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देश में मॉब लिंचिंग की 52 फीसदी घटनाएं अफवाहों पर
नई दिल्ली, 3 जून (आईएएनएस)| दिल्ली का 16 वर्षीय जुनैद खान, राजस्थान के 55 वर्षीय पहलू खान, केरल के अत्ताप्पादि का रहने वाला 30 वर्षीय आदिवासी मधु, बंगाल के 19 वर्षीय अनवर हुसैन और हाजीफुल शेख यह चंद नाम हैं, जो देश के अलग-अलग हिस्सों में भीड़नुमा हत्यारों (मॉब लिंचिंग) के शिकार हुए। देश में 2010 से लेकर 2017 के बीच मॉब लिंचिंग की 63 घटनाएं हुई, जिसमें 28 लोगों की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई। आपको जानकर हैरत होगी कि ऐसी घटनाओं में से 52 फीसदी अफवाहों पर आधारित थीं।
एक सर्वे के मुताबिक, मई 2014 में नरेंद्र मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से कुल घटनाओं में से 97 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। मॉब लिंचिंग की 63 घटनाओं में से 32 घटनाएं गायों से संबंधित थी, और अधिकतर मामलों में राज्य के अंदर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सत्ता में थी।
इन दिल दहला देने वाली 63 घटनाओं में मरने वाले 28 लोगों में से 86 फीसदी यानि की 24 मुस्लिम समुदाय के लोग शामिल थे। साथ ही इन घटनाओं में कुल 124 लोग जख्मी हुए। सात साल की छोटी सी अवधि में मॉब लिंचिंग की घटनाओं में वृद्धि लोगों की बदलती मानसिकता पर सवाल खड़े करती है।
तेजी से बदलती लोगों की मानसिकता के बारे में दिल्ली विश्वविद्यालय में मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ. नवीन कुमार ने आईएएनएस को दिए साक्षात्कार में कहा, लोगों की मानसिकता बदलने के पीछे की वजह समाज में फैली निराशा, बढ़ती बेरोजगारी, उत्तरदायित्व व जिम्मेदारी का आभाव,लोगों को साथ लेकर चलनी की भावना, हम-तुम, श्रेणियों, धर्मो, समुदाय में विभाजित होते लोग हैं।
उन्होंने कहा, मॉब लिंचिंग जैसी घटनाओं में हमला करने वाले लोगों को यह लगता है कि अगर हम किसी शख्स पर हमला करेंगे तो लोगों को पता नहीं चलेगा कि घटना को वास्तविक रूप से किसने अंजाम दिया। इन घटनाओं में व्यक्तिगत पहचान और जिम्मेदारी का आभाव रहता है।
डॉ. नवीन कुमार ने उदाहरण देते हुए कहा, 100 से लेकर 500 लोगों की भीड़ एक व्यक्ति या समूह पर पथराव कर सकती है लेकिन अगर उसकी संख्या पांच से 10 होगी तो वह पथराव नहीं कर पाएंगे।
उन्होंने कहा, समाज में लोग पूर्वोग्रह ग्रस्ति हो चुके हैं। आप गांव, देहातों में जाकर हिंदू समुदाय के लोगों से पूछे कि मुस्लमान कैसे होते हैं तो वह उन्हें गलत कहेंगे और मुस्लिम समुदाय के लोगों से हिंदुओं के बारे में पूछे तो वह उन्हें गलत कहेंगे। भारत में हिंदु-मुस्लमान भाई चारे के बारे में कही जाने वाली कहावत गंगा-जमुना संस्कृति केवल किताबों और अखबारों के पन्नों तक ही सिमटकर रह गई है।
मॉब लिंचिंग की घटनाओं में अफवाहों के असर पर मनोविज्ञान के प्रोफेसर डॉ. नवीन कुमार ने बताया, अफवाहों पर लोग जल्दी एकजुट हो जाते हैं। लोगों को पता चलेगा कि मंदिर या मस्जिद में किसी ने कुछ चीज फेंक दी तो पर्याप्त संख्या में लोग जुटना शुरू हो जाते हैं, ऐसा वहीं होता है, जहां दिमागी अविकसिता होती है। दिमागी अविकसिता वहां होती है जहां, तार्किकता की कमी होती है।
उन्होंने बताया, अगर हम घटना पर सवाल पूछेंगे तो तार्किकता को बल मिलेगा और अंध भक्ति मामलों में लोग पहले ही एक पक्ष के प्रति झुके हुए होते हैं, जिससे इन अफवाहों को बल मिलता है। अलीगढ़ विश्व विद्यालय मामले में यही हुआ। इस तरह के मामलों में कहीं न कहीं राजनीतिक कोण होता है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। ऐसी घटनाओं को आप शुरू तो कर सकते हैं लेकिन इस पर काबू पाना बहुत मुश्किल हो जाता है। कई संगठन इस तरह की साजिश रचते हैं लेकिन बाद में यह घटनाएं काबू से बाहर हो जाती हैं।
मॉब लिंचिंग की घटनाओं में सोशल मीडिया के प्रभाव पर उन्होंने कहा, इस तरह की घटनाओं में सोशल मीडिया का 90 फीसदी प्रभाव है। सोशल मीडिया बिल्कुल बकवास चीज है, इस पर यही सब काम होते हैं। सोशल मीडिया पर कई लोग दंगे तो कोई साजिश रच रहे हैं। सोशल मीडिया पर दिमागी कार्य करने के बजाए लोग भड़काने में लगे हैं।
उन्होंने कहा, सोशल मीडिया में गति है लेकिन मतलब नहीं है। समस्या को लेकर ट्वीट किया और उस पर काम हुआ अच्छी चीज है। सोशल मीडिया पर जहां राजनीतिक सोच होगी वहां, तार्किकता की कमी होगी और तार्किकता की कमी होगी तो राम रहीम , आसाराम जैसे लोगों के पांच लाख से ज्यादा समर्थक होंगे ही। यह सोशल मीडिया का ही दौर है, जहां जीरो, हीरो बन गया और कैसे बना यह पता नहीं चला।
डॉ. नवीन कुमार ने कहा, जो व्यक्ति सोशल मीडिया पर ज्यादा सक्रिय है, वह ज्यादा अवसाद, अकेलेपन में है, उसे कुछ काम नहीं है लेकिन वह सोशल मीडिया पर सक्रिय है। इसलिए लोग इसे एक उपकरण के रूप में प्रयोग करते हैं, जैसे किसी भी खबर को विभिन्न जगहों पर फैला दो। इसकी सबसे बड़ी खराबी है कि इस पर प्रसारित होने वाली खबरों को प्रमाणिकता की जरूरत नहीं होती और लोग इसकी पुष्टि किए बिना उसपर उग्र हो जाते हैं और यह तभी होता है जब लोगों के पास दिमाग की कमी और वक्त ज्यादा है।
उन्होंने कहा, एक व्यक्ति को मारने के लिए जानवर जैसी प्रवृत्ति चाहिए और भारत में बहुत सी जगह ऐसी प्रवृति वाले लोग रह रहे हैं। किसी को चावल चुराने, बच्चा चुराने पर मार दिया इसलिए अफवाह एक कारण है। इसमें लोगों की मानसिकता, उन्हें ऐसा करने का लाइसेंस किसने दिया और शिक्षा की कमी प्रमुख भूमिका निभाते हैं।
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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