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वन्यजीव क्यों लांघ रहे अभयारण्यों की सीमा?

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नई दिल्ली, 13 दिसंबर (आईएएनएस)| बाघ, तेंदुओं, भालू, हाथियों व दूसरे जानवरों का जंगल क्षेत्र से आबादी वाले क्षेत्रों में आना अब आम समस्या हो गई है। हाल ही में अवनि नाम की एक बाघिन को इंसान पर हमला करने के कारण मार गिराया गया। आगरा में एक तेंदुआ कार का शिकार हो गया और दुर्घटनाग्रस्त होने के कुछ दिनों बाद उसकी मौत हो गई।

वन्यजीवों का अपने प्राकृतिक आवास से आबादी वाले क्षेत्रों में जाना अब एक आम बात हो गई है। वे अपने शिकार या दूसरी जरूरतों के लिए कभी भी आबादी वाले क्षेत्रों का रुख करते हैं। इससे वन्यजीवों व मनुष्यों के बीच संघर्ष शुरू हो जाता है।

वन्यजीवों का इंसानों की आबादी वाले क्षेत्रों में घुसना व अन्य समस्याओं पर वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन सोसाइटी-इंडिया (डब्ल्यूसीएस-आई) की वैज्ञानिक विद्या अत्रेया ने खास बातचीत में आईएएनएस से कहा, “हाल ही में बाघिन अवनि को मार गिराया गया। अवनि पर मानवों की हत्या का आरोप है। जंगली जानवरों के आबादी वाले क्षेत्रों में घुसने को आप किस तरह से देखती हैं?

वैज्ञानिक कहती हैं, “इस बाघिन की अगस्त महीने में मारे गए तीन लोगों से बहुत कजीक थी, तो शायद उसी ने किया था तो ऐसे जानवरों को जब वो मानव जीवन के लिए खतरा हो जाते हैं तो हम सिफारिश करते हैं कि उसे निकाला जाना चाहिए नहीं तो और भी लोगों का जान खतरा हो जाता, लेकिन जिस तरीके से उसे निकाला गया, वह तरीका सही नहीं था।”

टैंकुलाइज किया जाना हरदम संभव नहीं हो पाता है। अवनि को मारा जाना सही हो सकता है, जब 2009 में विदर्भ के उत्तर में गोंडिया में एक बाघिन ऐसे ही लोगों को मार रही थी वह लोगों का आवाज सुनकर आकर मारती थी, उसका स्वभाव बदल गया था, वह आवाज सुनकर लोगों को मार डालती थी, फारेस्ट विभाग ने कमांडो को बुलाया और उसने ऑपरेशन कर मार डाला। लेकिन अवनि के मामले में नवाब को बुलाया व उसके खानदान को बुलाया मारने के लिए यह सही नहीं था।

यह पूछे जाने पर कि वन्यजीव अपने प्राकृतिक आवास से बाहर क्यों आ रहे हैं? इसके लिए आप किसे जिम्मेदार मानती हैं? इस सवाल पर विद्या अत्रेया ने कहा, “आप हमें बताएं कि जानवरों को किसने नेचुरल हैबिटेट (प्राकृतिक आवास) का डेफिनिशन बताया है। जानवरों को क्या पता कि कौन सा नेचुरल हैबिटेट उनका है। नक्शे को इंसान ने ड्रॉ किया है, जानवर उस नक्शे को नहीं मानते। जंगल में किसी जानवर को क्या पता कि कौन सा हैबिटेट उसका है।”

उन्होंने आगे कहा, “नक्शे में हमने अभयारण्य को ड्रॉ किया है। मगर किसी जानवर को हम नहीं बता सकते कि यह उसका नेचुरल हैबिटेट है। पूर्वी महाराष्ट्र में ब्रिटिश काल से ही बेहतरीन जंगल रहा है, यहां काफी जानवर थे आज भी हैं। हमें साइंटिफिट तरीके से कार्यक्रम बनाने की जरूरत है।”

बाघिन अवनि को शिकार से बचाना और उसे प्राकृतिक आवास में भेजना संभव नहीं था क्या? यह पूछे जाने पर विद्या ने कहा कि अवनि जहां रह रही थी, वह उसी का क्षेत्र था। तेंदुए, बाघ व अन्य वन्यजीव जहां अपने बच्चों के साथ रहते हैं, वे उस क्षेत्र को सुरक्षित बनाने का प्रयास करते हैं। बाघिन अवनि अपने शावकों को लेकर इधर-उधर भटक नहीं रही थी। वह अपने बच्चों को सुरक्षित रखने का प्रयास कर रही थी। अवनि भटक नहीं रही थी, हमें इस दृष्टिकोण से देखना चाहिए कि वह उसका क्षेत्र था।

उन्होंने कहा, “हम पहले से कोई प्लानिंग नहीं करते हैं, ताकि इस तरह की समस्या न हो। वाइल्ड लाइफ मैंनेजमेंट में इस तरह की कोई प्लानिंग नहीं है कि इस तरह की घटनाओं को रोका जा सके। हम जैसे सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के लिए पहले से प्लानिंग किए रहते हैं, उस तरह से वन्य जीवों के लिए प्लानिंग क्यों नहीं करते हैं? हम सड़क पर होने वाले हादसे से पहले ही एंबुलेंस व दूसरी चीजों को तैयार करते हैं। दुर्घटनाओं को रोकने के लिए हम स्पीड ब्रेकर, गति सीमा तय करते हैं।”

विद्या ने कहा, “लेकिन वाइल्ड लाइफ मैंनेजमेंट में हम इन बातों का ख्याल क्यों नहीं रखते? हम वन्यजीवों को लेकर पहले से सर्तक क्यों नहीं होते। हम प्री-प्लानिंग क्यों नहीं करते। हम वन्यजीवों पर हिंसक होने का इल्जाम क्यों मढ़ देते हैं।”

वन्यजीवों के हिंसक होने की घटना को आप किस रूप में देखती हैं? इस सवाल पर वैज्ञानिक कहती हैं, “किसी भी वन्यजीव को देखिए, आप कौवे, बिल्ली, कुत्ता को ही ले लिजिए, ये सब आदमी से डरे हुए होते हैं। आप बाघ को ले लीजिए या फिर हाथी को, ये सब आदमी से डरे रहते हैं। आपको सोचना चाहिए यह सब डरे हुए जानवर आदमी को कब मारते हैं। जब उन्हें लगता है कि उनके साथ कुछ धोखा होने वाला है, तब वे इंसान पर हमला करते हैं।”

इस विषय पर कोई ज्यादा शोध नहीं हुआ है। हां, रूस में कुछ शोध जरूर हुआ है। एक शोध में एक वाकये का जिक्र आया है कि एक बाघिन राह से आने-जाने वालों पर हमला कर देती है। जब उसके बारे में शोध किया गया तो समझ में आया कि बाघिन के बच्चे को किसी ने मार दिया है, इसलिए गुस्से में वह सब पर हमले कर रही थी।

यह पूछे जाने पर कि पर्यावरण व वन्यजीव मानव समाज के साथ किस तरह से जुड़े हैं? इस पर विद्या अत्रेया कहती हैं, “हमारे हर देवता के साथ एक जानवर जुड़ा हुआ है। हमारी पौराणिक कथाओं में बंदर राजा रहता है। वन्यजीवों के साथ हमारे बहुत पुराने, सांस्कृतिक व सामाजिक पहलू जुड़े हुए हैं। रामायण में सुग्रीव, बालि, जटायु जैसे तमाम वन्यजीवों का इंसानों से जुड़ाव दिखाया गया है। हम वन्यजीवों के साथ इंटरलिंक्ड हैं।”

वह कहती हैं, “इसमें मीडिया का भी दोष है, वह जानवरों के बारे में बहुत ही निगेटिव समाचार देते हैं। हमने मुंबई में मीडिया वर्कशॉप किया, फिर मीडिया के व्यवहार में थोड़ा परिवर्तन आया है। मीडिया ऐसी हेडलाइन लगाता है, जैसे आदमखोर आ गया। हम जानवरों के साथ सदियों से मिलकर रह रहे हैं। हमारे कल्चर में साथ रहने की परंपरा है, यह कल्चर ने हमें सिखाया है।”

विकास के नाम पर जंगलों की कटाई और अवनि जैसे दूसरे जानवरों को शिकार बनाए जाने को आप किस तरह से देखती हैं? इस पर विद्या कहती हैं कि अवनि के अगस्त में तीन लोगों के मारे जाने संबंधी परिस्थितिजन्य साक्ष्य हैं। अवनि तीन हमलों में अपने बच्चों के साथ इलाके में आसपास थी। सितंबर, अक्टूबर, नवंबर में अवनि ने कुछ नहीं किया। ऐसे में सवाल उठता कि क्या अगस्त में उसके साथ कुछ हुआ था? पश्चिम घाट में जंगल अच्छे हैं। जंगलों की कटाई एक दिन हमारी मौत का कारण बन जाएगा आप रोड बनाएंगे, वह कितना पानी संचित करेगा, जंगल ही पानी संचित कर सकेंगे ना!

बदलते परिवेश में वन्यजीवों से मानव के समायोजन को कैसे बढ़ाया जा सकता है? इस प्रश्न पर वैज्ञानिक कहती हैं, “लोगों को, मीडिया को, सबको साथ लेकर हमें यह स्वीकार करना चाहिए कि हमारा देश विशिष्ट है। वन्यजीवों के साथ हमारे संबंध सदा से रहे हैं। आप सब नीतियां देखें, सब कुछ प्रॉब्लम के बाद बनती है, हम समस्या के बाद ही हल खोजते हैं। पहले से कोई प्लानिंग नहीं रहता है। वन्यजीवों के एक्शन को लेकर हमें प्रो-एक्टिव प्लानिंग करनी होगी, जो बहुत जरूरी व महत्वपूर्ण है।”

वन्यजीवों का हिंसक होना व आबादी की तरफ पलायन करना बड़ी चुनौती है। इस पर आप क्या कहेंगी? यह पूछे जाने पर विद्या कहती हैं, “मैं सहमत नहीं हूं कि वन्य जीव बहुत ज्यादा हिंसक हैं। मीडिया वन्यजीवों के मामले में ज्यादा वायलेंस है, क्योंकि मीडिया सिर्फ वायलेंट न्यूज रिपोर्ट करता है, जैसे आदमखोर आ गया..आदि तरह से। आप गांव में जाकर काम करेंगे तो पाएंगे आप वन्य जीवों को हिंसक नहीं कहिए। अवनि ने जो किया उसका कारण है।”

उन्होंने कहा, “हम ऐसे नहीं कह सकते कि जानवर लोगों की बस्ती की तरफ आ रहे हैं, क्योंकि आप दस हजार साल पहले के हालात पर गौर करें तो उस समय कोई अभयारण्य नहीं था। भारत में हर जगह जंगली जानवर हैं व पालतू जानवर भी हैं। वैसे भी, मानव होने के नाते समायोजन व पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी ज्यादा है। हमें पर्यावरण व वन्यजीवों का ख्याल रखना होगा।”

 

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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत

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पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।

AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.

शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव 

अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।

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