बन रहा है. राजा ने एनडीटीवी से कहा कि अगर उन्हें मौका और उचित प्रशिक्षण मिले तो वे पहलवानी में देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. राजा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए दिन रात मैदान में पसीना बहा रहे हैं. साथ ही अन्य युवाओं को भी पहलवानी के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
’10 साल से मेहनत कर रहा हूं. सरकार ध्यान दे’
राजा यादव ने कहा, “मेरा जो टारगेट है ओलंपिक में 100 मीटर का और मेरी जो काबिलियत है उसे परखा जाए. इसके लिए मैं 10 सालों से मेहनत करते आ रहा हूं तो सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मेरे जैसे सैकड़ों लड़के गांव में पड़े हुए हैं. उन लोगों के लिए भी मांग रहा हूं कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सुविधा मिले तो मेरी तरह और युवक उभर कर आएंगे.”
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