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अराकू में अब प्रसव के दौरान नहीं होती है महिलाओं की मौत

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हैदराबाद, 19 अगस्त (आईएएनएस)| आंध्र प्रदेश की अराकू घाटी की प्राकृतिक सुषमा जितनी मनोरम है, वहां की वादियों में निवास करने वाले लोगों का जीवन उतना ही दूभर है।

पूर्वी घाट के इस इलाके में बसे लोग पीने का साफ पानी, स्वास्थ्य सेवा और शिक्षा की सुविधाओं से महरूम हैं। लेकिन प्रसव के दौरान यहां अब किसी महिला की मौत नहीं होती है।

यह तथ्य निस्संदेह हैरान करने वाला है क्योंकि कुछ साल पहले तक किसी को पता भी नहीं था कि यहां कोई मानव आबादी भी बसती है। इलाके के लोग देश की जनगणना में शामिल नहीं थे।

एक आकर्षक पर्यटक स्थल के रूप में उभरने के एक दशक पहले विशाखापत्तनम से 100 किलोमीटर दूसर अराकू में नक्सलियों का कब्जा था और पूर्वी घाट के इस जंगल में जाने की हिम्मत कोई राजनेता या अधिकारी नहीं कर पाते थे।

दूर-दूर तक बिखरे गांवों में बसी मानव आबादी कुपोषण का शिकार थी, जिसके कारण यहां मातृ मृत्यु दर और नवजात मृत्यु दर काफी ज्यादा थी।

पिरामल फाउंडेशन नामक गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) की स्वास्थ्य शाखा पिरामल स्वास्थ्य ने 2011 में जब ‘आसरा जनजातीय स्वास्थ्य कार्यक्रम’ शुरू किया था उस समय इस जनजातीय इलाके में एक लाख में 400 महिलाओं की की मौत बच्चे को जन्म देते समय हो जाती थी। मतलब मातृ मृत्यु दर यहां प्रति लाख 400 थी, जबकि राष्ट्रीय औसत करीब 200 प्रति लाख है।

पिरामल स्वास्थ्य के अधिकारियों ने बताया कि पिछले दो साल में यहां बच्चे को जन्म देते समय किसी महिला की मौत नहीं हुई है। यही नहीं, यहां संस्थानों में प्रसव के मामले भी इस अवधि में 18 फीसदी से बढ़कर 68 फीसदी को गए हैं। नवजात मृत्यु दर 37 फीसदी से घटकर 10 फीसदी रह गई है।

इस बदलाव श्रेय जाता है पी. पद्मा जैसी प्रसव सेविकाओं को। प्रसव सेविका से अभिप्राय ऑग्जिलियिरी नर्स मिडवाइव्स (एएनएम) से है, जो दूर-दराज की इन बस्तियों में निस्वार्थ रूप से गर्भवती महिलाओं की सेवा करती हैं। 27 वर्षीय पद्मा पिछले छह साल से एनजीओ के साथ काम कर रही हैं और इन्होंने अब तक करीब 3,000 गर्भवती महिलाओं को अपनी सेवा दी है। इस बदलाव का वह चश्मदीद है।

पद्मा ने आईएएनएउस से बातचीत में कहा, इन जनजातीय बस्तियों की स्थिति दयनीय थी क्योंकि महिलाएं प्रसव के लिए अस्पताल जाना नहीं चाहती थी। ये लोग अंधविश्वासी थे। लेकिन पिरामल स्वास्थ्य ने इनका अंधविश्वास दूर कर महिलाओं को अस्पताल जाने के लिए अभिप्रेरित किया।

पद्मा को इन बस्तियों में पहुंचने के लिए काफी लंबा सफर तय करना होता है। वह 12-13 किलोमीटर का सफर चौपहिया वाहन से करती है और जहां सड़क समाप्त हो जाती है वहां से पायलट के साथ मोटरसाइकिल के पीछे बैठकर 11 किलोमीटर का सफर तय करती है। फिर वह 12-13 किलोमीटर पहाड़ी की चढ़ाई कर अराकू की बस्तियों में पहुंचती है।

पिरामल स्वास्थ्य के चीफ एग्जिक्यूटिव ऑफिसर विशाल फंसे ने बताया कि पद्मा का यह रोज का सफर है।

इन बस्तियों में एएनएम प्रत्येक गर्भवती महिला की पहचान कर उसकी प्रारंभिक जांच करती हैं और स्वास्थ्य संबंधी सलाह देती हैं। साथी एक तय तिथि को उनको टेलीमेडिसिन सेंटर में विशेषज्ञ से परामर्श लेने के लिए ले जाती हैं। उनको चौपहिया वाहन से सेंटर ले जाती हैं, जहां हैदराबाद में बैठे स्त्रीरोग विशेषज्ञ उनको टेलीकांफ्रेंसिंग के जरिए परामर्श देते हैं। गर्भवती महिलाओं को मुफ्त में दवा, पूरक पोषक आहार प्रदान किए जाते हैं। इसके बाद उनको वापस घर छोड़ दिया जाता है।

पद्मा ने कहा, अगर महिला चल नहीं सकती है तो उसे चौपहिया वाहन तक पहुंचाने के लिए पाल्की का इंतजाम किया जाता है। उन्होंने बताया कि पिछले महीने एक महिला ने कोलीगुड़ा गांव में पाल्की में ही बच्चे को जन्म दिया। पद्मा ने उसकी मदद की। इसके बाद वह जच्चा और बच्चा को सुरक्षित अस्पताल ले गई।

इस प्रकार एएनएम गर्भधारण करने से लेकर बच्चे के जन्म तक महिलाओं और बच्चों के स्वास्थ्य की देखभाल में मदद करती हैं।

पिरामल स्वास्थ्य ने इस इलाके की 181 बस्तियों की करीब 49,000 गर्भवती महिलाओं को अपनी सेवा प्रदान कर प्रसव के दौरान होने वाली मौत की रोकथाम का लक्ष्य हासिल किया है।

एनजीओ द्वारा विशाखापत्तनम के जनजातीय इलाकों की 11 मंडल (ब्लॉक) की 2.5 लाख आबादी तक अपनी पहुंच बनाने के लिए परंपरागत प्रसव सेविकाओं और किशोरियों को स्वास्थ्य संबंधी शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है।

वर्तमान में छह टेलीमेडिसिन सेंटर चलाए जा रहे हैं और पांच और खोलने की योजना है। एनजीओ द्वारा दो और सामुदायिक पोषण केंद्र खोले जाएंगे जबकि एक केंद्र पहले से ही चल रहा है। इन केंद्रों में महिलाओं को स्वास्थ्य और पोषक आहार की शिक्षा के साथ-साथ आसपास में उपलब्घ परंपरागत खाद्य पदार्थो के इस्तेमाल का प्रशिक्षण दिया जाता है।

एनजीओ अपनी इस अवधारणा को देश के सभी जनजातीय इलाकों में लागू करना चाहता है। भारत में जनजातीय आबादी 10 फीसदी से ज्यादा है और इस आबादी में मातृ मृत्यु दर राष्ट्रीय औसत की ढाई गुनी है।

फंसे ने कहा, अराकू की योजना विशाखापत्तनम में सफल होने पर हम देश के सभी जनजातीय इलाको में इसे ले जा सकते हैं।

नीति आयोग ने इस पर गौर किया है और आयोग इस बात पर विचार कर रहा है कि इस मॉडल को कैसे बढ़ाया जा सकता है।

फंसे ने कहा, संयुक्त राष्ट्र, राज्यों की सरकारें और केंद्र सरकार समेत अनेक लोगों ने इस पर गौर किया है। हमारे पास कई लोग यह जानने के लिए आते हैं कि हम कैसे पूरी व्यवस्था करते हैं। हम खुद भी रोज सीख रहे हैं।

पिरामल स्वास्थ्य में 4,000 कर्मचारी कार्यरत हैं और देश के 16 राज्यों में इसकी 29 स्वास्थ्य परियोजनाओं का संचालन हो रहा है।

(यह साप्ताहिक फीचर श्रंखला आईएएनएस और फ्रैंक इस्लाम फाउंडेशन की सकारात्मक पत्रकारिता परियोजना का हिस्सा है।)

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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