ऑफ़बीट
तिहाड़ जेल के बैरक नं 3 के नाम से ही कांपते हैं खूंखार कैदी, इस आतंकी का घूमता है भूत
नई दिल्ली। देश का सबसे बड़े कैदखाने तिहाड़ जेल को लेकर एक हैरान कर देने वाली बात सामने आई है। यहां बैरक नंबर 3 में जाने के नाम से ही खूंखार अपराधी कांपने लगते हैं।
तिहाड़ कैंपस में 10 जेल हैं, इनमें जेल नंबर-3 बहुत ही खतरनाक मानी जाती है। यहां कोई भी कैदी रहना ही नहीं चाहता है। इसके पीछे की वजह हैरान कर देने वाली है।
दरअसल, कैदियों का मानना है कि यहां भारतीय संसद पर हमला करने के दोषी अफजल गुरु का भूत टहलता है। सूत्र बताते हैं कि कुछ कैदी इसे मन का वहम मान कर दूसरों को तसल्ली देते हैं, मगर उनका क्या, जिन्हें रात में अफजल के ख्याल आते हैं।
कथित रूप से जेल में भटकने वाली आत्माओं यानी भूतों को शांत करने के लिए यहां पूजा-पाठ भी होते रहते हैं। इसके बावजूद कई कैदियों ने यह शिकायत की है कि उन्होंने भूत को देखा है।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक बैरक नंबर 3 के अधिकतर कैदी रात को मन ही मन हनुमान चालीसा जपते हैं, या अपने धर्म के अनुसार इबादत करने लगते हैं।
दरअसल, जेल के हाई सिक्योरिटी जोन में बंद रहे अफजल गुरु को 9 फरवरी, 2013 को तिहाड़ जेल में फांसी दी गई थी। अफजल गुरु के बारे में 8 फरवरी की रात तक कैदियों को इल्म नहीं था कि अगली सुबह तिहाड़ में उसे फांसी दी जानी है। 9 फरवरी की सुबह 8 बजे अफजल गुरु को फांसी पर
जेल नंबर-3 से कैदियों को कभी चीखने की आवाज सुनाई देती हैं। सूत्रों का कहना है कि कथित रूप से जेल में भटकने वाली आत्माओं यानी भूतों को शांत करने के लिए यहां पूजा-पाठ भी होते रहते हैं। इसके बावजूद कई कैदियों ने यह शिकायत की है कि उन्होंने भूत को देखा है।
जेल के कुछ अफसरों का भी मानना है कि तिहाड़ में भूतों का वास है। इन अफसरों का कहना है कि यहां कुछ ऐसे कैदी भी आए जो मुलजिम नहीं थे और वक्त के मारे उन्हें जेल में आना पड़ा।
यहां उन्हें दबंग कैदियों ने तरह-तरह से परेशान किया और अंत में उनमें से कई ने जेल के अंदर आत्महत्या कर लीं। ऐसे में उनकी आत्मा यहां भटकती रहती है और कई बार दबंग कैदियों को परेशान करती है।
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बिहार का ‘उसैन बोल्ट’, 100 किलोमीटर तक लगातार दौड़ने वाला यह लड़का कौन
चंपारण। बिहार का टार्जन आजकल खूब फेमस हो रहा है. बिहार के पश्चिम चंपारण के रहने वाले राजा यादव को लोगों ने बिहार टार्जन कहना शुरू कर दिया है. कारण है उनका लुक और बॉडी. 30 मार्च 2003 को बिहार के बगहा प्रखंड के पाकड़ गांव में जन्मे राज़ा यादव देश को ओलंपिक में गोल्ड मेडल दिलाना चाहते हैं.
लिहाजा दिन-रात एकक़र फिजिकल फिटनेस के साथ-साथ रेसलिंग में जुटे हैं. राज़ा को कुश्ती विरासत में मिली है. दादा जगन्नाथ यादव पहलवान और पिता लालबाबू यादव से प्रेरित होकर राज़ा यादव ने सेना में भर्ती होने की कोशिश की. सफलता नहीं मिली तो अब इलाके के युवाओं के लिए फिटनेस आइकॉन बन गए हैं.
महज 22 साल की उम्र में राजा यादव ‘उसैन बोल्ट’ बन गए. संसाधनों की कमी राजा की राह में रोड़ा बन रहा है. राजा ने एनडीटीवी से कहा कि अगर उन्हें मौका और उचित प्रशिक्षण मिले तो वे पहलवानी में देश का भी प्रतिनिधित्व कर सकते हैं. राजा ओलंपिक में गोल्ड मेडल लाने के लिए दिन रात मैदान में पसीना बहा रहे हैं. साथ ही अन्य युवाओं को भी पहलवानी के लिए प्रेरित कर रहे हैं.
’10 साल से मेहनत कर रहा हूं. सरकार ध्यान दे’
राजा यादव ने कहा, “मेरा जो टारगेट है ओलंपिक में 100 मीटर का और मेरी जो काबिलियत है उसे परखा जाए. इसके लिए मैं 10 सालों से मेहनत करते आ रहा हूं तो सरकार को भी ध्यान देना चाहिए. मेरे जैसे सैकड़ों लड़के गांव में पड़े हुए हैं. उन लोगों के लिए भी मांग रहा हूं कि उन्हें आगे बढ़ाने के लिए सुविधा मिले तो मेरी तरह और युवक उभर कर आएंगे.”
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