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मंटो को लोगों में पुनर्जीवित करने को बनाई ‘मंटो’ : नंदिता दास

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सिडनी, 26 जून (आईएएनएस)| घुमक्कड़ लेखक और रचनात्मक बागी सादत हसन मंटो के जीवन पर भारतीय फिल्मकार नंदिता दास द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की अवधारणा के आधार पर बनाई गई फिल्म ‘मंटो’ ने मौजूदा समय के हिसाब से जैकपॉट मारा है। इसमें ऐसे ज्वलंत मुद्दे को उठाया गया है जो न सिर्फ भारत बल्कि विश्व भर में प्रसांगिक है।

नंदिता का कहना है कि फिल्म बनाने का लक्ष्य हर व्यक्ति में मंटो को पुनर्जीवित कर उसे सच्चा और साहसी बनाना है।

मंटो ने उनकी साहित्यिक रचनाओं में अश्लीलता होने के बचाव में कई अदालतों में यह कहा था, ये जरूरी है कि जमाने की करवटों के साथ, अदब भी करवट बदले।

प्रश्नों में ये कहानियां भारत के बंटवारे की प्रष्ठभूमि में लिखी गई हैं जिसमें लाखों निर्दोष लोगों की जिंदगी खत्म हो गई।

‘टोबाटेक सिंह’, ‘खोल दो’, ‘ठंडा गोश्त’ जैसी लघुकथाओं में उपमहाद्वीप के इतिहास के इस अशांत समय की क्रूर और असहनीय सच्चाइयों को पाठकों के चेहरे पर तमाचे की तरह पेश किया गया है। मंटो के काम को आज तक समय की सच्चाई बयां करने वाला बताया गया है। उनके काम में कथा, फिल्मी पटकथा, निबंध तथा रेडियो नाटक शामिल हैं।

नंदिता की फिल्म ‘मंटो’ को हालिया सप्ताहों में ‘कान’ में तथा ‘सिडनी’ में शानदार प्रतिक्रिया मिली है। फिल्म सितंबर में भारत में रिलीज होने से पहले फिल्मोत्सव का परिक्रमा कर रही है।

नंदिता ने कहा, मैं अपने आस-पास हो रही घटनाओं पर प्रतिक्रिया देना चाहती थी इसीलिए मैंने यह फिल्म बनाई। यह सिर्फ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है। वर्तमान में हमें वर्ग, धर्म, त्वचा का रंग, लिंग और भाषा के नाम पर बांटने के लिए राजनीति खेली जा रही है। मंटो का मानववाद उस सबसे आगे है।

सिडनी फिल्मोत्सव से इतर नंदिता ने कहा, इसी लिए मंटो के विचार 70 साल बाद आज भी प्रसांगिक हैं। वास्तव में मंटो अगर यूरोप में पैदा हुए होते, तो अब तक उन पर कई फिल्में बन चुकीं होतीं। आप यह भी कह सकते हैं कि हम सब में मंटो को जगाने के उद्देश्य से फिल्म बनाई गई है।

मंटो का कथन जो नंदिता के पसंदीदा कथनों में से एक है, मैं उस समाज की चोली क्या उतारूंगा जो पहले से ही नंगी है। उसे कपड़े पहनाना मेरा काम नहीं। मेरा काम है कि एक सफेद चाक से काली तख्त पे लिखूं ताकि कालापन और भी नुमायां हो जाए।

फिल्म महोत्सवों में अच्छी शुरुआत मिलने के बाद फिल्म की यात्रा टोरंटो, बुसान और संभवत: मेलबर्न में भी जारी रहेगी।

नंदिता ने कहा, फिल्म की पृष्ठभूमि भारत और पाकिस्तान पर आधारित है लेकिन कहानी वैश्विक है। यद्यपि एक पीरियड फिल्म होने के बावजूद यह एक आधुनिक कहानी है।

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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