मुख्य समाचार
असम में भाजपा का लिटमस टेस्ट
गुवाहाटी। आगामी आठ अप्रैल को होने वाले बोडो क्षेत्रीय परिषद के चुनाव भाजपा के लिए लिटमस टेस्ट साबित हो सकते हैं। बोडो क्षेत्रीय परिषद या बीटीसी तीस लाख बोडो जनआदिवासियों का प्रतिनिधित्व करती है जो असम के चार महत्वपूर्ण जिलों कोकराझार, बक्सा, चिरांग और उलगुडी में फैले हुए हैं।
बीटीसी में चालीस सदस्यों का चुनाव जनता करती है और छह को असम के राज्यपाल नामित करते हैं। भारतीय संविधान की छठवीं अनुसूची के आधार पर सात दिसंबर 2003 को बनाई परिषद क्षेत्र के समग्र विकास, सामाजिक, आर्थिक व लैंगिक भेदभाव को दूर करने के कार्यक्रम तैयार करती है। इस आधार पर बोडोलैण्ड देश का काफी पिछड़ा क्षेत्र कहा जा सकता है और भाजपा आसाम में फिलहाल कांग्रेस शासन होने को आधार बनाकर यह कह रही है कि विकास की कोई भी किरण इस क्षेत्र को नहीं छू पाई।
कुछ समय पूर्व कोकराझार में हुए सांप्रदायिक दंगों में बोडो जनआदिवासियों के कत्लेआम के खिलाफ भी भाजपा और उनके सहयोगियों ने जोरदार मोर्चा खोला था। ऐसा लगता है कि बांग्लादेशी घुसपैठियों के मसले पर भाजपा को असमियों का समर्थन प्राप्त हो रहा है।
नार्थ-ईस्ट के सबसे महत्वपूर्ण राज्य असम में अगले साल विधानसभा चुनाव होने हैं। भारतीय जनता पार्टी और उनके सहयोगी दल राज्य की सत्ता पर आसीन होने के सपने देख रहे हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले काफी समय से असम के अंदर अपना संगठन तैयार कर कार्य कर रहा है। बांग्लादेशी घुसपैठियों की समस्या को बहुत पहले से ही भगवा खेमा देश की अखंडता के लिए चुनौती मानता आया है। पिछले साल लोकसभा चुनावों के चार सीटों पर अपने दम पर मिली सफलता से उत्साहित भगवा खेमा कोई जोखिम नहीं लेना चाहता।
असम से केंद्रीय मंत्री जोएल ओरांव, सर्वानंद सोनेवाल और चारो सांसद यदि जनता को यह समझाने में सफल हो गए कि केंद्र में हमारी सरकार होने का लाभ इस क्षेत्र के पिछड़पन को दूर करने में मिलेगा तो नतीजे कुछ और ही हो सकते हैं। वैसे तो भाजपा के वरिष्ठ नेता और इस क्षेत्र के मुख्य चुनाव संयोजक सीके दास का दावा है कि पार्टी यहां इस बार पूर्ण बहुमत से सत्ता हासिल करेगी। अब यदि इसको अति आशावाद भी मान लें तो इतनी संभावना बीजेपी के लिए जरूर बन रही है कि वह किंगमेंकर की भूमिका में रहे।
अब सवाल यह उठता है कि असम में सत्तारूढ़ कांग्रेस का क्या होगा? वैसे तो अपनी जीत का दावा कांग्रेस के नेता भी कर रहे हैं लेकिन सत्ताविरोधी लहर का नुकसान कांग्रेस को हो सकता है। यदि ऐसा हुआ तो अगले साल के विधानसभा चुनावों पर इसका सीधा असर पड़ेगा, वैसे भी भाजपा के कांग्रेस मुक्त भारत का संकल्प बिना असम में जीत के पूरा नहीं होने वाला है क्योंकि कांग्रेस असम में लगातार सत्ता में रही है।
बोडोलैंड चुनाव असम में राजनीतिक पार्टियों की स्वीकार्यता के लिए अहम है। विशेष रूप से अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले यह काफी महत्वपूर्ण हैं। बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) ने इस बार चुनाव मैदान में अपने 40 उम्मीदवारों को उतारा है। भारतीय जनता पार्टी और सत्तारूढ़ कांग्रेस ने भी इन निर्वाचन क्षेत्रों में अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इत्र व्यापारी बदरुद्दीन अजमल के नेतृत्व में ऑल इंडिया युनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (एआईयूडीएफ) ने आठ उम्मीदवार उतारे हैं। बीटीएडी में शामिल विभिन्न समुदायों वाले संगठन पीपुल्स कन्फेडरेशन ऑफ डेमोक्रेटिक राइट्स (पीसीडीआर) इन सभी निर्वाचन क्षेत्रों में स्वतंत्र उम्मीदवारों को समर्थन दे रही है।
इसके अलावा, असम गण परिषद के छह उम्मीदवार, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) सात और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) ने एक उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं, जबकि इस बार 151 निर्दलीय उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं।
अब जनता इन उम्मीदवारों में किसकी किस्मत खोलती है और किसकी बंद करती है यह तो भविष्य के गर्त में है लेकिन इतना तो तय है कि यह चुनाव पीएम मोदी की नार्थ-ईस्ट के प्रति हमदर्दी पर जनता की मोहर होगी।
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पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला, 38 लोगों की मौत
पख्तूनख्वा। पाकिस्तान के खैबर पख्तूनख्वा में बड़ा आतंकी हमला हुआ है। इस हमले में 38 लोगों की मौत हो गई है। यह हमला खैबर पख्तूनख्वा के डाउन कुर्रम इलाके में एक पैसेंजर वैन पर हुआ है। हमले में एक पुलिस अधिकारी और महिलाओं समेत दर्जनों लोग घायल भी हुए हैं। जानकारी के मुताबिक उत्तर-पश्चिमी पाकिस्तान के अशांत प्रांत खैबर पख्तूनख्वा में आतंकियों ने शिया मुस्लिम नागरिकों को ले जा रहे यात्री वाहनों पर गोलीबारी की है। यह क्षेत्र में हाल के वर्षों में इस तरह का सबसे घातक हमला है। मृतकों की संख्या में इजाफा हो सकता है।
AFP की रिपोर्ट के मुताबिक इस हमले में 38 लोगों की मौत हुई है. पैसेंजर वैन जैसे ही लोअर कुर्रम के ओचुट काली और मंदुरी के पास से गुजरी, वहां पहले से घात लगाकर बैठे आतंकियों ने वैन पर अंधाधुंध गोलियां बरसानी शुरू कर दीं. पैसेंजर वैन पाराचिनार से पेशावर जा रही थी। पाकिस्तान की समाचार एजेंसी डॉन के मुताबिक तहसील मुख्यालय अस्पताल अलीजई के अधिकारी डॉ. ग़यूर हुसैन ने हमले की पुष्टि की है.
शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच तनाव
अफगानिस्तान की सीमा से लगे कबायली इलाके में भूमि विवाद को लेकर शिया और सुन्नी मुसलमानों के बीच दशकों से तनाव बना हुआ है। किसी भी समूह ने घटना की जिम्मेदारी नहीं ली है। जानकारी के मुताबिक “यात्री वाहनों के दो काफिले थे, एक पेशावर से पाराचिनार और दूसरा पाराचिनार से पेशावर यात्रियों को ले जा रहा था, तभी हथियारबंद लोगों ने उन पर गोलीबारी की।” चौधरी ने बताया कि उनके रिश्तेदार काफिले में पेशावर से यात्रा कर रहे थे।
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