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जाट आरक्षण की राजनीति पर कोर्ट की लगाम

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देश की सर्वोच्च अदालत ने जाट आरक्षण को रद्द कर राजनीतिक दलों को आईना दिखाया है। कोर्ट ने जाट आरक्षण की उस अधिसूचना को रद्द कर दिया जिसे पिछले साल केंद्र में सत्तासीन रही कांग्रेस ने चुनाव के लिए आदर्श आचार संहिता लागू होने से ठीक एक दिन पहले जारी किया था। बाद में सत्ता में आई भाजपा की सरकार भी जाट वोट बैंक का मोह त्याग नहीं पाई और उसने भी आरक्षण को जारी रखा। हालांकि अब आरक्षण रद्द करने के पीछे सुप्रीम कोर्ट ने जो तर्क दिए हैं, वे बेहद ही तर्कसंगत हैं। कोर्ट का मानना है कि हम इससे बिल्कुल भी सहमत नहीं हो सकते कि राजनीतिक दृष्टि से संगठित जाट पिछड़ा वर्ग में आते हैं और इसलिए इसके तहत आरक्षण के हकदार हैं। यहां यह भी ध्यान देना होगा कि तत्कालीन संप्रग सकार ने इस मामले में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की अनुशंसा की अनदेखी करते हुए उसके उलट यह अधिसूचना जारी की थी। आयोग ने भी कहा था कि जाटों को केंद्र की अन्य पिछड़ी जाति की सूची में शामिल नहीं किया जा सकता। बाद में राजग ने भी संप्रग के सुर में सुर मिलाते हुए कहा कि राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग की सलाह को मानना सरकार के लिए जरूरी नहीं है।

जाट वोट बैंक पर राजनीतिक दलों की सारी कवायद की असलियत तब खुल गई जब जिन नौ राज्यों में जाट आरक्षण की व्यवस्था की गई थी, वहां कांग्रेस को करारी हार का सामना करना पड़ा। यहां तक कि जाट आरक्षण का श्रेय लेने की कोशिश करने वाले अजित सिंह तक चुनाव हार गए। राजग सरकार भी उसे नक्शेकदम पर चलने लगी और उसने जाट आरक्षण को रद्द करने से परहेज किया। शायद इसके पीछे वजह यह है कि जाट समुदाय राजनीतिक रूप से काफी मुखर और संगठित है, लिहाजा कोई भी राजनीतिक वर्ग उसकी नाराजगी मोल लेना नहीं चाहता। अब भी कांग्रेस और भाजपा जाट आरक्षण लागू करने के लिए ठोस कदम उठाने की बात कह रहे हैं। बसपा कोर्ट के इस फैसले के लिए सरकार को दोषी बता रही है।

यहां एक कठोर सच यह है कि राजनीतिक तुष्टीकरण की इस मुहिम में वह वर्ग वाकई में मीलों पीछे छूट जाते हैं जिन्हें वास्तव में आरक्षण की जरूरत है। जातिगत रूप से विभाजित भारतीय समाज में आज भी अनेक जातियां हाशिये पर हैं। कोर्ट का वर्तमान फैसला इसी को सुधारने की एक कड़ी है। कोर्ट ने कहा है कि जाति पिछड़ेपन का एक प्रमुख कारक हो सकती है, लेकिन यही एकमात्र कारक नहीं हो सकती। ऐसे में अब पिछड़ेपन के नए और उभरते स्वरूप को तलाशने का समय आ गया है। पिछड़ेपन के निर्धारण के लिए नए तरीके और मापदंड को ईजाद करने की जरूरत है। जरूरत इस बात की है कि हाशिये पर रहने वाले नए समूहों की पहचान पिछड़ों के तौर पर हो। इस दिशा में भी विचार हो कि आरक्षण के शॉर्ट कट के बजाय सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित तबकों को विकास की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए ज्यादा अवसर पैदा किए जाएं।

नेशनल

मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन, दिल्ली एम्स में ली अंतिम सांस

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नई दिल्ली। मशहूर लोक गायिका शारदा सिन्हा का निधन हो गया है। दिल्ली के एम्स में आज उन्होंने अंतिम सांस ली। वह लंबे समय से बीमार चल रहीं थी। एम्स में उन्हें भर्ती करवाया गया था। शारदा सिन्हा को बिहार की स्वर कोकिला कहा जाता था।

गायिका शारदा सिन्हा को साल 2018 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर, 1952 को सुपौल जिले के एक गांव हुलसा में हुआ था। बेमिसाल शख्सियत शारदा सिन्हा को बिहार कोकिला के अलावा भोजपुरी कोकिला, भिखारी ठाकुर सम्मान, बिहार रत्न, मिथिलि विभूति सहित कई सम्मान मिले हैं। शारदा सिन्हा ने भोजपुरी, मगही और मैथिली भाषाओं में विवाह और छठ के गीत गाए हैं जो लोगों के बीच काफी प्रचलित हुए।

शारदा सिन्हा पिछले कुछ दिनों से एम्स में भर्ती थीं। सोमवार की शाम को शारदा सिन्हा को प्राइवेट वार्ड से आईसीयू में अगला शिफ्ट किया गया था। इसके बाद जब उनकी हालत बिगड़ी लेख उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। शारदा सिन्हा का ऑक्सीजन लेवल गिर गया था और फिर उनकी हालत हो गई थी। शारदा सिन्हा मल्टीपल ऑर्गन डिस्फंक्शन स्थिति में थीं।

 

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