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केरल : ‘आपदा विभाग की विफलता से आई भीषण बाढ़’
नई दिल्ली/तिरुवनंतपुरम, 20 अगस्त (आईएएनएस)| केरल में आई सदी की सबसे भीषण बाढ़ में 370 लोगों की मौत और बेघर हो चुके करीब साढ़े सात लाख लोग इसे कुदरत का कहर बता रहे हैं लेकिन यह आपदा केवल प्राकृतिक नहीं है बल्कि मानवजनित भी है। केरल के तिरुवनंतपुरम में रहने वाले पर्यावरण शोधकर्ता और कार्यकर्ता जयकुमार का कहना है कि इस बाढ़ के पीछे केरल राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की विफलता एक प्रमुख कारण है।
पर्यावरणविद् जयकुमार ने तिरुवनंतपुरम से फोन पर आईएएनएस के साथ बातचीत में कहा, राज्य का आपदा विभाग वास्तव में समस्याओं का अंदाजा लगाने में नाकाम रहा। आपदा प्रबंधन विभाग को चिन्हित करना चाहिए था कि बांध में कितने जलस्तर को रोका जा सकता है और जब पांचों द्वार खोले जाएं तो यह कितने क्षेत्र को अपने दायरे में लेंगे। वह जलस्तर को कम आंक रहे थे, उन्हें लगा वह इस पर नियंत्रण कर सकते हैं। उन्हें जलग्रहण क्षेत्र की बिल्कुल भी जानकारी नहीं थी। डर के कारण बांध के पांचों द्वार खोल दिए गए और यह तबाही हुई।
जयकुमार ने कहा, वह प्रारंभिक रूप से बारिश को मिलीमीटर में देख रहे थे और अंदाजा लगा रहे थे कि इतनी बारिश हुई तो इतना जलस्तर होगा लेकिन यहां पानी मिलीमीटर से ज्यादा हो गया। वह तैयारी करने में विफल रहे कि इतना पानी इन द्वार से बाहर आएगा। जब भारी बारिश से बांध पूरे भर गए और नदियां उफान पर बहने लगीं तो उन्हें डर लगने लगा। उन्हें इसका अंदाजा नहीं था क्योंकि बहुत ही अप्रत्याशित था। यह इस समस्या की बहुत बड़ी वजह रही।
उन्होंने कहा कि दरअसल इस बार सामान्य मानसून से 20 फीसदी अधिक बारिश दर्ज हुई। पिछले 16-17 वर्षो से यहां सामान्य मानसून नहीं था इसलिए हमारे पास ऐसी स्थिति से निपटने के लिए बहुत ही सीमित संसाधन थे। केरल में पिछले दो दशकों के दौरान नियमित मानसून नहीं होने के कारण भी अधिकारी इस चीज से बिल्कुल अनजान थे। लेकिन इस साल मानसून सामान्य रहा, पिछले 17 वर्षो में जहां 60 से 70 फीसदी बारिश होती थी, वहीं इस वर्ष पिछले वर्षो की तुलना में कह सकते हैं कि बारिश में 100 फीसदी की वृद्धि हुई है। इस बार केरल में सामान्य तौर पर होने वाली बारिश में 20 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई है।
इडुक्की बांध के पांचों द्वारों को 26 साल बाद एक साथ खोलने से हुए नुकसान के सवाल पर उन्होंने कहा, जब बांध का जलस्तर खतरे के निशान पर पहुंच गया तो उसे खोलना ही पड़ता। दरअसल पिछले 26 वर्षो से पानी उस स्तर तक नहीं पहुंच पा रहा था लेकिन जब इतने सालों बाद द्वार खोले गए तो किसी को अंदाजा ही नहीं था कि पानी किस दिशा में और कितनी तेजी से बहेगा।
कार्यकर्ता जयकुमार ने कहा, दरअसल इतने लंबे समय तक बांध का जलस्तर नहीं बढ़ने से नदियों में पानी कम होता गया और स्थानीय लोगों ने नदी किनारों पर कब्जा कर वहां निर्माण शुरू कर दिया और वहां रहने लगे। साथ ही नगर निगम के अधिकारियों ने वहां कूड़ा डालना शुरू कर दिया। नदी के बहने वालों मार्गो पर अधिकारियों और लोगों के कारण बाधा उत्पन्न हुई और इतना ज्यादा नुकसान हुआ।
उन्होंने कहा, यहीं से आपदा प्रबंधन विभाग की विफलता सामने आई। यहां बांधों की एक श्रृंखला है, अधिकारियों का काम होता है कि वह देखें की अगर हालात खराब हुए और बांध का जलस्तर अधिक हो गया तो वह उसे छोटे या निचले बांधों में भेजें और इसके लिए उन बांधों को खाली किया जाता है या उसके पानी को कम किया जाता है ताकि उसमें आने वाले पानी को रोका जा सके जबकि यहां छोटे बांध भी पूरे भरे हुए थे और उनकी यह तैयारी अधूरी रही।
जयकुमार ने कहा, बारिश के कारण इडुक्की बांध का जलस्तर अधिक हो गया और पानी छोड़ दिया गया। इस बांध के साथ एर्नाकुलम, कोट्टायम समेत कई बांध भी पहले से पूरे भरे हुए थे, साथ ही बांधों के कारण बहुत से अंतर बेसिन मोड़ थे। जब बांध से पानी छोड़ा गया तो पानी की मात्रा इतनी अधिक थी कि जिसका अंदाजा नहीं लगाया जा सका। यह पिछले 26 साल से खुले नहीं थे तो किसी को अंदाजा भी नहीं था कि पानी कितनी तेजी से बहेगा। आपदा विभाग की सारी गणना और आकलन इस मौके पर गलत साबित हुआ।
राहत व बचाव कार्यो में कमी के सवाल पर जयकुमार ने आईएएनएस को बताया, मुझे लगता है कि राहत व बचाव कार्यो में केंद्र सरकार विफल रही है। सेना को तीन दिन पहले ही राज्य में लगाया गया है मुझे नहीं पता ऐसा क्यों हुआ। राज्य सरकार कह रही है कि वह बार-बार हेलीकॉप्टरों और नावों की मांग कर रही है लेकिन उन्हें अभी तक उतनी सहायता नहीं मिली है जितनी की उनको जरूरत है।
उन्होंने कहा, बात यह है कि बाढ़ से प्रभावित इडुक्की, कोट्टायम, एर्नाकुलम और पथनामथित्ता को कवर करने के लिए ज्यादा मदद की जरूरत है क्योंकि यहां पानी अधिक है। दरअसल यहां पानी अधिक होने की वजह यह है कि यह क्षेत्र नदियों के बहने वाले मार्ग पर बने हुए हैं। शहरी विकास के नाम पर यहां निर्माण किया गया और यहां लोग रहने लगे, अब यह क्षेत्र रिहायशी इलाकों में तब्दील हो गए हैं। यहां अधिक हेलीकॉप्टरों और नावों पर प्रशिक्षित सैनिकों की आवश्यकता है ताकि लोगों को बचाया जा सके।
बाढ़ से राज्य को हुए नुकसान के सवाल पर जयकुमार ने कहा, सरकार राज्य में 20 हजार करोड़ रुपये के नुकसान की बात कह रही है जबकि यहां 40 से 50 हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। बाढ़ के कारण पिछले साल की तुलना में राज्य को करीब 20 से 40 फीसदी की जीडीपी का नुकसान है, जिसकी भरपाई कुछ वर्षो में होना तो नामुमकिन है।
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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